जम्मू-कश्मीर- जम्मू-कश्मीर कांग्रेस ने रविवार को कहा कि घाटी में कश्मीरी पंडितों के कर्मचारियों को हाल ही में मिली आतंकी धमकियां प्रदेश में सामान्य स्थिति के सरकार के दावों को झुठलाती हैं. आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से संबद्ध समूह ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ)’ से जुड़े एक ब्लॉग द्वारा उन कश्मीरी पंडित कर्मचारियों की एक अलग सूची जारी की गई है, जिनकी भर्ती प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज (पीएमआरपी) के तहत हुई थी. उन्हें धमकी दी गई है कि उनकी कॉलोनियों को कब्रिस्तान में बदल दिया जाएगा.
सरकार ने हाल ही में संसद को सूचित किया था कि जम्मू-कश्मीर में अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से और इस साल जुलाई के मध्य तक पांच कश्मीरी पंडित और 16 अन्य हिंदुओं तथा सिखों सहित 118 नागरिक मारे गए.
सैकड़ों कश्मीरी पंडितों और अन्य आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों को मई में आतंकवादियों के डर से जम्मू जाना पड़ा. वे वर्तमान में कश्मीरी हिंदू कर्मचारियों को घाटी से बाहर स्थानांतरित करने की मांग को लेकर 200 से अधिक दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) की प्रवक्ता दीपिका सिंह राजावत ने यहां संवाददाताओं से कहा, “हाल ही में, टीआरएफ द्वारा ‘हिट लिस्ट’ जारी की गई, हम उपराज्यपाल से यह बताने के लिए कह रहे हैं कि ये कर्मचारी ऐसी परिस्थितियों में अपने काम पर वापस कैसे जा सकते हैं?”
उन्होंने कहा, “हालांकि वह दिल्ली में अपने आकाओं के सामने सामान्य हालात की कहानी बताने के लिए एक मिनट भी नहीं गंवाते हैं, लेकिन उनके झूठ का बुलबुला तब फूटता है जब ये सूचियां हर दूसरे दिन सामने आती हैं.”
राजावत ने कहा कि उनकी पार्टी पूरी तरह से आश्वस्त है कि भाजपा और उपराज्यपाल प्रशासन ने इसे ‘अहंकार का विषय’ बना लिया है क्योंकि उन्हें डर है कि अगर वे कर्मचारियों के दबाव के आगे झुक गए, तो उनकी ‘सामान्य स्थिति का दिखावा’ सबके समाने आ जाएगा.
राजावत जो कि खुद भी एक कश्मीरी पंडित हैं, ने कहा, “मैं उन्हें याद दिलाना चाहती हूं कि यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है बल्कि जीवन और मृत्यु का मामला है. हम पूरे देश में अपने राजनीतिकरण से तंग आ चुके हैं.”
कांग्रेस नेता ने कहा कि ऐसे कई कर्मचारी हैं जिन्हें किराए के आवास में रखा गया है और जिन पर आतंकवादियों के हमले का खतरा अधिक है.
उन्होंने विरोध करने वाले कर्मचारियों का वेतन तत्काल जारी करने की मांग की और पहले से ही आतंकवादियों की धमकियों का सामना कर रहे इन कर्मचारियों को परेशान किए जाने की आलोचना की.
उन्होंने कहा, “उनके खिलाफ इस तरह के दबाव की रणनीति का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इन कार्रवाइयों ने पहले से ही एक मानवीय प्रकृति के मुद्दे से निपटने में केंद्र शासित प्रशासन के असंवेदनशील और उदासीन रवैये को उजागर कर दिया है.”