चेन्नई, 11 जून (आईएएनएस)। सरकार ने बुधवार को चीनी उद्योग को जो 6,000 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज दिया है, उससे चीनी उद्योग की मूल समस्या दूर नहीं होगी। यह बात इंडियन सुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कही।
इस्मा अध्यक्ष ए वेल्लायन ने यहां जारी एक बयान में कहा, “चीनी उद्योग को 6,000 करोड़ रुपये के एक साल की ब्याज मुक्त अवधि वाले कर्ज से अधिक उत्पादन और कम कीमत की चीनी उद्योग की बुनियादी समस्या का समाधान नहीं होगा।”
उन्होंने कहा कि ब्याज की एक साल तक की छूट वास्तव में छूट नहीं है। इससे पहले फरवरी 2014 में घोषित योजना में सरकार ने पांच साल तक ब्याज छूट दी थी।
उन्होंने कहा कि एक साल बाद उद्योग से 6000 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाने के लिए कहने का मतलब यह है कि आप उद्योग से एक साल में 6,000 करोड़ रुपये कमा लेने की उम्मीद कर रहे हैं, जो एक करोड़ टन अधिक उत्पादन और लागत से 10 रुपये प्रति किलोग्राम कम कीमत रहने की दशा में संभव नहीं है।
वेल्लायन ने कहा कि उद्योग को यह कर्ज देने की अपेक्षा भारतीय खाद्य निगम और अन्य खरीदार एजेंसियों को कर्ज दिया जा सकता है, जो उद्योग से 25 से 30 लाख चीनी खरीद सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इससे दोनों उद्येश्य पूरे हो सकते हैं। किसानों को बकाए का भुगतान भी हो सकता है और अतिरिक्त चीनी भी मिलों से हट सकती है।
उन्होंने कहा कि सरकार को मिलों से अतिरिक्त चीनी निकालने में मदद करनी चाहिए और चीनी की कीमत बेहतर करने में मदद करनी चाहिए, ताकि मिल अगले चीनी सत्र में अक्टूबर 2015 से क्रशिंग का काम शुरू कर सकें।