नई दिल्ली, 27 जनवरी (आईएएनएस)। चुनाव में नेताओं को अपनी आर्थिक स्थिति की तरह अपने शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी घोषणापत्र भी जारी करना चाहिए। ऐसा कहना है इंडियन मेडिकल असोसिएशन के महासचिव और हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, पद्मश्री डॉ. के. के. अग्रवाल का।
मतदाता को चुनाव मैदान में खड़े प्रत्याशियों की सेहत के बारे में जानने का भी पूरा अधिकार है, ताकि उन्हें ये पता लग सके कि अगले पांच वर्षो तक वे राजनैतिक तनाव झेलने के लिए सक्षम हैं अथवा नहीं। नेता हमारे समाज के प्रतिमूर्ति सिलेब्रिटी होते हैं और उनकी आदतें भी युवा पीढ़ी को प्रभाावित करती हैं।
अगर वे सही आकार में नहीं होंगे, पेट के मोटापे की चपेट में होंगे, अथवा धूम्रपान करते हों या अल्कोहल लेते होंगे तो इसका हमारी युवा पीढ़ी पर बुरा असर पड़ेगा।
यहां तक कि अगर वे किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो इसकी भी उन्हें जानकारी देनी चाहिए। हम जानते हैं कि देश की पहली हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी करने वाले डॉ. वेणुगोपाल ने यह ऑपरेशन अपनी बाईपास सर्जरी कराने के 7 दिन बाद की थी। इससे समाज में यह स्पष्ट संदेश गया कि बाईपास सर्जरी कराने के बाद कोई भी व्यक्ति एक हफ्ते में ही पूरी तरह सामान्य हो जाता है।
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी की घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी भारत में की गई उसके बाद भारतीय ऑथोर्पेडिक सर्जरी को लेकर इससे एक सकारात्मक दिशा मिली।
जब कोई भी व्यक्ति कोई सरकारी क्षेत्र अथवा कोई उच्च स्तर का कार्य अपनाना चाहता है, तब उसे एक फिटनेस टेस्ट से गुजरना होता है। और अगर उसमें पहले से किसी गंभीर बीमारी का पता लगता है तो उसे जॉब के लिए अक्षम घोषित कर दिया जाता है। बिना कठिन मेडिकल फिटनेस टेस्ट के किसी क्रिकेटर को भी खेलने का अवसर नहीं मिलता है।
ऐसे में एक नेता को जो दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र की कमान संभालने का इच्छुक है उसे बिना स्वास्थ्य जांच और फिटनेस सुनिश्चित किए बिना चुनाव लड़ने की इजाजत कैसे दी जा सकती है?
अब वो समय आ गया है जब सरकारी क्षेत्र की हर स्तर की नौकरी और यहां तक राजनीतिक कैरियर के लिए भी मेडिकल फिटनेस टेस्ट अनिवार्य किया जाए। चुनाव लड़ने से पहले जब नेताओं को उनका आर्थिक और आपराधिक इतिहास बताना होता है, उसी समय उनके लिए उनके स्वास्थ्य संबंधी घोषणापत्र देना भी अनिवार्य किया जाना चाहिए।
कुछ लोग यह दलील दे सकते हैं कि नेता सिर्फ सलाहकार होते हैं, ऐसे में उन्हें दिमागी रूप से सक्षम होना चाहिए, उनकी शारीरिक बीमारी से इस पर कोई असर नहीं पड़ता। लेकिन यह सही नहीं है। नेताओं को न सिर्फ दिमागी रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी पूरी तरह से स्वस्थ होना चाहिए। अगर वे शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हैं और सिर्फ दिमागी रूप से सक्षम हैं तो वे सरकारी सलाहकार बन सकते हैं लेकिन सक्रिय नेता नहीं।
एक नेता का कार्य होता है जमीनी स्तर पर काम करना और समुदाय को अपनी सेवाएं देना। उनसे शारीरिक रूप से सक्रिय रहने की उम्मीद की जाती है ताकि वे किसी भी आपदा के समय जरूरत पड़ने पर मौके पर तुरंत पहुंच सकें, समुदाय के बीच पहुंचने के लिए मीलों पैदल चल सकें और वह सब कर सकें जो जनता के लिए जरूरी हो।