गुजरात के पाटन जिले में एक गांव है हाजीपुर। यहां का आंगनबाड़ी अंकों के जरिए बंटा हुआ है। आंगनबाड़ी नंबर 159 और 160। यह बंटवारा बहुत बड़ा है। इतना बड़ा कि कुछ सप्ताह पहले तीन साल का मानवी चमार अपने पड़ोसी और दोस्त, चार साल की सुहानी पटेल के साथ बातों में मशगूल होकर आंगनबाड़ी नंबर 160 की ओर बढ़ गया तो उसे रोक दिया गया। कहा गया कि 159 नंबर में जाओ। मानवी की मां पिंकी चमार ने बताया, ‘आंगनबाड़ी नंबर 159 दलितों के लिए है। उस दिन मेरी बेटी घर आकर मुझसे पूछ रही थी कि मैं दूसरे आंगनबाड़ी में क्यों नहीं जा सकती। मैं समझ नहीं पाई कि उसे क्या कहूं।’
अहमदाबाद से करीब 130 किमी दूर हाजीपुर गांव में 2000 लोग रहते हैं। पाटन के बाकी गांवों की तरह यहां भी करीब 70 फीसदी आबादी पटेलों या पाटीदारों की है। यहां दलितों के 40 घर और दो मोहल्ले हैं। गांव के दो आंगनबाड़ी में जब बच्चे (छह माह से छह साल तक के) जाते हैं तो सबसे पहली सीख छुआछूत और भेदभाव की ही सीखते हैं।
आंगनबाड़ी नंबर 159 की स्थापना 1997 में हुई थी। तीन साल बाद पाटीदारों और ब्राह्मणों ने अपने लिए अलग आंगनबाड़ी की मांग की और पास के प्राइमरी स्कूल के कैंपस में अलग आंगनबाड़ी बना लिया। इसे आंगनबाड़ी नंबर 160 कहा गया। इन दोनों आंगनबाड़ियों के बीच में स्कूल की दीवार है।
सुबह करीब नौ बजे वर्षाबेन रावल अपने ढाई साल के बेटे आर्या को लेकर आंगनबाड़ी नंबर 160 पहुंचीं। उन्होंने कहा, ‘इस आंगनबाड़ी में पटेलों और ब्राह्मणों के बच्चे आते हैं। दूसरा वाला दलितों के लिए है। मुझे जैसे माता-पिता कभी नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चे हमारे बच्चों के साथ बैठें, खेलें, खाएं।’ उन्होंने बताया, ‘मेरे पति स्कूल में पढ़ाते हैं। मैं ग्रैजुएट हूं। इसलिए मैं इन चीजों को लेकर खासा सतर्क रहती हूं। मैं घर का काम निपटा कर अपने बेटे को लेकर यहां आ जाती हूं, ताकि वह अच्छी बातें सीख सके और अच्छी तरह खा-पी सके।’
इस आंगनबाड़ी में इस तरह का भेदभाव होता है, इसकी जानकारी पिछले साल 11 जुलाई को राज्य के बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) को भी दी गई थी। आयोग की सदस्य मधुबेन सेनामा और उनकी टीम तब हाजीपुर के दौरे पर आई थीं। उन्होंने आयोग के अध्यक्ष को एक रिपोर्ट भी सौंपी थी। एक सप्ताह पहले आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी संभालने वाली भारतीबेन गढ़वी ने कहा, ‘हां, यह बात सच है कि मेरे पहले के चेयरमैन ने रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं लिया। मैंने पाटन के जिला शिक्षा पदाधिकारी को इस बारे में लिखा है और दस दिन में रिपोर्ट मांगी है। रिपोर्ट आने के बाद ही मैं कुछ कह सकूंगी।’
लेकिन, आंगनबाड़ी की सुपरवाइजर नयनताराबेन पटेल ने मामले को यह कह कर हल्के में उड़ा दिया, ‘सन 2000 से यहां दो आंगनबाड़ी हैं। आपको दूसरी जगहों पर भी अलग-अलग आंगनबाड़ी देखने को मिल जाएंगे। वैसे भी जब हमें हर एक हजार की आबादी पर एक आंगनबाड़ी चाहिए तो यहां दो आंगनबाड़ी जरूरी हो जाता है।’
जब हमने पाटन के जिला विकास पदाधिकारी रतनकंवर गड़वी चरण से सपंर्क किया तो उनका कहना था, ‘मैंने पिछले सप्ताह ही ज्वॉयन किया है। मुझ इस बारे में जानकारी नहीं है। मैं मामले को देखूंगा।’ चरण के दफ्तर का काम जिले के हर आंगनबाड़ी के कामकाज की निगरानी करना है।
समाजशास्त्री और इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के पूर्व फेलो घनश्याम शाह कहते हैं, ‘गुजरात में जाति के आधार पर भेदभाव पुरानी बात है। लेकिन प्राइमरी स्कूल में इस हद तक छुआछूत की बात फैल जाना नया घटनाक्रम है।’
जनसत्ता से साभार