नई दिल्ली, 6 नवंबर (आईएएनएस)। सिविल सोसाइटी संगठनों ने जीएम सरसों के व्यवसायीकरण के खिलाफ एकजुट होकर सरकार से इसे रोकने की मांग की। सरसों सत्याग्रह के प्रतिनिधियों ने सरकार से जीएम के मामले में आगे नहीं बढ़ने को कहा है।
संगठनों ने कहा कि वे किसी भी परिस्थिति में एक अनावश्यक, असुरक्षित, अपरिवर्तनीय और बेकाबू प्रौद्योगिकी द्वारा किसानों और उपभोक्ताओं के विकल्प के अधिकार का उल्लंघन नहीं होने देंगे।
आम नागरिकों ने भी जीएम सरसों के खिलाफ जारी ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर किया है, जिसमें उन्होंने पर्यावरण मंत्री से इसे रोकने की अपील की है।
एक नये घटनाक्रम में, सरसों खेती वाले गुजरात क्षेत्र से एपीएमसी ने नियामक को पत्र लिखकर कहा है कि गैर-जीएम खाद्य उपभोक्ताओं द्वारा पसंद किया जा रहा है, लेकिन जीएम खाद्य की मांग बाजार में नहीं है। इसलिए जीएम सरसों को लाना उनकी स्थिति को खतरे में डालने जैसा होगा।
एपीएमसी से लगभग एक लाख किसान जुड़े हैं, जो लगभग 400 करोड़ रुपये का व्यापार करते हैं।
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. अंबुमनी रामदॉस द्वारा वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा को पत्र लिखकर बैंगन और जीएम सरसों के बीच समानताओं पर ध्यान दिलाया गया है और पूछा है कि भारत को एक असुरक्षित तकनीक क्यों अपनाना चाहिए जबकि विकल्प मौजूद हैं?
करीब पांच लाख सदस्यों वाले गुजरात के किसान संगठन भारतीय किसान संघ ने जमीनी अनुभव के आधार पर कहा है कि वर्णसंकर सरसों को उपजाने में कोई फायदा नहीं है।
संगठन ने अपने पत्र में हाल के दिनों में बीटी कपास के साथ अपने कड़वे अनुभव को व्यक्त किया है और बीटी कपास को गैरजरूरी बताया है।
जीएम मुक्त भारत अभियान की कविता कुरुंगटि ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि भूमि अधिग्रहण मामले से सरकार कुछ सीख लेगी और जनता के हितों के खिलाफ नहीं जाएगी। यदि सरकार जीएम फसलों की वजह से आजीविका पर होने वाले असुरक्षा और इसके प्रौद्योगिकी के खिलाफ सबूत होने के बावजूद हम पर जीएम फसलों को थोपती है तो उसे जनता के विरोध का सामना करना पड़ेगा।”
इस बीच भोजन का अधिकार अभियान ने भी प्रकाश जावेड़कर को पत्र लिखकर कहा है कि तिलहन उत्पादन के साथ समस्याएं सिर्फ उत्पादन से नहीं जुड़ी है बल्कि सरकारी नीतियों की वजह से ही समस्याएं उत्पन्न हुई हैं और इस समस्या को खतरनाक तकनीक का सहारा लेकर नहीं सुलझाया जा सकता है।
भारतीय किसान युनियन (बीकेयू टिकैत) की तरफ से धर्मेन्द्र मल्लिक ने कहा, “यदि सरकार किसान हितैषी फसलों की सही कीमत और वास्तविक खरीद शामिल होने वाली नीतियां लेकर आती है तो उत्पादन कोई समस्या ही नहीं है। जीएम सरसों की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि इससे खेतों की जीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।”
सरसों सत्याग्रह के आयोजक अभिषेक जोशी ने कहा, “हमारे देश में जीएम फसलों और खासकर जीएम सरसों को लगातार अस्वीकृत किया गया है। हम देश के सभी भागों में इसके खिलाफ जनता की प्रतिक्रिया देख सकते हैं। अगर इन्हें सरकार और नियामक नजरअंदाज करके आगे बढ़ते हैं तो यह समाज और विज्ञान के लिये अनुत्तरदायी और गैर जिम्मेदाराना रवैया होगा। बीटी बैंगन की तरह जीएम सरसों के मामले में भी राज्य सरकार से समर्थन नहीं जुटाया गया है। राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे सरसों उत्पादन वाले और भाजपा शासित प्रदेशों ने भी जीएम सरसो के फील्ड ट्राइल को मना कर दिया है।”