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 देवरिया बालिका आश्रय गृह : बंद दरवाजे कर रहे ‘दर्द’ बयां | dharmpath.com

Tuesday , 22 April 2025

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देवरिया बालिका आश्रय गृह : बंद दरवाजे कर रहे ‘दर्द’ बयां

देवरिया, 21 अक्टूबर (आईएएनएस)। देवरिया का स्टेशन रोड अभी भी राहगीरों से गुलजार है। ट्रेन के आने-जाने की आवाजों के बीच शहरवासी देवरिया बालिका आश्रय गृह के सामने से गुजरते जा रहे हैं।

देवरिया, 21 अक्टूबर (आईएएनएस)। देवरिया का स्टेशन रोड अभी भी राहगीरों से गुलजार है। ट्रेन के आने-जाने की आवाजों के बीच शहरवासी देवरिया बालिका आश्रय गृह के सामने से गुजरते जा रहे हैं।

मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं सामाजिक सेवा संस्थान के जरिए संचालित बालिका आश्रय गृह के दरवाजों पर सीलबंद ताला लटका हुआ है। दरवाजे व खिड़कियां सभी बंद हैं। आश्रय गृह के दरवाजों पर ‘श्री घनश्याम दास सिंगतिया आर्य ट्रस्ट, देवरिया’ का नोटिस चिपका हुआ है। यह नोटिस गिरजा त्रिपाठी के नाम से चस्पा है।

इस नोटिस में गिरिजा त्रिपाठी के अवैध व अमानवीय व्यवहार का हवाला देकर भवन को खाली करने का नोटिस दिया गया है। यह नोटिस 9 अगस्त, 2018 को चस्पा किया गया था। नोटिस में भूतल पर पर तीन कमरे व आंगन की बात कही गई है, जिसमें यह आश्रय गृह चलता था।

सील लगे ताले अपनी कहानी खुद बयां कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ जर्जर इमारत भी बालिकाओं व महिलाओं का रहन-सहन बताने के लिए काफी है।

बालिका आश्रय गृह की ऊपर की गैलरी सुनसान पड़ी है। दिख रहा है तो बस दीवारों पर लिखे कक्ष के नाम। इन कमरों पर लक्ष्मीबाई कक्ष, अरावली कक्ष, नीलगिरि कक्ष, मंदाकिनी कक्ष आदि नाम लिखे हैं।

शायद इन्हीं नाम से किसी बालिका को प्रेरणा मिली हो, जिसने लक्ष्मीबाई की तरह विद्रोह कर समाज के सामने सच लाने का काम किया।

बालिका गृह की इमारत के सड़क वाले रुख की तरफ दुकानें हैं। इन्हीं दुकानों में से एक फोटो कॉपी की दुकान चलाने वाले विनोद मोहन पांडेय बताते हैं कि कभी ऊपर लड़कियां गलियारों या छज्‍जो में आती-जाती या खड़ी नहीं दिखाई दी। बालिका गृह का एक दरवाजा स्टेशन रोड के प्रमुख मार्ग पर खुलता है। इसके बगल में वैद्य अखिलेश की दुकान है, जिसमें ताला पड़ा हुआ है। इसी आश्रय गृह से ठीक पश्चिम सटे शराब की दुकान है, जहां ठंडी बीयर की सुविधा दिन-रात उपलब्ध है।

विनोद मोहन पांडेय से यह पूछने पर कि क्या लड़कियां कभी खेलती हुई नहीं दिखाई दीं या ऊपर धम्म-धम्म की आवाज होती थी? पांडेय कहते हैं कि इस तरह की आवाज कभी नहीं आई। बालिका गृह की इमारत पुरानी है, लेकिन इसकी दीवारें काफी मोटी हैं।

स्टेशन रोड शहर के मुख्य बाजार का प्रमुख हिस्सा है। इससे चंद कदम की दूरी पर रेलवे स्टेशन है, जहां से आप कभी भी ट्रेन कहीं के लिए पकड़ सकते हैं, यहां रोक-टोक कम होती है।

आसपास के लोग बताते हैं कि अक्सर पुलिस व प्रशासन के अधिकारी बालिकाओं व महिलाओं को लेकर यहां आते-जाते रहते थे। जिला प्रोबेशन अधिकारी का भी आना-जाना होता रहता था। पुलिस प्रशासन के आने-जाने से लोगों को कभी-कोई शक-सुब्हा नहीं हुआ।

बालिका गृह की पुरानी इमारत अपने आप में बालिकाओं के रहन-सहन की कहानी कह रही है। तंग खिड़कियां, जिससे होकर रोशनी व हवा शायद ही कभी खुल के बाहर व भीतर जाती रही हो।

आश्रय गृह का एक दरवाजा स्टेशन रोड पर खुलता है तो दो दरवाजे पश्चिम की तरफ जाने वाली गली में खुलते हैं। इन दरवाजों पर भी सील लगे ताले लटक रहे हैं और ‘श्री घनश्याम दास सिंगतिया आर्य ट्रस्ट, देवरिया’ का नोटिस चस्पा है।

ऐसा लगता है, मानों दरवाजों पर सील लगे ताले की तरह बालिकाओं के जज्ब दर्द दीवारों, छतों व छत्तों के जरिए लोगों से अपनी कहानी कह रहे हों।

आश्रय गृह के पश्चिम तरफ की गली में पड़ोस में रहने वाली एक महिला नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहती है कि गिरिजा त्रिपाठी को आस-पास की महिलाएं ‘अम्मा जी’ कहकर बुलाती थीं। महिला का कहना है कि अम्मा जी अक्सर गली की तरफ के कमरों में बैठती थीं, उनके दर्शन अक्सर हो जाते थे।

लेकिन यह पूछने पर कि क्या वह कभी अंदर गई है, तो बोली- ‘नहीं, कभी नहीं।’

अम्मा जी के नाम से गिरिजा त्रिपाठी ने क्या रसूख बना लिया था, यह इस बात से समझा जा सकता है।

पूर्वाचल का एक छोटे से जिले देवरिया में पड़ोसी अपने घर के हाल से ज्यादा दूसरे के घर का हाल जानते हैं। लोगों के पास-एक दूसरे को जानने व समझने का पूरा मौका होता है और लोग एक-दूसरे पूरा मौका देते हैं।

गिरिजा त्रिपाठी ‘संकल्प परिवार परामर्श केंद्र’ भी चलाती थी। यह नाम दरवाजों के बगल की दीवार पर नीले रंग के पेंट से लिखा हुआ है।

शहर के मुख्य मार्ग पर यह भवन गिरिजा ने 1 जनवरी, 2005 को ट्रस्ट से लिया और फिर हर तीन साल पर अनुबंध का नवीनीकरण कराती रही। इस भवन का किराएदारी अनुबंध वर्ष 2020 तक का है। गिरिजा इस भवन के बदले ट्रस्ट को 3010 रुपये किराया देते थी। इसके बाद जलकर व गृहकर का भुगतान अलग से। ये बातें चस्पा नोटिस में लिखी हैं।

गिरिजा पर भवन के किराए के तौर पर 85,985 रुपये बकाया है। शहर के मुख्य इलाके में यह भवन पा जाना आम बात नहीं है। यह गिरिजा की पहुंच ही थी, जिससे यह संभव हुआ था।

मुख्य मार्ग की तरफ छज्‍जो में अरावली कक्ष के बाहर मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं सामाजिक संस्थान के नाम वाला बोर्ड लगा है, जो जंग खाया हुआ है। इसी छज्‍जो में टंगे बोर्ड पर गिरिजा की बेटी कंचनलता का नाम लिखा है और इस पर प्रोबेशन अधिकारी के तौर पर एन.पी.सिंह का नाम लिखा हुआ है।

जर्जर भवन बहुत सारी बातें खुद कह रहा है। इस आश्रय गृह में बहुत से मासूम बालिकाओं के दर्द कैद हैं। बाहर के गलियारे की रेलिंग सीमेंट के पतले पायों व लकड़ी की बनी है। बालिका आश्रय गृह के बगल में शराब की दुकान धड़ल्ले से चल रही है। अभी भी शराब के शौकीन अपने गले तर कर रहे हैं। आश्रय गृह के गलियारे में एक बैनर पड़ा है, जिस पर गिरिजा की तस्वीर है। बगल में लगे बोर्ड पर बेटी कंचनलता का नाम है। मां-बेटी संस्थान की प्रमुख कर्ताधर्ता थीं।

इसी गली में पश्चिम की तरफ कार्ड-पर्चा प्रिंटिंग की दुकान है। दुकान में बैठे विवेकानंद पांडेय बताते हैं कि बालिका आश्रय गृह पूरा कैदखाने की तरह है। सारे फाटक बंद रहते हैं। वह कहते हैं, “हम लोगों को संदेह होता था कि इतनी गोपनीयता क्यों बरती जाती है। लेकिन हर दूसरे दिन पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों के आने से संदेह दूर हो जाता था।”

विवेकानंद बताते हैं कि यौन प्रताड़ना के मामले के खुलासे के बाद करीब 30 लड़कियां बालिका आश्रय गृह से बरामद की गई थीं। एसआईटी मामले की जांच कर रही है।

गिरिजा त्रिपाठी से अब सामूहिक विवाह कार्यक्रम की जिम्मेदारी ले ली गई है। गिरिजा, उसके पति मोहन त्रिपाठी व बेटी कंचनलता अब सलाखों के पीछे हैं।

आश्रय गृह के नीचे फोटोकॉपी की दुकान वाले विनोद मोहन पांडेय बताते हैं कि गिरिजा के पति मोहन त्रिपाठी व बेटे अक्सर उनके पास कागजात की फोटोकॉपी कराने आते थे, लेकिन कभी कुछ पता नहीं चला। भनक तक नहीं लगी।

आश्रय गृह के छज्‍जो से मां विंध्यवासिनी म.प्र.एवं सामाजिक सेवा संस्थान जूनियर हाईस्कूल का बोर्ड लटक रहा है, जो गिरिजा के एक और ‘घोटाले’ को इंगित कर रहा है।

देवरिया शहर का स्टेशन रोड 24 घंटे चलता-रहता है, लोगों की आवाजाही के बीच यह बालिका आश्रय गृह सवाल करता भी नजर आता है। बेटियों की सिसकियां और प्रधानमंत्री के ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ नारे को भी दोहराता है। बालिका आश्रय गृह के हालात कमोबेश मुजफ्फरपुर जैसे ही हैं। भले ही जिला व शहर बदल जाएं, लेकिन हालात शायद ही बदलते हैं। इसलिए भूलिए नहीं, इस तरह के बालिका गृह कांडों को..। सतर्क रहिए, जानने का प्रयास कीजिए कि आपके आसपास क्या कुछ हो रहा है।

देवरिया बालिका आश्रय गृह : बंद दरवाजे कर रहे ‘दर्द’ बयां Reviewed by on . देवरिया, 21 अक्टूबर (आईएएनएस)। देवरिया का स्टेशन रोड अभी भी राहगीरों से गुलजार है। ट्रेन के आने-जाने की आवाजों के बीच शहरवासी देवरिया बालिका आश्रय गृह के सामने देवरिया, 21 अक्टूबर (आईएएनएस)। देवरिया का स्टेशन रोड अभी भी राहगीरों से गुलजार है। ट्रेन के आने-जाने की आवाजों के बीच शहरवासी देवरिया बालिका आश्रय गृह के सामने Rating:
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