शिमला, 19 अक्टूबर – हिमाचल प्रदेश की मनोरम कुल्लू घाटी में 534 जीवित देवी-देवता हैं। एक नई किताब के अनुसार, वे यात्राएं करते हैं, खेलते हैं, नाराज होते हैं और प्रायश्चित की मांग करते हैं।
एक साल के शोध और क्षेत्रीय कार्य के बाद कुल्लू प्राशासन द्वारा संग्रहित इस 583 पृष्ठों वाली पुस्तक में कहा गया, “यहां देवताओं का निवास है। लोग उन्हें मानते हैं। ये देवता मूर्तियां नहीं हैं, वे जीवित हैं।”
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा इसी महीने की शुरुआत में विमोचित पुस्तक ‘ए रिफरेंस बुक और कुल्लु देवताज’ के अनुसार, देवता लोगों के साथ रहते हैं। वे अपने अनुयायियों से बातें करते हैं और बताते हैं कि उन्हें क्या करना है। उनके परिवार और रिश्तेदार हैं, जो उत्सवों में मिलते हैं।
कुल्ले के उपायुक्त राकेश कंवर ने आईएएनएस को बताया, “हमने कुल्लू में पूजे जाने वाले सभी देवी-देवताओं और उनके स्थानों की एक सूची बनाने की कोशिश की है।”
उन्होंने बताया कि यह किसी संगठन या व्यक्ति द्वारा किया गया कुल्लू देवताओं का पहला संकलन है।
इस अत्यंत कठिन कार्य के प्रमुख कार्यकर्ता कंवर ने बताया कि इस संकलन में जानेमाने लेखकों, इतिहासकारों, राज्य राजस्व कर्मचारियों और देवी-देवताओं के प्रतिनिधि देवी देवता करदार संग का योगदान है।
मुख्यमंत्री ने एक सप्ताह चलने वाले अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव के समापन समारोह में पुस्तक का विमोचन किया था। उन्होंने कहा यह पुस्तक क्षेत्र की मौखिक परंपराओं और संस्कृति की आकर्षक दुनिया के बारे में जानने में सहायता करेगी।
हर साल 250 से ज्यादा देवी-देवता सदियों पुराने कुल्लू दशहरा के उत्सव के लिए एकत्र होते हैं।
पुस्तक के अनुसार कुल्लू देवताओं के मामलों का प्रबंधन देवता समितियों द्वारा होता है, जिसमें एक ‘करदार’ या मंदिर का प्रबंधक, और एक ‘गुर’ या आकाशवाणी करनेवाला, संगीतकार और एक पुजारी शामिल होता है।
देवता अपने अनुयायियों के आमंत्रण स्वीकार करते हैं। कभी-कभी वे तीर्थयात्रा करने का फैसला करते हैं। कुछ देवता एक-दो साल के बाद तीर्थयात्रा करते हैं, तो कुछ 30-40 साल के बाद और कुछ सैकड़ो वर्षो बाद विशेष तीर्थयात्राएं करते हैं।
देवता ‘गुर’ को सम्मन करते हैं और वह समाधि लगाकर देवताओं से संपर्क करता है। देवता की इच्छा को अनुयायियों तक पहुंचाया जाता है और वे उसका पालन करने को तैयार रहते हैं। हर परिवार के एक सदस्य को देवता के जुलूस में शामिल होना होता है।
पुस्तक के अनुसार, लंबी और कठिन यात्राएं पैदल करनी होती हैं। इसमें कई दिनों यहां तक कि महीनों का समय लगता है। इस दौरान कड़े नियमों और रिवाजों का पालन करना होता है। यात्रा का समय और गति का निर्धारण देवता करते हैं। देवी/देवता की इच्छा के बिना किसी को उनकी पालकी या रथ पर चढ़ने की अनुमति नहीं है।
कंवर ने बताया कि यह किताब देवताओं और मनुष्यों के बीच सहजीवी संबंधों को समझने का एक प्रयास था।