नई दिल्ली, 4 मई (आईएएनएस)। हथकरघा संरक्षण अधिनियम में बदलाव की बात करते हुए डिजाइनर रितु कुमार देश में लाखों बुनकरों की दशा पर चिंतित नजर आती हैं, जो अपने जीविकोपार्जन के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। 1985 में अस्तित्व में आए इस अधिनियम का उद्देश्य हथकरघा बुनकरों को मशीन निर्मित और पावरलूम प्रतिस्पर्धियों से बचाना था।
नई दिल्ली, 4 मई (आईएएनएस)। हथकरघा संरक्षण अधिनियम में बदलाव की बात करते हुए डिजाइनर रितु कुमार देश में लाखों बुनकरों की दशा पर चिंतित नजर आती हैं, जो अपने जीविकोपार्जन के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। 1985 में अस्तित्व में आए इस अधिनियम का उद्देश्य हथकरघा बुनकरों को मशीन निर्मित और पावरलूम प्रतिस्पर्धियों से बचाना था।
भारतीय फैशन जगत में लोकप्रिय नाम रितु कुमार ने कहा कि हथकरघा अधिनियम में किसी भी तरह के बदलाव से न सिर्फ हमारे चार लाख बुनकरों के जीवन पर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि इससे देश में हथकरघा उद्योग भी तबाह हो जाएगा।
कुमार ने यहां एक साक्षात्कार के दौरान आईएएनएस को बताया, “इस अधिनियम ने दशकों से हथकरघा उद्योग को बचाकर रखा है। इसने धागे को सुरक्षित रख हमारे बुनकर समुदाय को सक्षम बनाया है। मशीन करघा (पावरलूम) के पक्ष में इस अधिनियम को हटाने का अभियान चलाया जा रहा है, जिसके मैं पूरी तरह से खिलाफ हूं।”
उन्होंने कहा, “यदि वे हथकरघा को दिया गया आरक्षण समाप्त करे देंगे तो इससे 44 लाख बुनकर प्रभावित होंगे और देश में हथकरघा उद्योग समाप्त हो जाएगा।”
ऐसा अंदेशा है कि सरकार की हथकरघा आरक्षण अधिनियम में संशोधन करने की योजना है। यह खबर हथकरघा उद्योग के समकक्ष समानता प्राप्त करने के लिए पावरलूम लॉबी द्वारा किए जा रहे प्रयासों का नतीजा है, जिसने सरकार को अधिनियम में संशोधन करने का आह्वान किया।
यह पूछे जाने पर कि क्या इस संशोधन से बुनकर प्रक्रिया प्रभावित होगी, कुमार ने कहा, “इससे पूरे बुनकर समुदाय का जीविकोपार्जन प्रभावित होगा।”
बुनकर समुदाय को बढ़ावा देने के लिए कुमार ने नई दिल्ली में एक साड़ी प्रदर्शनी का आयोजन किया। इसमें बंगाल के विशिष्ट हैंडब्लॉक छपाई वाले परिधानों को शामिल किया गया था।
इस संग्रह के लिए कुमार को डेनमार्क की पूर्व औपनिवेशिक कॉलोनी सेराम्पोर से प्रेरणा मिली।
कुमार ने बताया, “मैं यह समझने में असमर्थ हूं कि बुनकरों के लिए काम क्यों नहीं था। मैंने जो काम देखा, वह तो बहुत सुंदर और चकित करने वाला था। वे सिथेटिक की कीमत के समान ही अमेरिका को पोल्का डॉट छपाई वाले कपड़ों का निर्यात करते थे।”
उन्होंने आगे बताया, “यह एक प्राचीन विरासत है, जो एक बार फिर से हमारे दैनिक जीवन में लौट आई है।”