उपवास या सौम(रोज़ा) इस्लाम का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है। सौम शब्द की धातु समा है जिसका मतलब है कुवचन,कुविचार और कुकर्म से ‘परहेज़’। सौम इबादत का एक कर्म है; यह आध्यात्मिक बुलंदी को और शाश्वत मुक्ति को हासिल करने की प्रार्थना है।रोज़ा आत्मसंयम का एक अभ्यास है। यह अल्लाह में हमारी आस्था को मज़बूत करता है। रमज़ान का महीना अल्लाह का महीना-शहरुल्ला-भी कहा जाता है क्योंकि यह अल्लाह और हमारे बीच-शरीफुल मुख्लूकात-के बीच के तअल्लुक़ को मज़बूत बनाता है।रोज़े का मक़सद महज़ खाने पीने से परहेज़ करना नहीं है। बल्कि उन कामों से परहेज़ करना जो हराम हैं।कई लोग रोज़ा रखते हैं, उनका रोज़ा कुछ नहीं महज़ भूख और प्यस है। वे भी हैं जिनकी प्रार्थना जागरण और तक़लीफ से बेहतर नहीं है। पहले के मामले में खाना–पीना और दूसरे के मामले में सोना कहीं बेहतर विकल्प हैं”(नहजुल बालगह)।रमज़ान का महीना जिसमें क़ुरआन उतारा गया लोगों के मार्गदर्शन के लिए, और मार्गदर्शन और सत्य-असत्य के अन्तर के प्रमाणों के साथ। अतः तुममें जो कोई इस महीने में मौजूद हो, उसे चाहिए कि उसके रोज़े रखे और जो बीमार हो या यात्रा में हो तो दूसरे दिनों से गिनती पूरी कर ले। ईश्वर तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, वह तुम्हारे साथ सख़्ती और कठिनाई नहीं चाहता और चाहता है कि तुम संख्या पूरी कर लो और जो सीधा मार्ग तुम्हें दिखाया गया है, उस पर ईश्वर की बड़ाई प्रकट करो और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।’’रोज़ा इंसान से स्वार्थपरता और सुस्ती को दूर करता है। रोज़ा ईश्वर की नेमतों (खाना-पानी इत्यादि) के महत्व का एहसास दिलाता है। रोज़ा इंसान को ईश्वर का सच्चा शुक्रगुज़ार बन्दा बनता है। रोज़े के द्वारा इंसान को भूख-प्यास की तकलीफ़ का अनुभव कराया जाता है, ताकि वह भूखों की भूख और प्यासों की प्यास में उनका हमदर्द बन सके। रोज़ा इंसान में त्याग के स्तर को बढ़ाता है।रोज़ा एक बहुत महत्वपूर्ण इबादत है। हर क़ौम में, हर पैग़म्बर ने रोज़ा रखने की बात कही। आज भी रोज़ा हर धर्म में किसी न किसी रूप में मौजूद है। क़ुरआन के अनुसार रोज़े का उद्देश्य इंसान में तक़वा या संयम पैदा करना है। तक़वा का एक अर्थ है—‘ईश्वर का डर’ और दूसरा अर्थ है—‘ज़िन्दगी में हमेशा एहतियात वाला तरीक़ा अपनाना।’ ईश्वर का डर एक ऐसी बात है जो इंसान को असावधान होने अर्थात् असफल होने से बचा लेता है।रोज़ा रखने के बाद इंसान का आत्मविश्वास और आत्मसंयम व संकल्प शक्ति बढ़ जाती है। इंसान जान लेता है कि जब वह खाना-पानी जैसी चीज़ों को दिन भर छोड़ सकता है, जिनके बिना जीवन संभव नहीं, तो वह बुरी बातों व आदतों को तो बड़ी आसानी से छोड़ सकता है। जो व्यक्ति भूख बर्दाश्त कर सकता है, वह दूसरी बातें भी बर्दाश्त (सहन) कर सकता है। रोज़ा इंसान में सहनशीलता के स्तर को बढ़ाता है।
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