भारत में केंद्र और प्रांतीय सरकारें विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं. पर्यटन अर्थव्यवस्था के लिए अहम है, लेकिन विदेशी पर्यटक भी तभी आएंगे जब देसी सैलानियों के लिए सुविधाओं की संरचना बनेगी.
सालों से भारत के पर्यटन अधिकारी विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के कार्यक्रमों पर काम कर रहे हैं और कई तरह की कोशिशें भी कर रहे हैं. लेकिन ये कोशिशें कुछ समय की कोशिशें साबित होती हैं. अपने आकार और दर्शनीय स्थलों के लिहाज से भारत पर्यटन उद्योग की संभावनाओं का फायदा नहीं उठा पाया है. पिछले महीनों में भारत में विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ी है लेकिन अभी भी सबसे बड़ी बाधा परिवहन संरचनाओं का अभाव और सुरक्षा की चिंता है. जिन इलाकों में जान को खतरा हो, जाने-आने में समय की पाबंदी न हो, रात गुजारने के लिए सही कीमत वाले साफ सुथरे होटल न हों, वहां कौन जाना चाहेगा.
पर्यटन उद्योग से जुड़े कुछ आंकड़े देखें तो उद्योग की इस शाखा की अहमियत पता चलती है. विमान कंपनी एमीरेट्स, दुबई एयरपोर्ट और विमानन उद्योग ने 2013 में दुबई की अर्थव्यवस्था में 26.7 अरब डॉलर का योगदान दिया जो दुबई के सकल राष्ट्रीय उत्पादन का 27 प्रतिशत है. जर्मनी दुनिया का 7वां लोकप्रिय पर्यटन लक्ष्य है. 8 करोड़ की आबादी वाले जर्मनी में 2013 में 3 करोड़ से ज्यादा विदेशी पर्यटक आए, जिससे देश को करीब 40 अरब डॉलर की आमदनी हुई. विदेशी पर्यटन से भारत ने सिर्फ 18 अरब डॉलर कमाए. चोटी के दस देशों में एशिया से सिर्फ चीन और थाइलैंड हैं.
एशिया में भी भारत किसी तरह चोटी के दस में जगह बना पाया है.ये आंकड़े राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में पर्यटन उद्योग के महत्व को दिखाते हैं. लेकिन, सैलानियों को सुविधाएं देकर आकर्षित करना होगा. कोई अपनी छुट्टियां परेशानी में नहीं गुजारना चाहता. भारत के अधिकारियों और पर्यटन उद्योग को समझना होगा कि बाहरी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए उचित माहौल बनाना जरूरी है. दोस्ती, सहिष्णुता और स्वागत का माहौल पर्यटन के लिए जरूरी है. पर्यटन का ढांचा बनाने की शुरुआत स्थानीय सैलानियों को ध्यान में रख कर करनी होगी. रेल और हवाई टिकटों की संख्या बढ़ानी होगी. अलग अलग कोटि के होटल बनाने होंगे. यदि स्थानीय पर्यटकों के लिए ढांचा उपलब्ध होगा तो उसका इस्तेमाल विदेशी पर्यटक भी कर पाएंगे. विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए उन्हें कार, बस या रात गुजारने के लिए होटल जैसी विशेष सुविधाएं उपलब्ध करना काफी नहीं है. वसुधैव कुटुंबकम को सिद्धांत से बाहर निकाल कर अमल में लाना होगा. पर्यटन प्रबंधकों की मानसिकता में बड़े बदलाव की जरूरत है.
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संपादन-धर्मपथ टीम