हिमाचल स्थित ज्वाला देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में सर्वोपरि माना जाता है. जब भगवान शिव माता सती को कंधे पर उठाकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब माता का जिह्वा इसी स्थान पर गिर पड़ा था. कहते हैं मां शक्ति के इस मंदिर में 9 ज्वालाएं प्रज्वलित है, जो कि 9 देवियां महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्धयवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी की स्वरुप हैं. मां ज्वाला देवी के मंदिर में अनवरत रूप से प्राकृतिक ज्वाला प्रज्वलित होती रहती है. मान्यता है कि जो मनुष्य सत्यनिष्ठा के साथ इस रहस्यमयी शक्तिपीठ आता है, उसकी कामना अवश्य ही पूर्ण होती है. एक प्रचलित दन्त कथा के अनुसार सतयुग में महाकाली के परमभक्त राजा भूमिचंद को देवी ने स्वप्न दिया और अपने पवित्र स्थान के बारे में बताया, तब राजा भूमिचंद स्वयं उस स्थान पर गए जहां उन्हें माता ज्वाला देवी की ज्वाला का दर्शन हुआ. तब उन्होंने वहां पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और शाक-द्वीप से भोजक जाती के ब्राह्मणों को बुलाकर माता की पूजा के लिए नियुक्त किया. उन दोनों ब्राह्मण का नाम पंडित श्रीधर और पंडित कलापति था. कहते हैं उनके वंशज ही आज भी माता की पूजा करते हैं. नवरात्र के समय में यहां बहुत भीड़ रहती है परन्तु आस्थावान भक्त इस समय माता के दर्शन को अवश्य आते हैं.
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