चंडीगढ़, 21 अगस्त (आईएएनएस)। यह अलग बात है कि ली कारबुजे ने देश के चुनिंदा नियोजित शहरों में से एक चंडीगढ़ की डिजाइन की और इसे विकसित किया, लेकिन उन्होंने कुछ और भी खास इमारतें खड़ी करने के सपने देखे थे, जो आज तक साकार नहीं हो पाए। कारबुजे के निधन को पांच दशक बीत चुके हैं, फिर भी उनके वे सपने अधूरे हैं। अब इन्हें पूरा करने का बीड़ा कुछ युवा वास्तुकारों ने उठाया है।
चंडीगढ़, 21 अगस्त (आईएएनएस)। यह अलग बात है कि ली कारबुजे ने देश के चुनिंदा नियोजित शहरों में से एक चंडीगढ़ की डिजाइन की और इसे विकसित किया, लेकिन उन्होंने कुछ और भी खास इमारतें खड़ी करने के सपने देखे थे, जो आज तक साकार नहीं हो पाए। कारबुजे के निधन को पांच दशक बीत चुके हैं, फिर भी उनके वे सपने अधूरे हैं। अब इन्हें पूरा करने का बीड़ा कुछ युवा वास्तुकारों ने उठाया है।
बेहतरीन इमारतों को बनाने वाले ली कारबुजे ने चंडीगढ़ में कुछ और इमारतें बनानी चाही थी, लेकिन वह उन्हें बना नहीं सके थे। अब युवा वास्तुकारों की एक टीम ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एक रचनात्मक प्रतियोगिता की बुनियाद रखी है। इसमें भवनों के लिए वास्तुकारों से डिजाइन मांगी गई है।
प्रतियोगिता को नाम दिया गया है- ‘चंडीगढ़ अनबिल्ट’। चंडीगढ़ कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर (सीसीए) के स्नातक अनिरुद्ध नंदा, हरमीत सिह भल्ला और निखिल प्रताप सिंह की संकल्पना है यह ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय वास्तु प्रतियोगिता। इसका नाम इन्होंने आर्काज्म रखा है।
आर्काज्म टीम चाहती है कि कारबुजे के अधूरे काम पूरे करने के लिए दुनिया भर से डिजाइन जमा की जाए। चंडीगढ़ के कैपिटल कांप्लेक्स के अधूरे काम, खासकर ‘म्यूजियम ऑफ नॉलेज’ और ‘गवर्नर हाउस’ को कारबुजे की कल्पना और आज की जरूरत के हिसाब से डिजाइन किया जाए। टीम का कहना है कि उन्हें अच्छा नतीजा मिल रहा है।
निखिल प्रताप सिंह ने आईएएनएस से कहा, “हम चाहते हैं कि इस प्रतियोगिता के जरिए भारत को ध्यान में रखकर नई डिजाइन तैयार की जाए। हम इसके लिए वास्तुकारों, डिजाइनरों और इस क्षेत्र से जुड़े विद्यार्थियों को एक मंच प्रदान कर रहे हैं।”
अनिरुद्ध नंदा ने आईएएनएस से कहा, “प्रतियोगिता में आज के समय के हिसाब से आधुनिक सिद्धांतों पर जोर दिया गया है। हमें देखना होगा कि आज शहर की जरूरतें किस हद तक बदल चुकी हैं और इसी के हिसाब से अधिक रचनाशीलता का इस्तेमाल करना है न कि पुराने तौर-तरीकों को ही प्रयोग में लाते रहना है। यह सही है कि कारबुजे ने इन भवनों की संकल्पना 1950 और 1960 में की थी, लेकिन हम 21वीं सदी की उस डिजाइन को प्रोत्साहित करेंगे जो आज की जरूरतों पर खरी उतरती हो।”
हरमीत सिंह भल्ला ने आईएएनएस से कहा, “बतौर विद्यार्थी हमने कई यूरोपीय वास्तुकला प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। हमने पाया कि भारत में इस तरह की गतिविधि कुछ खास नहीं होती। इसीलिए हमने आर्काज्म के जरिए एक मंच उपलब्ध कराने की कोशिश की है। हम हर साल ऐसी चार प्रतियोगिताएं करेंगे, जिसके विजेता को नकद पुरस्कार भी दिया जाएगा।”
प्रतियोगिता में प्रविष्टि भेजने की आखिरी तारीख 31 अक्टूबर है। इसी दिन कारबुजे की 50वीं जयंती है।