नई दिल्ली– सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने विवादित डिजिटल मीडिया नियमों, यानी कि इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम 2021, से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है.
मंत्रालय के डिजिटल मीडिया डिविजन में अवर सचिव और केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) प्रेम चंद ने ऐसी दलीलों का हवाला देते हुए सूचना देने से मना किया है, जिसकी इजाजत सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में नहीं दी गई है.
चंद ने कहा चूंकि इस नियम से जुड़ी फाइल फिलहाल उनके पास नहीं है और वो किसी और के पास गई हुई है, इसलिए वे जानकारी मुहैया नहीं करा सकते हैं.
आरटीआई एक्ट, 2005 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो इस आधार पर सूचना देने से मना करने की स्वीकृति प्रदान करता हो.
सीपीआईओ ने सूचना देने से इनकार करते हुए ऐसी किसी धारा का उल्लेख नहीं किया है, जो मांगी गई जानकारी को सार्वजनिक करने से छूट प्रदान करता हो.
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी कहते हैं कि ऐसा जवाब आरटीआई कानून का खुले तौर पर उल्लंघन है, ये जानकारी सरकार को स्वत: सार्वजनिक करनी चाहिए थी.
उन्होंने कहा, ‘आरटीआई एक्ट के अनुसार सिर्फ इसकी धारा 8 और 9 के तहत ही जानकारी देने से इनकार किया जा सकता है, जिसमें स्पष्ट रूप से विवरण दिए हुए हैं कि जन सूचना अधिकारी को किस तरह की जानकारी नहीं देनी होती है. ये तो सरासर मनमानी है कि वे अपने हिसाब से कारण बनाकर सूचना देने से मना कर रहे हैं.’
गांधी ने कहा, ‘यदि सीपीआईओ के पास फाइल नहीं थी, तो उन्हें धारा 6(3) के तहत उस व्यक्ति के पास आवेदन ट्रांसफर कर देना चाहिए था, जिसके पास फाइल थी या फिर वे फाइल मंगा कर जवाब दे सकते थे.’
द वायर ने नए डिजिटल मीडिया नियमों को बनाने से जुड़े सभी दस्तावेजों जैसे कि पत्राचार, फाइल नोटिंग्स, विचार विमर्श, मीटिंग के मिनट्स इत्यादि की प्रति मांगी थी.
खास बात ये है कि मंत्रालय ने अपने जवाब में नियम बनाने के लिए हुए विचार-विमर्श के नाम पर दो सेमिनार और एक बैठक का जिक्र किया है, जिसमें से दो ओटीटी प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं और एक का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है. इसमें डिजिटल न्यूज़ मीडिया से जुड़े किसी भी मीटिंग का उल्लेख नहीं है.
मंत्रालय ने कहा, ‘डिजिटल मीडिया पर न्यूज और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए नियम बनाने से पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 10-11 अक्टूबर 2019 को मुंबई में और 11 नवंबर 2019 को चेन्नई में सेमिनार का आयोजन किया था. इसके अलावा सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने ओटीटी इंडस्ट्री के सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ दो मार्च 2020 को मीटिंग की थी. इस विचार-विमर्श की कार्यवाही का कोई मिनट्स तैयार नहीं किया गया है.’
सरकार के इन दावों की हकीकत तलाशने पर पता चलता है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने चलचित्र प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (अब सरकार ने इसे खत्म कर दिया है) के साथ मिलकर 10-11 अक्टूबर 2019 को ‘चलचित्र प्रमाण और ऑनलाइन कंटेंट के विनियमन’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया था.
ये सेमिनार मुख्य रूप से ऑनलाइन माध्यमों जैसे कि नेटफ्लिक्स, अमेजन इत्यादि जगहों पर दिखाए जानी वाली फिल्मों को लेकर नियम बनाने पर केंद्रित था. खास बात ये है कि इसमें बुलाए गए अतिथियों ने भी नियम बनाने से पहले व्यापक ‘विचार-विमर्श’ और ‘स्व-नियमन’ पर जोर दिया था.
इसे लेकर मंत्रालय की एक प्रेस रिलीज के मुताबिक बॉम्बे हाईकोर्ट जज गौतम पटेल में डिजिटल कंटेंट पर ध्यान देने की सलाह देते हुए कहा था कि सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ बड़े स्तर पर सलाह-मशविरा किया जाना चाहिए, ताकि स्व-नियमन की एक बेहतर व्यवस्था बन सके.
स्पष्ट है कि जस्टिस पटेल ने सरकार द्वारा किसी नियम बनाने के बजाय स्व-नियमन पर जोर दिया था.
इसी तरह चलचित्र प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (एफसीएटी) के अध्यक्ष रिटायर्ड जज जस्टिस मनमोहन सरीन ने कहा था कि स्व-नियमन कैसे करना है, इसके बारे में इंडस्ट्री के लोगों को ही फैसला करना चाहिए और किसी भी तरह के पक्षपात या पूर्वाग्रह से बचना चाहिए.
इस सेमिनार में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव अमित खरे ने भी अपने विचार व्यक्त किए और दावा किया था कि सरकार पर्याप्त विचार-विमर्श कराने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि नियम, स्व-नियमन या कोई अन्य तरीके का नियम हो, ये सब ऐसे बनाए जाने चाहिए कि ये सभी को स्वीकार्य हों और आसानी से लागू हो सकें.
विडंबना ये है कि नए डिजिटल मीडिया नियमों को लेकर आरोप ही यही है कि इन्हें उचित विचार-विमर्श करके नहीं बनाया गया है और इनका निशाना स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले मीडिया संस्थानों का दमन करना है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने चेन्नई में 11 नवंबर 2019 को कराए जिस सेमिनार का जिक्र किया है, उससे जुडी कोई भी प्रेस विज्ञप्ति मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है.
वहीं मंत्रालय के जवाब में ही स्पष्ट है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने नियम बनाने से पहले सिर्फ ओटीटी मंचों के साथ ही बैठक की थी.
ये आईटी नियम सरकार को बेतहाशा शक्तियां प्रदान करते हैं, जहां अस्पष्ट आधार पर प्रकाशक को उनकी बात कहने का मौका दिए बिना डिजिटल मीडिया न्यूज़ प्लेटफॉर्म का कंटेट हटाया जा सकता है.
ये सब इंटरनेट आधारित सभी मीडिया मंचों- जिनमें समाचार, मनोरंजन, नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार जैसे ओटीटी ऐप और फेसबुक, ट्विटर जैसे बड़े सोशल मीडिया मंच शामिल हैं, को रेगुलेट करने के नाम पर हो रहा है.
इससे भी खराब यह है कि नए नियम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव को बिना प्रकाशक से चर्चा किए डिजिटल न्यूज़ सामग्री को सेंसर करने की आपात शक्ति प्रदान करते हैं. संक्षेप में कहें, तो इन शक्तियों के साथ नौकरशाह सबसे बड़े संपादक और सेंसर हो जाएंगे!
इसलिए द वायर और द न्यूज मिनट ने डिजिटल न्यूज मीडिया को प्रभावित करने वाले नियमों को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है.
वहीं सरकार का दावा है कि ये नियम सबको बराबर अवसर प्रदान करने के लिए लाए गए हैं, हालांकि इसके जरिये सरकार को डिजिटल मीडिया पर ‘नजर’ बनाने की शक्तियां मिल गई हैं. जबकि अखबारों को विनियमित करने वाले प्रेस परिषद एक्ट, 1978 के तहत सरकार का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता है.
पिछले महीने 22 मार्च को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नए डिजिटल मीडिया नियमों का क्रियान्वयन स्थगित करने की अपील की और आचार संहिता को लागू करने की तीन चरणीय व्यवस्था की निंदा करते हुए कहा कि यह दमनकारी और प्रेस की आजादी के प्रतिकूल है.
गिल्ड ने नियमों को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि इससे प्रेस की आजादी छिनने की आशंका है. उन्होंने सभी पक्षकारों के साथ अर्थपूर्ण विचार-विमर्श किए जाने की अपील की थी.