मुंबई, 3 मई (आईएएनएस)। अंटार्कटिक सागर की बर्फीली चादर पिछले एक दशक से बहुत तेजी से घट रही है। गुरुत्वाकर्षण उपग्रह डेटा का प्रयोग करते हुए किए गए विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने पाया है कि अंटार्कटिक की विशाल हिम चादर का पश्चिमी हिस्सा, पूर्वी हिस्से की अपेक्षा दोगुना पिघल चुका है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिणी महाद्वीप की बर्फीली टोपी बहुत तेजी से पिघल रही है।
शोधकर्ताओं ने अंटार्कटिक की बर्फीली चादर का मूल्यांकन किया और पाया कि साल 2003 से 2014 तक यह चादर हर साल 92 अरब टन पिघली है।
साल 2008 में पश्चिमी अंटार्कटिका के अस्थाई हिमदनों की संख्या दोगुनी हो गई। शोधकर्ताओं ने पाया कि 2014 तक बर्फ पिघलने की दर औसत से दोगुनी हो चुकी है।
प्रिंसटन विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के सहायक प्रोफेसर और शोध के सह-लेखक फ्रेडरिक साइमन्स ने बताया, “बर्फ के पिघलाव की दर में तेजी से हो रही वृद्धि और सबूतों के प्रकाश में अधिकतर वज्ञानिकों को उस तंत्र की खोज करने में मुश्किल होगी, जिसमें मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन शामिल न हो।”
प्रिंसटन विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के शोध सहायक और शोध के प्रथम लेखक क्रिस्टोफर हैरिग ने कहा, ” प्रिंसटन अध्ययन दर्शाता है कि पश्चिमी अंटार्कटिक में बर्फ का पिघलाव पहले से कहीं बहुत ज्यादा है।”
शोधकर्ताओं ने पाया कि 11 साल की अवधि के दौरान पूरे अंटार्कटिक में बर्फ पिघलाव की दर प्रतिवर्ष छह अरब टन बढ़ी है।
अंटार्कटिक में, हवाई तापमान के बजाए समुद्र प्रवाह के कारण बर्फ पिघल रही है और पिघली बर्फ से समुद्र के स्तर में वृद्धि, हिमनदों के पिघलने से समुद्र स्तर में होने वाली वद्धि से अधिक है।
जैसे-जैसे समुद्र गर्म होता है, वैसे-वैसे तैरती हुई बर्फीली चट्टानें पिघलती हैं और फिर वे जमीनी बर्फ से वापस नहीं जुड़ पातीं।
हेरिग और साइमंस ने एक अनोखी डेटा-विश्लेषण विधि विकसित की है, जिससे वे विशेष अंटार्कटिक क्षेत्रों में अलग ग्रेस डेटा तैयार कर सकते हैं।
रुटगर्स विश्वविद्यालय में भू एवं ग्रह विज्ञान के सहायक प्रोफेसर रॉबर्ट कॉप ने बताया, “इस शोध की उल्लेखनीय विशेषता गुरुत्व डेटा में क्षेत्रों को भौगोलिक रूप से सुलझाने की विधि की शक्ति है।”
यह शोध ‘अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंस लेटर्स’ जर्नल में प्रकाशित हुआ।