नई दिल्ली-| उत्तर कोरिया में किम जोंग उन के दमनकारी शासन से परेशान होकर किशोरावस्था में छुपकर चीन तथा फिर वहां से दक्षिण कोरिया भागने वाली हयनसियो ली की पुस्तक ‘द गर्ल्स विद सेवन नेम्स- ए नार्थ कोरियन डिफेक्टर्स स्टोरी’ के कुछ मुख्य अंश : परिवार और रिश्तेदार
मेरी मां के आठ भाई-बहन थे। सभी को अलग-अलग क्षेत्र में करियर बनाना था। मेरे छह मामा थे जिनका अलग-अलग व्यवसाय था।
पिता का गायब होना
प्योंगयांग के कुछ लोग एक पुल पर मेरे पिता का इंतजार कर रहे थे। वे सैन्य सुरक्षा कमांड के अधिकारी थे। यह संगठन सुरक्षा मंत्रालय से अलग था। यह खुफिया पुलिस थी जो सेना पर नजर रखती थी। 10 दिन बीत जाने के बाद भी पिता का पता नहीं चला। हमें बस यह पता चला कि उन्हें उनके काम के सिलसिले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है।
किम का क्रूर शासन
चीन में मैं सहानुभूति दर्शाने वाले लोगों से मिली जो किम के प्रति अपनी हैरानी जाहिर करते हुए कहते थे कि उनका शासन छह दशकों तक उत्तर कोरिया में अत्याचारी रहा है। किम का शासन हर किसी को क्रूर व्यवस्था का हिस्सा बनाने वाला रहा, चाहे वो ऊपरी तबके का हो या निचले तबके का। किसी की कोई नैतिकता नहीं थी और कोई भी दोषरहित नहीं था।
देश में अकाल
हीसान शहर में अंधेरा छा गया। हर तरफ भिखारी नजर आ रहे थे, विशेषकर बाजार में। ऐसा मैं देश में पहली बार देख रही थी। पहले जहां एक दो प्रवासी शहर की तरफ आते थे, वहीं ग्रामीण इलाके से बड़ी संख्या में प्रवासी आने लगे। बच्चों के माता-पिता भूख से मर गए और उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया।
उस रात, जब देश छोड़ कर भागी
मैं दिसंबर के दूसरे सप्ताह देश छोड़ कर निकली थी। मैंने रात का खाना लेने के बाद भाग निकलने का फैसला किया था और मैं मुश्किल से ही कुछ खा पाई। मेरे पास चीनी मुद्रा नहीं थी और मेरी मां मुझे पुराने कपड़ों के बैग के साथ घर से निकलते नहीं देख पाई। मेरी मां ने हर दिन की तरह उस शाम भी काफी खाना बनाया और मैंने उनसे पूछा, “आपने इतना खाना क्यों बनाया है?”
मेरी मां ने मुझसे कहा, “मैं सिर्फ तुम्हें अच्छा खाना परोसना चाहती थी।”
मुझे नहीं लगता कि उन्हें पता चल गया था कि मैं आगे क्या करने वाली हूं। और बस इसे विदाई से पहले का भोजन मान रही थी। उस शाम मैं जिनता खा सकती थी खाया।
सीमा पार करते वक्त
मैंने चलना शुरू किया। मेरी चाल तेज थी। अंतत: 10 यार्ड की दूरी थी, मैं लांग कोट में चांग-हो को देख सकती थी, जो नदी किनारे राइफल के साथ गश्ती कर रहे थे। किस्मत से वह अकेला था। वहां इतनी रोशनी थी कि किसी को देखा जा सकता था। मैंने उसका नाम लेकर उसे पुकारा। वह मुड़ा और अपनी टार्च जलाई। जब तक वह मुझे कुछ कहता है मैंने कहा, “मैं अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए सीमा पार कर रही हूं। मैंने देखा उसने त्योरियां चढ़ा लीं। मैंने कभी भी उसे अपने रिश्तेदार के बारे में नहीं बताया था।”
उसने मुझसे कहा कि मैं बड़ी समस्या में फंस सकती हूं। तुम्हें चीनी भाषा नहीं आती। तुम अकेली हो।
चीन में गुजरा वक्त
चीन में वह सू जिन के नाम से रह रही थी और हमेशा लगता था कि कोई पीछा कर रहा है। एक दिन पुलिस घर आई और पहचान पत्र मांगा। उसके पास नहीं था। उसे फिर जीटा रोड पुलिस थाने ले जाया गया, फिर उसे उत्तर कोरिया भेज दिया। वह बोविबु में तीन महीने कारावास में रही। वहां बहुत गंदगी थी और खाना भी साफ-सुथरा नहीं था, जो कोई उस कारावास में आता उसे डायरिया हो जाता और इससे कई लोगों को जानें चली गई थीं।
अपनी रिहाई पर मैंने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया, जिसके मुताबिक, मैं कभी देश से भागने की कोशिश नहीं करूंगी। मुझे पता था कि अगर दूसरी बार पकड़ी गई तो जिंदा नहीं बचूंगी। जूते की मार तथा पिटाई के दाग पैर में नजर आते थे। मैंने यह जान लिया कि चीन में रहना खतरनाक है और फिर दक्षिण कोरिया जाने का निश्चिय किया।
भगोड़े लोगों का स्वर्ग
मेरा दु:स्वपन समाप्त हुआ, लेकिन यह दक्षिण कोरिया था, जहां स्वर्ग मिला। यहां कई लोग अपने देश से भाग आए थे और उनके मन में अत्यधिक-प्रतियोगी रोजगार क्षेत्र में प्रवेश करने को लेकर घबराहट थी।
बसना
उत्तर कोरिया की बस्ती बनाने से बचने के लिए दक्षिण कोरिया सरकार ने वहां भागे लोगों को देश भर के अलग-अलग शहरों में फैला दिया। हमें अपना स्थान चुनने की आजादी नहीं दी गई। 99 प्रतिशत सियोल में रहना चाहते थे, लेकिन वहां घर की कमी थी, कुछ को ही वहां रहना नसीब हुआ। हम सभी को 18,500 डॉलर घर खर्च के लिए दिए गए।