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 छत्तीसगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया बदरा का निदान | dharmpath.com

Saturday , 11 January 2025

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छत्तीसगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया बदरा का निदान

छत्तीसगढ़ के साथ ही साथ ये समस्या आंध्रप्रदेश और उड़ीसा में भी विराट रूप धारण कर रहा है। इसे देखते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इसकी रोकथाम के उपाय ढूंढ लिए हैं। वहीं कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विषय पर अब व्यापक शोध की आवश्यकता है, ताकि जल्द से जल्द किसानों को इस समस्या से मुक्ति मिल सके।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में तेज धूप वाले मौसम में कम अवधि में पकने वाली धान की किस्में जैसे एम.टी.यू 1010, महामाया आदि में पोंचा दाना (बदरा) एवं बदरंग बालियों की समस्या अनेक स्थानों पर देखने में आ रहा है। पिछले वर्ष भी इसी तरह की समस्या व्यापक रूप मे आरंग, अभनपुर, एवं धमतरी क्षेत्र में देखनें में आया था।

धान फसल में यह एक नए तरह की इस समस्या के निदान हेतु वैज्ञानिकों ने प्रयास किया। कीट विज्ञान विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. संजय शर्मा ने इस बात की खोज की कि पेनिकल माईट (स्टीनोटारसोनिमस इसपिंकी) की वजह धान की किस्में जैसे एम.टी.यू 1010, महामाया आदि में पोंचा दाना (बदरा) एवं बदरंग बालियों की समस्या उत्पन्न हो रही है।

कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय शर्मा ने वीएनएस से कहा कि उक्त समस्या छत्तीसगढ़ सहित उड़ीसा एवं आंध्रप्रदेश में भी विराट रूप धारण कर रहा है। डॉ. शर्मा का कहना है कि बदरा या बदरंग बालियों के लिए पेनिकल माईट प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। पेनिकल माईट अत्यंत सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसे 20 एक्स आर्वधन क्षमता वाले लैंस से देखा जा सकता है। यह जीव पारदर्शी होता है तथा पत्तियों के शीथ के नीचे काफी संख्या में रहकर पौधे की बालियों का रस चूसते रहते हैं जिससे इनमें दाना नहीं भरता।

इस जीव से प्रभावित हिस्सों पर फफूंद विकसित होकर गलन जैसा भूरा धब्बा दिखता है। माईट नामक इस जीव का जीवनकाल 10 दिनों का होता है। उमस भरे वातावरण में इसकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन धान की खेती या पुराने फसल अवशेष के द्वारा यह एक मौसम से दूसरे मौसम की फसल पर अपनी उपस्थिति बनाए रखता है, बीजों में भी यह सुशुप्तावस्था में रहता है। जलवायु में आ रहे परिवर्तन की वजह से इस नए प्रकार की समस्या का प्रादुर्भाव धान की खेती में देखने में आ रहा है जिसके लिए सजग रहने की आवश्यकता है।

डॉ. शर्मा का कहना है कि इससे बचने के लिए प्रकोप के शुरूआती अवस्था में ही डाइकोफाल 18.5: ़ प्रोपिकोनाजोल 25: क्रमश: 5 मि ली ़ 1 मि.ली प्रति लीटर पानी में या प्रोफेनाफास 50: प्रोपिकोनाजोल 25: क्रमश: 2 मि.ली. ़ 1 मि.ली प्रति लीटर पानी की दर से 200 लीटर घोल प्रति एकड़ की दर से बाली निकलने की अवस्था में छिडकाव करना प्रभावकारी है। छिड़काव का कार्य अपरान्ह काल में ही करना चाहिए, दोपहर के तेज धूप में छिड़काव करने से निकलती हुई नई बालियों को क्षति पहुंचने की आशंका होती है।

डॉ. संजय शर्मा ने वीएनएस से चर्चा करते हुए बताया कि किसी धान के बदरंग या पोंचा (बदरा) होने के पीछे प्रमुख रूप से पेनिकल माईट ही जिम्मेदार है। यह अष्टपादी जीव है। इसकी पहचान मुश्किल होती है। यह मकड़ी की प्रजाति का अत्यंत सूक्ष्म जीव है। यह जीव धान की फसलों में दाना भरने के समय उसका रस चूस लेता है। जिसके कारण जख्म होते हैं। जख्म होने के बाद उसमें फंगस हो जाता है। इन्हीं सब कारणों से दानों का विकास नहीं हो पाता है। और पोंचा (धान) या बदरंग की समस्या आ जाती है।

डॉ. संजय शर्मा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में पिछले कई वर्षो से लगातार तनाछेदक, भूरा माहो की प्रकोप रहा है। लेकिन अब धीरे-धीरे इस समस्या को काफी हद तक काबू करने में सफलता पाई गई है। लेकिन अब बदरा धान की यह समस्या बिल्कुल नई है, जिस पर भी वैज्ञानिकों ने लगातार अध्ययन, रिसर्च किया और इस समस्या का निदान ढूंढ लिया गया है।

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