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 पंद्रहवीं शताब्दी में सनातन कि स्थिति और संतों का प्रादुर्भाव | dharmpath.com

Saturday , 23 November 2024

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पंद्रहवीं शताब्दी में सनातन कि स्थिति और संतों का प्रादुर्भाव

Keenaram Jiपंद्रहवीं शताब्दी में काशी कि धार्मिक स्थिति संकटकाल से गुजर रही थी। बनारस का वैदिक धर्म इतना रूढ़िग्रस्त हो गया था कि उसमें किसी तरह के सुधार कि ओर लोगों का ध्यान नहीं जाता था। तत्कालीन काशी से लेकर कश्मीर तक वैदिक धर्म ने लोगों कि विचार-शक्ति को कुचल-सा दिया था,और सर्वसाधारण के मन में एक विचित्र किस्म का सूनापन छा रहा था।kabir-das-widecreen इसी का परिणाम था कि काशी से कश्मीर तक के उच्च -वर्ग के लोग प्रायः इस्लाम की दुहाई दे रहे थे और निम्न जातियों के लोग तो इस्लाम कबूल ही करते जा रहे थे। ऐसे समय में जब म्लेच्छों का प्रभाव गंगा नदी के वेग की तरह पूरे देश को प्रभावित कर रहा था,रामानन्द ,कबीर ,कीनाराम प्रभूति महापुरुषों का प्रादुर्भाव हुआ। कबीर उन जातिगत ,कुलगत,संस्कारगत  और सम्प्रदायगत भावों को तोड़ कर एक ऐसे समाज कि स्थापना का स्वप्न देखते थे जिसमें मनुष्य एक था और प्रेम का मार्ग ही असल मार्ग था।

पंद्रहवीं शताब्दी में सनातन कि स्थिति और संतों का प्रादुर्भाव Reviewed by on . पंद्रहवीं शताब्दी में काशी कि धार्मिक स्थिति संकटकाल से गुजर रही थी। बनारस का वैदिक धर्म इतना रूढ़िग्रस्त हो गया था कि उसमें किसी तरह के सुधार कि ओर लोगों का ध्य पंद्रहवीं शताब्दी में काशी कि धार्मिक स्थिति संकटकाल से गुजर रही थी। बनारस का वैदिक धर्म इतना रूढ़िग्रस्त हो गया था कि उसमें किसी तरह के सुधार कि ओर लोगों का ध्य Rating:
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