लखनऊ, 31 जनवरी (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किसानों के फायदे के लिए कामधेनु योजना की शुरुआत की थी। अखिलेश खुद कई मौके पर इस योजना की प्रशंसा भी कर चुके हैं लेकिन हकीकत यह है कि राज्य सरकार की कामधेनु योजना का लाभ खुद मुख्यमंत्री की पत्नी व कन्नौज से सांसद डिम्पल यादव के संसदीय क्षेत्र के किसानों को भी नहीं मिल पा रहा है।
लखनऊ, 31 जनवरी (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किसानों के फायदे के लिए कामधेनु योजना की शुरुआत की थी। अखिलेश खुद कई मौके पर इस योजना की प्रशंसा भी कर चुके हैं लेकिन हकीकत यह है कि राज्य सरकार की कामधेनु योजना का लाभ खुद मुख्यमंत्री की पत्नी व कन्नौज से सांसद डिम्पल यादव के संसदीय क्षेत्र के किसानों को भी नहीं मिल पा रहा है।
पशुपालन विभाग के अधिकारियों की माने तो इच्छुक किसानों को बैंकों का चक्कर काटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
किसानों की शिकायत है कि वह चाहते हैं कि इस योजना का लाभ उनको मिले और इसके लिए उनकी तरफ से कोशिशें भी हो रही हैं लेकिन मुख्यमंत्री की इस ड्रीम योजना माइक्रो कामधेनु विभाग की शिथिलता और बैंकों की उदासीनता के चलते कामयाब नहीं हो पा रही है।
आजमगढ़ के एक लघु किसान शकील अहमद की शिकायत है कि 25 पशुओं वाली माइक्रो कामधेनु योजना के लिए वह कई महीनों से बैंक के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन काम नहीं हो रहा है। बैंकों की उदासीनता के चलते वह इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं।
शकील अहमद जैसी शिकायत बनारस के असलम बेग, बलिया के हरिकिशोर सिंह की भी है। इन लोगों की भी यही शिकायत है कि मुख्यमंत्री ने छोटे किसानों के लिये इस योजना की शुरुआत की थी लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है।
पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया कि इस तरह की शिकायतें लगातार आ रही हैं। दरअसल, विभाग की मानें तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उप्र में 2500 माइक्रो कामधेनु स्थापित करने का लक्ष्य रखा था। इस योजना का लाभ लेने के लिये प्रदेश भर से करीब 7000 लघु किसानों ने आवेदन किया लेकिन केवल 68 किसानों के यहां ही माइक्रो कामधेनु डेयरी लग पाई हैं।
विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस से विशेष बातचीत के दौरान इस बात को स्वीकार किया कि बैंकों व विभाग के ढुलमुल रवैये की वजह से मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट को ग्रहण लग रहा है।
अधिकारी ने बताया, “लघु व सीमांत किसानों को ऋण उपलब्ध कराने में बैंक आनाकानी तो करते ही हैं, पशु पालन विभाग के अधिकारी भी इसमें रुचि नहीं दिखाते हैं। छोटे किसानों की ऊपर तक पहुंच नहीं होती लिहाजा कई महीने का चक्कर काटने के बाद भी उन्हें इस तरह की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।”
पशुपालन विभाग के इस अधिकारी ने बताया कि विभाग के आंकड़े ही खुद इस योजना को लेकर विभागीय अधिकारियों की सक्रियता की पोल खोल रहे हैं। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री की पत्नी और सांसद डिंपल यादव के संसदीय क्षेत्र कन्नौज सहित दो दर्जन जिलों में एक भी माइक्रो कामधेनु डेयरी अभी तक नहीं खुल पाई है।
विभागीय सूत्रों की मानें तो लखनऊ में 50 डेयरी स्थापना के लिए 49 आवेदन आए थे। कन्नौज में 40 डेयरियों के लिए 100 से अधिक आवेदन आए थे लेकिन इन दोनों जिलों में भी एक भी डेयरी का लाभ किसानों को नहीं मिला।
विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, सिद्धार्थनगर, रामपुर, गोरखपुर, चित्रकूट, अंबेडकरनगर, बरेली, मऊ, वाराणसी, जौनपुर, प्रतापगढ़, पीलीभीत, इटावा, गाजियाबाद, इलाहाबाद, मथुरा, अमेठी, बदायूं, गोंडा और झांसी में भी एक भी डेयरी नहीं स्थापित हो पाई है।
पशुपालन विभाग व बैंकों की इस निष्क्रियता को लेकर किसान नेता शारदानंद सिंह ने भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों के लिए यह अच्छी योजना है लेकिन इसका सही क्रियान्वयन जरूरी है। मुख्यमंत्री को इन समस्याओं का संज्ञान लेना चाहिए ताकि छोटे किसानों को इस योजना का लाभ मिल सके।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार के तय मानक के मुताबिक, माइक्रो कामधेनु योजना स्थापित करने के लिए कुल लागत 26 लाख 99 हजार रुपये निर्धारित की गई है। इस योजना के लाभार्थी को 674750 रुपये ही वहन करना होता है। बाकी का पैसा बैंक की ओर से ऋण के तौर पर मुहैया कराया जाता है। ऋण के लिए ही किसानों को कई महीनों तक बैकों का चक्कर काटना पड़ता है।