नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों का कहना है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर पुलिस और प्रशासनिक अमले का जुल्म बदस्तूर जारी है।
इनका यह भी आरोप है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिलों में आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़, जबरन हिरासत और अत्याचार का सामना करना पड़ रहा है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को देर शाम मीडिया से ये बातें कहीं। उन्होंने बताया कि लोग एकजुट होकर पुलिस का विरोध कर रहे हैं, इसके बावजूद राज्य की तरफ से हिंसा बढ़ती जा रही है।
स्कूल शिक्षिका से राजनैतिक कार्यकर्ता बनीं आदिवासी समुदाय की सोनी सोरी ने कहा, “आदिवासियों से उनकी भूमि छीनने के लिए राजसत्ता आतंक फैला रही है। उनके लिए नक्सल मुद्दा तो जमीन हड़पने का बहाना है। लेकिन, हम अपना संघर्ष नहीं छोड़ेंगे। ”
सोरी आम आदमी पार्टी की सदस्य हैं। उन्होंने 2014 के आम चुनाव में पार्टी के टिकट पर बस्तर से चुनाव लड़ा था। वह भाजपा के दिनेश कश्यप से हार गई थीं।
2010 में उन्हें दिल्ली पुलिस ने माओवादियों की संदेश वाहिका होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उनका आरोप है कि गिरफ्तारी के दौरान छत्तीसगढ़ पुलिस ने उनके साथ जुल्म किया था, उनका यौन शोषण किया था। 2013 में अदालत ने उन्हें लगभग सभी मामलों में बरी कर दिया था।
सोरी ने कहा कि बीते एक साल में बस्तर में आत्मसमर्पण के 400 झूठे मामले सामने आए हैं। उन्होंने बताया कि हाल ही में बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक एस.आर.पी. कल्लुरी ने उन्हें और उनके नजदीकी रिश्तेदार लिंगाराम कोडोपोई को धमकाया था। लिंगाराम भी आदिवासियों के मुद्दे पर काम करते हैं।
सोरी ने बताया कि इलाके के लोगों से कहा गया कि उन्हें और लिंगाराम को समाज से बहिष्कृत कर दो। यह सिर्फ इसलिए किया गया क्योंकि हम दोनों इलाके में फर्जी मुठभेड़ों का मुद्दा उठा रहे हैं।
सोरी ने कहा, “कल्लुरी के यहां तैनात होने के बाद से ही यह सब कुछ हो रहा है। लोग एकजुट हैं और पुलिस के आतंक का विरोध कर रहे हैं। पुलिस हमें गिरफ्तार करने की धमकी दे रही है। हमने उनसे कहा है कि हम जेल जाने के लिए तैयार हैं। ”
वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा, आदिवासियों को गंभीर मामलों में गिरफ्तार किया जाता है। लेकिन वे सबूत के अभाव में छोड़ दिए जाते हैं।
ग्रोवर ने कहा, “आरोपों को देखिए। उन्हें जमानत तक नहीं मिलती। एक से तीन फीसदी ही दोषी करार दिए जाते हैं। लेकिन, इससे पहले की कैद बहुत लंबी होती है। उन्हें बनाए गए मामलों में लंबे समय तक जेल में रखा जाता है। ”
लेखिका और राजनैतिक कार्यकर्ता अरुं धति रॉय ने कहा, “छत्तीसगढ़ की पूरी पुलिस सेना में बदल गई है। कांकेर के जंगल युद्ध कॉलेज का मुखिया एक अवकाश प्राप्त सैनिक है। भारत के अंदर एक अंतर्राष्ट्रीय सीमा है। जो इसे लांघता है, मारा जाता है।”
अरुं धति ने कहा, “मुझसे एक पुलिस अधिकारी ने कहा था कि आदिवासियों को पक्ष में करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि इनके हर घर को एक-एक टेलीविजन दे दो। वे लोग बस्तर को एक औद्योगिक क्षेत्र में बदलना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि आदिवासी इन उद्योगों के गुलाम बन जाएं। बस्तर में जो कुछ हो रहा है उसके पीछे बड़े पैमाने के आर्थिक हित काम कर रहे हैं। हर वह व्यक्ति जो इन जनसंहारी परियोजनाओं का विरोध करता है, सरकार द्वारा माओवादी करार दे दिया जाता है।”
वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि छत्तीसगढ़ में ऑपरेशन ग्रीन हंट एक बदले हुए रूप में चलाया जा रहा है। यह ऑपरेशन पांच राज्यों में नक्सलियों को तलाश करने और उन्हें मारने से जुड़ा हुआ है।
उन्होंने कहा कि 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने सलवा जुडूम को भंग करने का आदेश दिया था। यह अधिकारियों द्वारा नक्सलियों से लड़ने के लिए गैर कानूनी तरीके से बनाया गया समूह था।
भूषण ने कहा, “वही लोग जो कभी सलवा जुडूम में थे, आज विशेष पुलिस अफसर ( एसपीओ) बने हुए हैं। मुठभेड़ से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों पर छत्तीसगढ़ की न्यायपालिका तक अमल नहीं करती है।”