ग्रामीणों अंचलों के साथ ही शहरों में बच्चे सुबह में तैयार होकर ‘छेरछेरा! माई कोठी के धान ला हेरहेरा’ गाते हुए घर-घर जाकर धान का दान मांगते नजर आए। श्रद्धालुओं ने प्रमुख नदियों- महानदी, पैरी नदी, खारून, शिवनाथ व अरपा के किनारे स्नान कर दान किया।
महासमुंद निवासी पं. लल्लू महाराज ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार पौष पूर्णिमा के दिन जो कोई अनाज का दान करता है, उसे सात जन्मों के बराबर पुण्य का लाभ मिलता है। छेरछेरा पुन्नी का महत्व ग्रामीण प्रधान एवं कृषि प्रधान प्रदेश होने के नाते छग में होली-दिवाली जितना महत्वपूर्ण है।
कोई भी परिवार अपने बच्चे को नजराना मांगते हुए नहीं देखना चाहता, लेकिन साल में एक दिन ऐसा भी होता है, जब परिवार के लोग खुद बच्चों को नहला-धुलाकर तैयार करते हैं। उन्हें अच्छे कपड़े पहनाते हैं और झोला पकड़ाकर घर-घर नजराना मांगने को कहते हैं। इस दिन बच्चे हाथ में थैला लेकर घरों में घूम-घूमकर ‘छेरछेरा! माई कोठी के धान ला हेरहेरा’ बोलकर धान-चावल का दान मांगते हैं।
वहीं मगरलोड निवासी फगुवाराम साहू व पुरुषोत्तम जैसे कई लोगों ने बताया कि नई फसल आने के बाद छेरछेरा का पर्व किसान बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस दिन किसानों के खेतों में काम करने वाले लोग उनके घरों में जाकर धान का दान मांगते हैं। वहीं इस अवसर पर गांवों में मड़ई-मेले का आयोजन भी किया जाता है। कई गांवों में तो इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं।