नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)। प्रशिक्षित और कुशल मानव संसाधन एक प्रभावी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की बुनियादी जरूरत होते हैं, हालांकि भारत में प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की कमी बड़ी चुनौती बनी हुई है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में नवीन अनुसंधानों से जुड़ी संस्था ‘नेटहेल्थ’ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इस समय तकरीबन 20 लाख चिकित्सकों और 40 लाख नर्सो की कमी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या सीमित है और सुविधाओं का हाल भी बुरा है।
नेटहेल्थ की रिपोर्ट में कहा गया है, “देश के आठ प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कोई चिकित्सक या स्वास्थ्यकर्मी ही नहीं है, जबकि 39 प्रतिशत केंद्रों में लैब तकनीशियन नदारद हैं। यहां तक कि 18 प्रतिशत प्राथमिक केंद्रों पर एक भी फार्मासिस्ट नहीं है।”
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि लगभग 50 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मी औपचारिक स्वास्थ्य प्रणाली के अनुसार प्रैक्टिस नहीं करते। वहीं, योजना आयोग का कहना है कि नर्स और चिकित्सकों का अनुपात कम से कम 1 : 3 होना चाहिए, जबकि देश में इस समय यह अनुपात 1 : 16 का है।
नेटहेल्थ के महासचिव अंजन बोस ने बताया, “स्वास्थ्यकर्मियों की आपूर्ति को बढ़ाना एक प्राथमिकता है। मेडिकल की सीटों में भौगोलिक वितरण के अनुरूप आपूर्ति के लिए एक योजना विकसित करने की जरूरत है। हमें चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में निजी भागीदारी को प्रभावी बनाने वाले नियमों की जरूरत है। प्रौद्योगिकी को कम लागत में कौशल विकास में तेजी लाने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “किसी भी स्वास्थ्य प्रणाली में स्वास्थ्यकर्मी सेवाओं की प्रकृति और गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। भारत में एमबीबीएस छात्र नौकरी पाने में असमर्थ हैं, परिणास्वरूप मजबूरीवश उन्हें एक विशेष क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करनी पड़ती है। एमबीबीएस ग्रेजुएट छात्रों के लिए विकल्पों में सुधार की जरूरत है और पीएचसी/सीएचसी या निजी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ग्रेजुएट छात्रों के लिए एक से दो साल का सेवा अनुबंध अनिवार्य करने पर विचार करना चाहिए।”
नेटहेल्थ की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में मांग को देखते हुए वर्ष 2025 तक चिकित्सकों, नर्सो और सहायक स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 1.5 से दो करोड़ नौकरियां सृजित होने की उम्मीद है।