प्रदर्शनी स्थल पर छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड, ग्रामोद्योग विभाग द्वारा बांस शिल्प परियोजना के तहत गरियाबंद जिले के डोंगरीगांव से आए बांस शिल्प के शिल्पकारों द्वारा बांस से बने उत्पादों एवं बेल मेटल का प्रदर्शन किया जा रहा है। साथ ही उनके उत्पादों का विक्रय भी किया जा रहा है, जिसे लोगों का अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। अभी तक लगभग 20000 रुपये के उत्पादों की बिक्री की जा चुकी है।
गरियाबंद जिले के शिल्पग्राम डोंगरीगांव में बांस शिल्प में रुचि रखने वाले 40 युवक-युवतियां पिछले चार माह से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं और साथ-साथ बांस से बने विभिन्न घरेलू एवं दैनिक उपयोग की वस्तुओं का भी निर्माण कर रहे हैं।
बांस शिल्प परियोजना के प्रभारी एच.बी.अंसारी ने बताया कि आसपास के ग्राम हाथबाय, डाकबंग्ला, काजनसरा, बेंदकुरा, कुचेना और हसौदा के शिल्पकला में रुचि रखने वाले 40 युवक युवतियां प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।
उन्हें प्रथम तीन महीने में 1500 रुपये प्रतिमाह स्कॉलरशिप दिया गया। वर्तमान में उनका तीन महीने का और सघन प्रशिक्षण जारी है। जिसमें उन्हें 3000 रुपये प्रतिमाह की दर से छात्रवृत्ति दी जाएगी।
अंसारी ने बताया कि इन प्रशिक्षणार्थियों को बांस एवं अन्य जरूरी सामाग्री व सुविधाएं प्रदान की जाती हैं तथा बाजार के मांग के अनुरूप उत्पादों के निर्माण के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। वर्तमान में आराम चेयर, बेबी-झूला, लैंप, टी-स्टैंड, बुक-रेक, ट्रे, पेन स्टैंड, फ्लावर हैंगर आदि बनाना सिखाया जा रहा है। ये सभी सामग्री स्टाल में प्रदर्शन और विक्रय के लिए रखे गए हैं, जिसे लोग उत्सुकता से खरीद रहे हैं।
बांस शिल्प परियोजना डोंगरी गांव के डिजाइनर उनास बघेल ने बताया कि राजिम मेला के स्टाल में अभी तक लगभग 20000 रुपये की सामाग्री बिक चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा फ्लावर हैंगर, टी-स्टैंड, आराम चेयर और सोफा सेट की मांग है।
मास्टर ट्रेनर परमेश्वर नाग ने बताया कि बांस शिल्प के उत्पाद सुंदर आकर्षक और टिकाऊ होने के कारण लोगों में ज्यादा मांग है। साथ ही यह प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के विकल्प के रूप में भी उपयोगी है।
डोंगरी गांव में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे कार्तिक सिन्हा, मिश्र कुमार, बिंदु ध्रुव और कल्पना ने बताया कि प्रशिक्षण प्राप्त करके उनमें नया आत्मविश्वास जागा है। अब वे बांस परियोजना से जुड़कर स्वावलंबन की दिशा में आगे बढ़ेंगे।