पटना, 12 अक्टूबर- दीपावली यानी ज्योति पर्व अंधेरे पर उजाले की जीत की गाथा भले ही सुनाती हो, मगर अंधेरे को हराने के लिए प्राचीन काल से जो जरिया हम अपनाते रहे हैं, अब उसकी रोशनी मद्धिम पड़ती जा रही है। रोशनी के पर्व न तेल और न ही बाती, अब तो ड्रैगन लाइटों (चीन निर्मित बल्ब) की रोशनी के बीच धन-धान्य की देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना होने लगी है।
दीपावली को लेकर सजे बाजार झालर, बल्ब और मटका समेत रोशनी के कई आइटमों से पटा है। इस जगमगाती रोशनी की चमक-दमक के आगे भारतीय परंपरागत रोशनी के जरिए अब दम तोड़ रहे हैं।
त्योहार में घरों को रोशन करने के लिए बाजार में जेल राइस, एलईडी, क्रिस्टल, मटका, पाइप लाइट, रॉकेट एलईडी, उड़हुल फूल और मिर्ची झालर के साथ दर्जनों आइटम हैं। इन बाजारों में भी दीया और मोमबती हैं, लेकिन इन दीयों में तेल और रूई की बाती नहीं है। ये दीये और मोमबती बिजली से रोशन होते हैं।
दीये जलाने की परंपरा पर ड्रैगन बाजार के प्रहार के कारण एक खास जाति के रोजीरोटी पर भी आफत आ गई है। उनके लिए पर्व-त्योहार सालभर की कमाई का जरिया होता था, लेकिन अब विदेशी ‘घुसपैठ’ के कारण त्योहार तो देसी मनाया जा रहा है, मगर तरीका विदेशी हो गया है।
झालर के कारोबार से जुड़े पटना के चांदनी मार्केट के व्यवसायी विपिन कुमार कहते हैं कि यूं तो पटना में सालभर ऐसी लाइटों की बिक्री होती ही रहती है, मगर दीपावली में इसकी बिक्री पांच गुना बढ़ जाती है। दीपावली को लेकर बाजार नए आइटमों से भर गया है। इसमें लेजर लाइट से लेकर वाटरप्रूफ लाइट तक शामिल हो गई हैं।
संजय मार्केट के पटना इलेक्ट्रिक के राजेश गुप्ता बताते हैं, “बाजार में हर रेंज और डिजाइन में चाइनीज बल्ब आ चुके हैं। अभी जो भी ऑर्डर मिल रहे हैं, वे सभी दुकानदारों के आ रहे हैं।”
वह कहते हैं कि बाजार में विभिन्न किस्मों के चीनी और भारतीय बल्ब हैं, लेकिन चाइनीज एलईडी बल्बों के प्रति लोगों का आकर्षण अधिक है। इनमें एलईडी पाइप एवं पट्टा लाइट की बिक्री अधिक हो रही है।
एक अन्य दुकानदार कहते हैं कि भगवान की आकृति वाली लाइट भी लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। म्यूजिक मंत्र वाली लाइट, शिव-पार्वती और गणेश की प्रतिमा पर लाइट, पान के पत्ते पर गणेश लाइट भी लोग पसंद कर रहे हैं।
पटना के इलेक्ट्रिक मार्केट और झालर बाजार में जहां चाइनीज बल्बों का कब्जा है, वहीं मिट्टी के दीयों का कारोबार ठप पड़ गया है। मिट्टी के दीये के कारोबार करने वाले अब दीपावली को लेकर बहुत ज्यादा दीया नहीं बनाते।
पटना के राजा बाजार में दीया के कारोबारी मथुरा प्रजापति कहते हैं कि चार-पांच वर्ष पूर्व तक जहां वे 20 हजार दीया आसानी से बेच लेते थे, वहीं अब पांच हजार दीये भी मुश्किल से बिक पाते हैं।
वह बताते हैं कि अब तो दीपावली से ज्यादा दीये शादी-ब्याह के लग्न के दौरान बिक जाते हैं। अब लोगों के आशियाने भी छोटे होते जा रहे हैं और पर्व मनाने की परंपराएं भी बदल रही हैं।