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 क्या चुनाव तक नरेन्द्र मोदी का बुलबुला फूट जाएगा? | dharmpath.com

Saturday , 23 November 2024

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क्या चुनाव तक नरेन्द्र मोदी का बुलबुला फूट जाएगा?

Gujarat's Chief Minister Narendra Modi greets people as he arrives to  attend an orientation  programme in New Delhiभारत में अगले आम चुनाव होने तक अभी भी छह महीने का समय बाक़ी है। लेकिन मुख्य सवाल आज भी यही बना हुआ है कि मई-2014 में होने वाले आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी प्रधानमन्त्री बनेंगे या नहीं? जहाँ भारत की जनता के एक वर्ग को नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने की सम्भावना के बारे में सुनकर डर लग रहा है, वहीं दूसरा वर्ग इस सम्भावना को देखकर ख़ुशी जाहिर कर रहा है। लेकिन भारत की राजनीति की आज दशा यह है कि सारी सम्भावनाएँ एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूम रही हैं । सवाल यह उठता है कि आख़िर यह नरेन्द्र मोदी चीज़ क्या हैं? क्या वे सचमुच भारत को बचाने आ रहे हैं या उनके आने से भारत की नैय्या डूब ही जाएगी? रेडियो रूस पर आज हम इस बारे में अपने विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की के विचारों से आपको अवगत कराएँगे।

 इस सप्ताह के शुरू में नरेन्द्र मोदी के नाम से जुड़ी दो बड़ी घटनाएँ हुईं। सोमवार को उन्होंने विकासशील बाज़ारों के विश्व सम्मेलन के सहभागियों को स्काईप के माध्यम से सम्बोधित किया क्योंकि अमरीका नरेन्द्र मोदी को अमरीका प्रवेश वीजा नहीं दे रहा है, इसलिए उन्हें स्काईप की सहायता लेनी पड़ी। इसके अगले ही दिन भारत के दूरसंचार और न्यायमन्त्री कपिल सिब्बल ने समाचार समिति रॉयटर को एक बड़ा इण्टरव्यू देते हुए उसमें सीधे-सीधे यह घोषणा की कि प्रकृति के नियमों के अनुसार सभी बुलबुले फूटते जा रहे हैं। और यह बुलबुला भी यानी नरेन्द्र मोदी का बुलबुला भी चुनाव से पहले-पहले फूट जाएगा। रेडियो रूस के विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की ने इस सिलसिले में बोलते हुए कहा :

वैसे सच-सच कहा जाए तो भावी चुनावों में सवाल एक ही है कि नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमन्त्री बनेंगे या नहीं? और भारत की वर्तमान सरकार ने अपने पूरे प्रचार-तन्त्र को इस काम में लगा दिया है कि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री न बनने दिया जाए। भारत के मुख्य विदेश व्यापार सहयोगी अमरीका द्वारा मोदी का जो बायकाट किया जा रहा है, उसे भी इसी नज़र से देखना चाहिए। विभिन्न विचारधाराओं वाली कई छोटी-छोटी पार्टियों को मिलाकर तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिशें भी इसीलिए की जा रही हैं। इस तीसरे मोर्चे की सफलता की सम्भावनाएँ तो ज़रा भी नहीं हैं, लेकिन इस तरह का मोर्चा भारतीय जनता पार्टी के वोट खींच सकता है, जिसने मोदी को प्रधानमन्त्री पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है।

भावी चुनावों के इस मुख्य सवाल पर ही बहुत से दूसरे तत्त्व भी निर्भर करते हैं। सत्तारूढ़ काँग्रेस और उसके नेतृत्व वाला सँयुक्त प्रगतिशील मोर्चा बड़ी तेज़ी से जनता के बीच अपनी लोकप्रियता खो रहे हैं। इसी कारण से काँग्रेस अभी तक अपने प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं कर पाई है। अब अगर कोई जादू ही हो जाए तो काँग्रेस सत्ता में रह पाएगी। दो-तीन साल पहले तक ऐसा लग रहा था कि भारत के सत्ताधारी वंश के वारिस राहुल गाँधी प्रधानमन्त्री पद के ऐसे उम्मीदवार हैं, जिनका कोई विकल्प नहीं हो सकता। लेकिन फ़रवरी-मार्च-2012 में राहुल गाँधी के नेतृत्त्व में लड़े गए उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में काँग्रेस की हुई भारी हार ने दिखाया कि राहुल गाँधी को पूरे देश के स्तर पर सामने आने में अभी काफ़ी समय लगेगा। कपिल सिब्बल के इण्टरव्यू में भी यह बात प्रतिबिम्बित होती है। जब उनसे सीधे-सीधे यह सवाल पूछा गया कि क्या वे राहुल गाँधी को भावी प्रधानमन्त्री के रूप में देखते हैं, उन्होंने उसका सीधा उत्तर देने की जगह बात यह कह कर टाल दी कि यह सवाल काँग्रेस पार्टी को तय करना है।

लेकिन वास्तव में अब गम्भीर सवाल यह नहीं है कि बुलबुला चुनाव से पहले फूटेगा या चुनाव के बाद, गम्भीर सवाल तो यह है कि यदि मोदी चुनाव जीत लेते हैं और भारत के प्रधानमन्त्री बन जाते हैं तो भारत किस रास्ते पर आगे बढ़ेगा। यहाँ दूसरी परिस्थितियाँ भी अपनी भूमिका निभाएँगी। राजनीतिज्ञ के रूप में मोदी की कौनसी छवि उभर कर सामने आएगी? अपने राज्य में आर्थिक समस्याओं का समाधान करने वाले राजनीतिज्ञ की छवि या फिर ‘हिन्दुत्त्व’ के कठोर सिद्धान्तों में विश्वास रखने वाले नेता की छवि, जिसके कारण बहुजातीय और बहुधार्मिक देश भारत कई हिस्सों में बँट सकता है।

फिलहाल दुनिया की नज़र में नरेन्द्र मोदी एक होशियार प्रबन्धक के रूप में बने हुए हैं। वाशिंगटन में विकासशील बाज़ारों के विश्व सम्मेलन के सहभागियों को सम्बोधित करने का उनका उद्देश्य भी यही था कि अपनी कुशल प्रबन्धक की छवि को बनाए रखा जाए। लेकिन मुश्किल तो यह है कि भारत में सिर्फ़ एक राज्य गुजरात ही नहीं है। और भारत की अर्थव्यवस्था के सामने समस्याएँ लगातार आती रहती हैं। ऐसा हो सकता है कि सिर्फ़ एक ही राज्य के स्तर पर पाया गया अनुभव भारतीय अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने की दृष्टि से कम पड़ जाए। तब भारत को विकास के रास्ते पर आगे ले जाना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा।
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क्या चुनाव तक नरेन्द्र मोदी का बुलबुला फूट जाएगा? Reviewed by on . भारत में अगले आम चुनाव होने तक अभी भी छह महीने का समय बाक़ी है। लेकिन मुख्य सवाल आज भी यही बना हुआ है कि मई-2014 में होने वाले आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी प्रधा भारत में अगले आम चुनाव होने तक अभी भी छह महीने का समय बाक़ी है। लेकिन मुख्य सवाल आज भी यही बना हुआ है कि मई-2014 में होने वाले आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी प्रधा Rating:
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