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जम्मू एवं कश्मीर झंडा विवाद अज्ञानता का परिचायक : विशेषज्ञ

जम्मू, 14 मार्च (आईएएनएस)। जम्मू एवं कश्मीर सरकार द्वारा प्रदेश के सरकारी कार्यालयों, इमारतों व वाहनों पर राज्य का झंडा फहराने को अनिवार्य करने के फैसले को संवैधानिक तथा कानूनी विशेषज्ञों ने शनिवार को हास्यास्पद करार दिया।

उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय में संवैधानिक मामलों के जम्मू एवं कश्मीर के वकील जफर शाह ने आईएएनएस से कहा, “राज्य के झंडे को लेकर जो भी विवाद पैदा हुआ है, वह अज्ञानता का परिचायक है और इसका कारण शायद जानकारी की कमी है।”

उन्होंने कहा, “जम्मू में मुख्यमंत्री, राज्य के मुख्य न्यायाधीश तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सहित समस्त संवैधानिक अधिकारी, कार्यालय व मंत्रिपरिषद के सदस्य जम्मू एवं कश्मीर के संविधान के तहत शपथ ग्रहण करते हैं।”

जफर ने कहा, “ये कार्यालय/अधिकारी राज्य के झंडे को सम्मान व आदर देने को संवैधानिक रूप से बाध्य हैं, क्योंकि यह राज्य के संविधान में निहित है।”

उन्होंने कहा, “झंडे को सम्मान देने के लिए कोई आदेश जारी करने या उसे वापस लेने से राज्य के झंडे की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि जम्मू एवं कश्मीर का संविधान इसे सुनिश्चित करता है।”

जफर ने कहा, “इसलिए, जम्मू एवं कश्मीर के झंडे को सम्मान देने के लिए शासकीय आदेश जारी करने या वापस लेने की बात करना केवल अज्ञानता है, क्योंकि यह संविधान में ही निहित है।”

उल्लेखनीय है कि सरकार ने शुक्रवार को राज्य के ध्वज से संबंधित अपना वह शासकीय आदेश वापस ले लिया, जिसे गुरुवार को जारी किया था।

जम्मू एवं कश्मीर देश का इकलौता राज्य है, जिसका अपना संविधान है। यहां तिरंगे के साथ राज्य का झंडा भी फहराया जाता है।

राज्य सरकार ने गुरुवार को एक सर्कुलर जारी किया था, जिसके मुताबिक राज्य सरकार के सभी अधिकारियों को अपनी गाड़ियों, कार्यालयों तथा इमारतों पर तिरंगे के साथ राज्य का झंडा लगाने का निर्देश जारी किया गया था।

बाद में यह कहकर इस सर्कुलर को वापस ले लिया गया कि इसे सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था।

इस सर्कुलर को वापस लिए जाने के बाद सरकार की खासी किरकिरी हुई। विरोधियों ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद को यह फैसला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दबाव के कारण लेना पड़ा।

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “मुफ्ती सईद जम्मू एवं कश्मीर के विशेष दर्जे की शुचिता की रक्षा करने में अक्षम हैं, इसलिए अफ्स्पा या अनुच्छेद 370 पर उनसे कुछ भी उम्मीद करना बेकार होगा।”

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