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 गांधी की वैश्विक प्रतिष्ठा क्यों? | dharmpath.com

Friday , 22 November 2024

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गांधी की वैश्विक प्रतिष्ठा क्यों?

नई दिल्ली, 9 जनवरी (आईएएनएस)। प्रश्न यह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अद्भुत वैश्विक प्रतिष्ठा का क्या कारण है? गांधी ने तीन अलग-अलग देशों में काम किया : इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और भारत में। वह साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलनकारी, समाज सुधारक, धार्मिक चिंतक और एक मसीहा थे।

नई दिल्ली, 9 जनवरी (आईएएनएस)। प्रश्न यह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अद्भुत वैश्विक प्रतिष्ठा का क्या कारण है? गांधी ने तीन अलग-अलग देशों में काम किया : इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और भारत में। वह साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलनकारी, समाज सुधारक, धार्मिक चिंतक और एक मसीहा थे।

उन्होंने दुनिया के इतिहास में सबसे ज्यादा हिंसक सदियों में से एक में विरोध के एक ऐसे अस्त्र का आविष्कार किया जो अहिंसा पर आधारित था। राजनीतिक प्रचार के बीच उन्होंने छुआछूत मिटाने और हस्तशिल्प के पुनरुद्धार का भी प्रयोग किया। वह एक धर्मपरायण हिंदू थे लेकिन दूसरी धार्मिक परंपराओं में उन्हें काफी दिलचस्पी थी। व्यक्तिगत लालच और आधुनिक तकनीक की अनैतिकता के प्रति उनकी चेतावनी कई बार लोगों को प्रतिक्रियावादी लगती थी, लेकिन हाल के समय में फिर से वह केंद्रबिंदु में आ गई है, जब से पर्यावरण संरक्षण पर नई बहस शुरू हुई है।

विक्टोरिया युग के इंग्लैंड में शिक्षित और नस्लवादी दक्षिण अफ्रीका में प्रसिद्धि हासिल करने वाले गांधी का कर्म और उनका जीवन उनके समय के इतिहास (और भूगोल) पर अमिट छाप छोड़े हुए है।

जब वह अपने सघन राजनीतिक कार्यकलापों में लगे हुए थे, उसी दौर में दुनिया में बोल्शेविक क्रांति हुई, फासीवाद का उत्थान और पतन हुआ, दुनिया में दो-दो विश्वयुद्ध हो गए और एशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन में उफान आया। एक तरफ गांधी भारत में अहिंसा के आधार पर एक जनांदोलन चला रहे थे तो दूसरी तरफ चीन में माओ-त्से-तुंग सशस्त्र क्रांति की शुरुआत कर रहे थे।

विद्वानों और आम आदमी दोनों के लिए गांधी बहुत ही दिलचस्प व्यक्तित्व हैं, क्योंकि उनमें साफ तौर पर विसंगतियां दिखती हैं। कभी-कभी वह एक असांसारिक संत के रूप में व्यवहार करते हैं, जबकि कई बार वह राजनीति में डूबे हुए एक नेता की तरह दिखते हैं।

एक बार जब एक ब्रिटिश पत्रकार ने उनसे पूछा कि आधुनिक सभ्यता के बारे में उनके क्या विचार हैं तो उनका कहना था, ‘मुझे लगता है कि यह एक अच्छा विचार साबित होगा।’ फिर भी पश्चिम के इस घनघोर विरोधी ने तीन श्वेत व्यक्तित्वों- हेनरी साल्ट, जॉन रस्किन और लियो टॉल्सटॉय को अपने प्रेरणा पुरुषों के रूप में स्वीकार किया।

ब्रिटिश साम्राज्य को ‘शैतानी’ कहने वाला यह विद्रोही उस समय रोया था जब दूसरे विश्वयुद्ध के समय में लंदन पर (जिससे वह भलीभांति परिचित थे और प्यार करते थे) बमबारी की गई थी। साथ ही अहिंसा के उस प्रसिद्ध पुजारी ने प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारतीयों की सेना में नियुक्ति भी करवाई थी।

गांधी ने एक लंबा जीवन जिया और उनकी मृत्यु के बाद उनकी प्रसिद्धि बढ़ती ही जा रही है। उनका संदेश सन 1982 में रिचर्ड एटनबरो द्वारा निर्मित फिल्म के द्वारा प्रचारित किया गया या आप चाहें तो कहिए कि ऐसा करने की एक कोशिश की गई। इस फिल्म को नौ ऑस्कर मिले और जो एक बॉक्स ऑफिस हिट साबित हुई। उनके उदाहरण ने मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला, दलाई लामा और आंग सान सूची जैसे विद्रोही और मशहूर राजनेताओं को प्रेरित किया है। उनके द्वारा प्रचारित अहिंसा की शिक्षा खत्म नहीं हुई है।

लोकतांत्रिक आंदोलनों के द्वारा हुए करीब पांच दर्जन सत्ता परिवर्तनों के अध्ययन में पाया गया कि सत्तर फीसदी से ज्यादा मामलों में तानाशाही सरकारें इसलिए नहीं धराशायी हुईं कि उनके खिलाफ सशस्त्र विद्रोह हुआ था, बल्कि वे बहिष्कार, हड़ताल, उपवास और विरोध के दूसरे माध्यमों की वजह से पराजित हुईं जिसकी प्रेरणा गांधी से मिली थी।

हाल ही में तथाकथित ‘अरबस्प्रिंग’ आंदोलन के समय मिस्र, यमन और दूसरे देशों में आंदोलनकारियों ने गांधी की तस्वीरों का प्रदर्शन किया और उनके द्वारा चलाए गए विरोध और संघर्ष की कार्यप्रणाली का नजदीकी से अध्ययन किया। उनकी मृत्यु के छह दशक से ज्यादा बीत जाने के बाद भी गांधी का जीवन और उनकी विरासत अब भी चर्चा के केंद्र में है और उस पर कई बार ऐसे देशों में क्रियान्वयन किया जाता है जिसके बारे में गांधी जानते तक नहीं थे। इसके साथ ही वह अपने मादरे वतन के दिलोदिमाग पर अब भी छाए हुए हैं।

उनके विचारों की कहीं तारीफ होती है, कहीं उस पर हमले होते हैं। कुछ लोग उसे खतरनाक व अप्रासंगिक बताते हैं तो कुछ प्रासंगिक। अधिकांश लोग उनके विचारों को हिंदू-मुसलमानों, निचली और ऊंची जातियों और मानव व पर्यावरण के बीच होने वाले संघर्ष और तनाव को सुलझाने के लिए अहम मानते हैं।

(पेंगुइन बुक्स द्वारा हिंदी में शीघ्र प्रकाश्य रामचंद्र गुहा की पुस्तक ‘गांधी : भारत से पहले’ के अंश का दूसरा भाग)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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