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 झारखंड : लातेहार में आदिवासी महिलाओं के सशक्तिकरण की गाथा लिख रही ‘रानी मिस्त्री’ | dharmpath.com

Saturday , 30 November 2024

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झारखंड : लातेहार में आदिवासी महिलाओं के सशक्तिकरण की गाथा लिख रही ‘रानी मिस्त्री’

लातेहार (झारखंड), 25 फरवरी (आईएएनएस)। झारखंड के लातेहार जिले के सदर प्रखंड के उदयपुरा गांव की रहने वाली सुनीता देवी ने कभी यह सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस काम को उन्होंने मजबूरी में और अधिकारियों की डांट खाकर करना प्रारंभ किया आज वही काम उन्हें न केवल राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार दिलाएगा बल्कि समाज में सम्मान भी बढ़ाएगा।

लातेहार (झारखंड), 25 फरवरी (आईएएनएस)। झारखंड के लातेहार जिले के सदर प्रखंड के उदयपुरा गांव की रहने वाली सुनीता देवी ने कभी यह सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस काम को उन्होंने मजबूरी में और अधिकारियों की डांट खाकर करना प्रारंभ किया आज वही काम उन्हें न केवल राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार दिलाएगा बल्कि समाज में सम्मान भी बढ़ाएगा।

गांव की पगडंडियों पर पैदल चलकर महिलाओं के बीच जागरूकता की अलख जगानेवाली रानी मिस्त्री ने अब तक पुरूषों का कार्यक्षेत्र माने जानेवाले राज मिस्त्री में एक नई क्रांति का आगाज किया है। चापानल मिस्त्री और राज मिस्त्री के कार्यो में पारंगत रानी मिस्त्री आज न केवल महिलाओं को इन दोनों कार्यों में महिलाओं को प्रशिक्षित कर रही हैं बल्कि इस क्षेत्र में अनूठी मिसाल पेश कर महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा बन चुकी हैं।

लातेहार के सदर प्रखंड अंतर्गत उदयपुरा ग्राम में रहने वाली सीधी सादी आदिवासी महिला सुनिता देवी का चयन भारत की महिलाओं को दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान नारी शक्ति पुरस्कार के लिए किया गया है। आठ मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक समारोह में यह उपाधि एवं पुरस्कार स्वरुप एक लाख रुपये प्रदान किए जाएंगे।

भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा यह सम्मान महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में असाधारण कार्य करने के लिए प्रत्येक वर्ष देश भर की चुनिंदा महिलाओं को दिया जाता है।

सुनीता आईएएनएस को बताती हैं कि दो साल पहले उदयपुरा में कार्यरत स्वयं सहायता समूह को स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक सौ शौचालय निर्माण कराने का काम सौंपा गया था परंतु राज मिस्त्री के नहीं मिलने या इस छोटे कामों से उनके इंकार करने के कारण उसने खुद करनी और सुत्ता संभाल ली। उन्होंने बताया कि इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा मामूली प्रशिक्षण दिया गया और फिर खुद मिस्त्री बन गई।

इसके बाद हम 20-25 महिलाओं ने शौचालय का निर्माण कर दिया। इसके बाद तो फिर इसमें पैसे की कमाई भी होने लगी और आनंद भी आने लगा।

चतरा क्षेत्र के सांसद सुनील कुमार सिंह ने सुनीता देवी को इस पुरस्कार के लिए बधाई देते हुए कहते हैं, “जिला लातेहार की सुनीता देवी को राष्ट्रीय महिला नागरिकता सम्मान की उपाधि राष्ट्रपति के द्वारा 8 मार्च को मिलेगी। यह हम सबके लिए गर्व की बात है। पुरस्कार रूप में 1 लाख रुपए व प्रमाणपत्र दिया जाएगा। इसके लिए सुनीता एवं जिला को बहुत बहुत शुभकामनाएं।” उन्होंने कहा कि सुनीता ने एक मां, एक रानी मिस्त्री और गांव में बदलाव के वाहक के रूप में सराहनीय कार्य किया है।

लातेहार के सांसद प्रतिनिधि मुकेश कुमर पांडेय ने आईएएनएस से कहा कि महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वच्छता के ज्वलंत मुद्दों से प्ररित होकर एक गृहिणी, राजमिस्त्री और बदलाव करने की सुनीता बेजोड़ मिसाल है। उसने इस गांव के सभी को

स्वच्छता के दायरे में लाने के अभियान का नेतृत्व किया तथा गांव को खुले में शौच से मुक्त कराने में लोगों को प्रोत्साहित किया।

सुनीता कहती हैं कि प्रारंभ में इस कार्य के लिए न केवल पुरूष समाज के ताने सुनने को मिले बल्कि कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। सुनीता अब तक 1500 से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को राजमिस्त्री का प्रशिक्षण दे चुकी है।

वे कहती हैं, “पहले इस जिले में निर्माण के क्षेत्र में महिलाओं को अकुशल मजदूर के रूप में ही मान्यता मिली थी, जो राजमिस्त्री को सीमेंट, ईंट, बालू और पानी का प्रबंध करती थी परंतु आज 1500 से ज्यादा महिलाएं खुद राजमिस्त्री बनकर न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनी हैं बल्कि सशक्त भी हुई हैं।”

रानी अपनी इस सफलता के पीछे अपने परिवार का भी योगदान मानती हैं।

उदयपुरा करीब 300 घरों का गांव है। इस गांव के अधिकांश पुरूष और महिला खेतिहर मजदूर हैं या आसपास के क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूरी का काम करते है।

लातेहार के झारखंड राज्य लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी (जेएसएलपीएस) के कार्यक्रम प्रबंधक हरेंद्र कुमार कहते हैं, “यह सामूहिक परिवर्तन सामुदायिक परिवर्तन का प्रतिफल है। सुनीता ने अधिक मेहनत की जिसका यह परिणाम है।”

उन्होंने कहा कि हमलोगों का ध्यान केवल शौचालयों के निर्माण करना ही नहीं बल्कि यह भी सुनिश्चित करना था कि गांव सामूहिक रूप से परिवर्तन की राह पर अग्रसर होते हुए खुले में शौच से मुक्त हो। इसका बेहतर परिणाम सामने आया है।

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