वाराणसी। विशेषज्ञ लगातार चेता रहे हैं कि काशी और नदियों के बीच प्राकृतिक तालमेल की अनदेखी कर लिए जा रहे निर्णयों से नगर और नागरिक गहरे संकट में आते जा रहे हैं। गंगा निर्मलीकरण की अरबों-खरबों की योजना जहां बेअसर साबित हो रही है वहीं असि नदी (प्रत्यक्ष में अस्सी नाला) के वजूद को समाप्त कर उसे सीवर लाइन का स्वरूप देने की कोशिश की जा रही है। वह भी ऐसे में जब सभी जानते हैं कि असि, वरुणा और गंगा सिर्फ नदी नहीं बल्कि काशी की रक्षक हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि असि नदी भले आज अस्सी नाले के रूप में हो लेकिन वह अपने प्रवाह से गंगा के दक्षिणी हिस्से की कटान से रक्षा करती है। ठीक उसी तरह जिस तरह वरुणा नदी अपने आवेग से शहर के उत्तरी हिस्से की रक्षा करती है।
शायद अब कोई रास्ता निकल सके इस संवाद से-गंगा को लेकर विशेषज्ञों का धैर्य जवाब देने लगा है। बीएचयू में गंगा अन्वेषण केंद्र के संस्थापक और महामना मालवीय इंस्ट्ीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फार गंगा मेनेजमेंट के निदेशक प्रो. यूके चौधरी ने 12 अप्रैल को गंगा एक्शन प्लान के इंजीनियरों व नदी विशेषज्ञों को एक मंच पर लाने और उनके बीच खुले विमर्श की तैयारी की है ताकि गंगा निर्मलीकरण योजना की हकीकत और विफलता की वजह तलाशी जा सके।
इस विमर्श में गंगा पाल्यूशन मैनेजमेंट, लखनऊ के चीफ इंजीनियर रमेश सिंह, आईआईटी कानपुर के प्रो. विनोद तारे, आईआईटी बीएचयू के पूर्व विभागाध्यक्ष आरके गुप्ता, गणित विभाग (बीएचयू) के अवकाश प्राप्त प्रो. बीएम पांडेय सहित कई अन्य इंजीनियर व विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे। बहस का मुद्दा होगा गंगा को नाली और नहर को नदी का मान क्यों। सवाल यह भी उठेगा कि अस्सी नाले में अब भी असि नदी के सारे गुण मौजूद हैं, फिर उसे नदी का रूप देने की बजाए उसे बड़ी सीवर लाइन में तब्दील करने का निर्णय कैसे लिया गया। साथ ही नदियों के हितों की अनदेखी कर लिए जा रहे निर्णयों का नगर और नागरिकों पर असर भी बनेगा बहस का मुद्दा।
अब भी जीवित है असि-
प्रो. चौधरी ने कहा कि असि नदी अब भी जीवित है। असि नदी का अवशिष्ट रूप अस्सी नाला है लेकिन इसके बाद भी नदी के सारे गुण मौजूद है। बताया कि नदी-अवशिष्ट को पैलियो रीवर कहते हैं। इसके साथ भूमिगत जलस्त्रोत जुड़ा रहता है। इस पैलियो रीवर की लंबाई और चौड़ाई की दिशा में जमीन की सतह में ढलाव होते हैं।