हमारे पूर्वज सृष्टि के नियमों और प्रक्रिया विधि को अच्छी तरह जानते थे। उन्हें गाय का महत्व भी पता था और उसे सताने, उसका उत्पीड़न करने से होने वाले परिणामों का भी ज्ञान था। इसलिए सभी संस्कृतियों व धर्मों में गाय को पूजा जाता था तो इसमें कोई अचंभे वाली बात नहीं थी।
चाहे वह मिस्र देश की देवी हाथोर हो, फ्रांस की दिव्य गाय दामोना हो, अतिप्राचीन गाय औधुम्बला हो जो नॉर्डिक्स के अनुसार मानवता की जननी थी, ग्रीक देवी लो हो, भगवान शिव का प्रिय नंदी हो या फिर समृद्धि लाने वाली गाय कामधेनु हो, सभी प्रतीकों में गाय को आराध्य बताया गया है, क्योंकि जीवन की धुरी इस प्राणी के इर्द-गिर्द घूमती थी।
अथर्वेद के अनुसार- ‘धेनु सदानाम रईनाम’ अर्थात् गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। इस मंत्र से सिद्ध हो जाता है कि वैदिक ऋषियों को सृष्टि की कितनी गहरी समझ थी। गाय को देखें तो ज्ञात होता है कि इसी के कारण हमें दूध व अन्य डेयरी उत्पाद मिलते हैं, इसके गोबर से ईंधन व खाद मिलती है, इसके मूत्र से दवाएं व उर्वरक बनते हैं।
जब यह हमारे खेतों में चलती है तो खेत जुतते हैं और दीमक दूर हो जाते हैं, जब हम देवों से संपर्क साधना चाहते हैं तो हम इसके घी व उपले से यज्ञ करते हैं। जब गाय ने कबीर के माथे को चाटा तो कबीर को अद्भुत काव्यगत क्षमताओं का आशीर्वाद मिल गया। गाय समृद्धि व प्रचुरता की द्योतक है, वह सृष्टि के पोषण का स्रोत है, वह जननी है।
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वर्तमान समय में गायों का अपमान किया जा रहा है, उनका शोषण हो रहा है और बड़ी बेरहमी से उसका संहार किया जा रहा है। जिस गाय को कभी मंदिरों और महलों में रखा जाता था, आज उसे ऐसे स्थानों में रखा जा रहा है जहां ताजी हवा नहीं हैं, उसे प्लास्टिक और कूड़ाघर में पेट भरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
उसे स्टेरॉयड व एंटीबायोटिक देकर गर्भधारण करवाया जाता है और अंत में मांस का भोग कराने के लिए मार दिया जाता है। दुनिया में प्रचलित सभी धर्मों में कर्म के विधान को महत्व दिया जाता है। धर्म मार्ग का सारतत्व है यह शिक्षा कि आप जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे।
आप कल्पना कर सकते हैं कि हमें पोषण देने वाली और हमारा पालन करने वाली गाय का शोषण कर हम कैसे कर्म एकत्रित कर रहे हैं। हमारे शरीर पर इसका प्रभाव तुरंत दिखाई देता है और हमारे जीवन पर भी इसका प्रभाव प्रकट होगा भले इसमें कुछ समय लगे।