नई दिल्ली, 11 सितम्बर (आईएएनएस)। राष्ट्रीय राजधानी में स्थित देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रसंघ चुनाव में वाम दलों के संयुक्त मोर्चे को मिली भारी जीत और अखिल भारतीय विद्यार्थीय परिषद (एबीवीपी) को मिली हार के पीछे विद्यार्थियों ने नौ फरवरी की घटना को एक प्रमुख वजह बताया।
नौ फरवरी को जेएनयू परिसर में एक विरोध-प्रदर्शन के दौरान देश-विरोधी नारे लगने का आरोप लगा था, जिसमें तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार शामिल थे।
बाद में कन्हैया को इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था और मामला अब भी अदालत में है।
शनिवार को हुए जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में वाम दलों ने सभी पदों पर जीत हासिल की है।
जेएनयू के भारतीय भाषा विभाग से डॉक्टरेट कर रहे सुशील कुमार ने रविवार को आईएएनएस से कहा, “मैं आइसा के चुनाव जीतने से उतना खुश नहीं हूं, जितना एबीवीपी के हारने से। नौ फरवरी को हुई घटना के कारण एबीवीपी को हारना ही था। एबीवीपी अल्पसंख्यक-विरोधी और महिला-विरोधी है और विद्यार्थियों के प्रति इसका रवैया दादागीरी वाला है।”
विभाग से ही पीएडी कर रहे एक अन्य विद्यार्थी श्रीमंत जैनेंद्र का कहना है कि एबीवीपी अपनी हार की जिम्मेदार खुद है और छात्रसंघ चुनाव में बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स यूनियन (बीएपीएसए) नई शक्ति बनकर उभरी है।
उल्लेखनीय है कि बीएपीएसए के उम्मीदवार तीन पदों पर दूसरे नंबर पर रहे और विजेता प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर दी।
एबीवीपी के पूर्व समर्थक भाषा विज्ञान संकाय में अध्ययनरत धीरेंद्र ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से संबद्ध एबीवीपी की हार के पीछे नौ फरवरी की घटना के बाद एबीवीपी द्वारा विश्वविद्यालय को लेकर नकारात्मक छवि फैलाना भी बताया।
गौरतलब है कि इस बार जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में एसएफआई और आइसा ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया, जबकि एआईएसएफ ने खुद को चुनावों से दूर रखा।
भाजपा समर्थित एबीवीपी और कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई चारों पदों पर जीत से काफी दूर रहे, जबकि नवगठित बीएपीएसए नई शक्ति बनकर उभरी है।