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 जनधन-आधार-मोबाइल के माध्यम से लोकलुभावन विकास (आईएएनएस विशेष) | dharmpath.com

Wednesday , 27 November 2024

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जनधन-आधार-मोबाइल के माध्यम से लोकलुभावन विकास (आईएएनएस विशेष)

नई दिल्ली, 25 मई (आईएएनएस)। वैकल्पिक जगत भले ही बेमिशाल तरक्की और नरेंद्र मोदी के उत्कर्ष को स्वीकार न करे, मगर वह अलगे पांच साल यहां बने रहेंगे।

भारत में इंदिरा गांधी के बाद इस तरह के आभामंडल वाला कोई नेता नहीं उभरा था।

इंदिरा गांधी ने 1960 के दशक के आखिर में सर्वशक्तिमान सिंडिकेट को नष्ट करने के बाद कांग्रेस पार्टी में नए सिरे से एकजुटता कायम की। इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान का विखंडन कर दिया।

नए भारत ने जिस मार्ग को चुना है, वह हिंदू अंध-राष्ट्रीयता का मार्ग है।

अनिष्ट की आशंका जताने वाले दलील देंगे कि यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिले जनादेश को न्यायोजित नहीं ठहराता है। इसके अलावा हिंदुत्व का नया अवतार (हिंदुत्व प्लस) लोकलुभावन विकास की अवधारणा अब सुरक्षा व संरक्षा का विषय बन गई है।

सर्जिकल स्ट्राइल, पाकिस्तान स्थित आंतकी ठिकानों पर बमबारी और प्रभावोत्पादकता व क्षमता के साथ प्रतिकार के अधिकार ने मोदी के मिथक के आकार व स्वरूप को विस्तार प्रदान किया है।

लेकिन असलियत में लोकलुभावन विकास के इस नए हिंदुत्व कल्याण मॉडल का काफी लाभ मिल रहा है। मोदी की खास पहल जनधन-आधार-मोबाइल (जेएएम) की तिकड़ी के माध्यम से जनधन खातों को मोबाइल नंबर और आधार कार्ड से जोड़ा जा रहा है, जिसका उद्देश्य योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थियों के खाते में हस्तांतरित करके बिचौलिए की भूमिका समाप्त करना और लीकेज को बंद करना है, ताकि देश के बड़े पिरामिड के निचले स्तर के जनसमूह व अत्यंत गरीबों तक पहुंचा जा सके।

इससे सामाजिक समता क्रांति का सूत्रपात हुआ है और गांवों की महिलाओं में स्वतंत्रता बढ़ी है।

योजनाओं की सूची में जन-आरोग्य, जन उज्‍जवला, जन-मुद्रा, जन-उदय, जन-सौभाग्य, आवास और आयुष्मान उनकी व्यवस्था के आधार हैं।

क्या भारत रूढ़िवादी परंपराओं का अनुपालन कर रहा है, विनाश की राह पर जा रहा है, प्रतिगामी पथ पर चल रहा है और दृढ़ विचारों का अनुसरण कर रहा है? नहीं, बिल्कुल नहीं। यह महज मौन हिंदू राष्ट्रवाद का आग्रह है, लेकिन समान रूप से बहुसंख्यकवाद का भार, अल्पसंख्यकवाद को प्रश्रय देने वाली दशकों पुरानी नीति का विखंडन है।

मोदी ने केदारनाथ के रुद्र ध्यानस्थल गुफा में तपस्या करके अपने हिंदू समूह को चुनाव के शीघ्र बाद एक दूसरा संदेश दिया। मोदी की भाजपा के उत्कर्ष की इस घटना को हम समझने की कोशिश करें, जिसने जाति के गणित को ध्वस्त कर दिया है। यही नहीं, अगड़ा और पिछड़ा दोनों वर्गो के हिंदुओं के वोटों का समेकन कर अपने पक्ष में कर लिया है। लोकसभा चुनाव 2009 में भाजपा और अपना दल को उत्तर प्रदेश में लगभग 50 फीसदी वोट मिला, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) को 23.3 फीसदी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 27.4 फीसदी और कांग्रेस व राष्ट्रीय लोकदल (रालोद)को 21.5 फीसदी वोट मिले और अन्य के पक्ष में 10.3 फीसदी वोट पड़े।

अन्य सेकुलर पार्टियों की तुष्टीकरण की राजनीति के विरोध में पैदा हुए अल्पसंख्यक विरोधी उन्माद के कारण नरेंद्र मोदी के पक्ष में हिंदुओं के एकजुट वोट पड़े।

मार्च 2014 में सीएसडीएस के एक सर्वेक्षण में बताया गया कि भाजपा और अपना दल के पक्ष में 36 फीसदी वोटों का समेकन हुआ, जबकि सपा, बसपा, कांग्रेस व रालोद और अन्य के पक्ष में क्रमश: 22 फीसदी, 18 फीसदी, 16 फीसदी और पांच फीसदी।

मुजफ्फरनगर दंगा के कारण ध्रुवीकरण होने से भाजपा को प्रदेश में 38 फीसदी ग्रामीण वोट मिले, जबकि प्रदेश में इसके वोटों की हिस्सेदारी 30 फीसदी रही।

सर्वेक्षण में पहले ही बताया गया कि ऊंची जातियों के 85 फीसदी मतदाता भाजपा को वोट देना चाहते थे, जबकि ओबीसी के 48 फीसदी, एससी के 29 फीसदी और मुस्लिम समुदाय के 11 फीसदी मतदाता भाजपा के पक्ष में मतदान करना चाहते थे।

निस्संदेह, जो हुआ वह उससे भी बड़ा था। क्योंकि मोदी आंधी में उत्तर प्रदेश में रातोंरात बदलाव आ गया और लोग मोदी के पक्ष में आ गए। इसमें कोई शक नहीं कि यह एक नया प्रतिमान था। मोदी की भाजपा को 42.3 फीसदी वोट मिले। सपा को 22.2 फीसदी जबकि बसपा को 19.6 फीसदी और कांग्रेस को 7.5 फीसदी वोट मिले।

सीएसडीएस के मार्च 2014 के सर्वेक्षण में एक हद तक बदलाव को दर्शाया गया लेकिन इतनी बड़ी भूचाल का अनुमान नहीं लगाया गया।

इस भूचाल से भारत की शासन व्यवस्था हिल गई, क्योंकि रामजन्म-भूमि आंदोलन में भी भाजपा को इतनी बड़ी जीत नहीं मिल पाई थी।

ऐसा क्यों हुआ?

संप्रग/सपा/बसपा की तुष्टीकरण और अल्पसंख्यकों को खुश करने के संदर्भ में इसे देखा जाना चाहिए।

मोदी हिंदू हृदय सम्राट के रूप में उभरे। हालांकि राजनीतिक रूप से यह कहना सही नहीं है। उन्होंने यह कमाल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दोहराया जब प्रतिघात इससे भी तगड़ा था।

मोदी लहर में भाजपा को 312 सीटें मिली और पार्टी के वोटों की हिस्सेदारी 39.7 फीसदी थी जबकि सपा को 22 फीसदी वोटों के साथ 47 सीटें मिलीं। कांग्रेस 6.2 फीसदी वोटों के साथ सात सीटों पर सिमट कर रह गई।

जनधन-आधार-मोबाइल के माध्यम से लोकलुभावन विकास (आईएएनएस विशेष) Reviewed by on . नई दिल्ली, 25 मई (आईएएनएस)। वैकल्पिक जगत भले ही बेमिशाल तरक्की और नरेंद्र मोदी के उत्कर्ष को स्वीकार न करे, मगर वह अलगे पांच साल यहां बने रहेंगे। भारत में इंदिर नई दिल्ली, 25 मई (आईएएनएस)। वैकल्पिक जगत भले ही बेमिशाल तरक्की और नरेंद्र मोदी के उत्कर्ष को स्वीकार न करे, मगर वह अलगे पांच साल यहां बने रहेंगे। भारत में इंदिर Rating:
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