उज्जैन– सिंहस्थ की तैयारियों के बीच संतों का आना उज्जैन में जारी है.इनमें कुछ सही में संत हैं कुछ हमेशा की तरह वेश धरे हुए हम आपको दोनों ही प्रकार के संतों से परिचित करवाएंगे.यदि सही संतों की प्रस्तुति आपके समक्ष प्रस्तुत करेंगे तो ढोंगियों की पोल भी खोलेंगे.आज हम आपको परिचित करवा रहे हैं भारत की भूमि पर इस कापालिक मत के कुछ ही साधकों में एक भैरवानंद सरस्वती जी से .
कापालिक या कालमुख गुरु-परंपरा का यह सम्प्रदाय वाम-मार्ग के साधकों में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है.इस परंपरा के साधक असीम शक्तियों के स्वामी माने जाते हैं .इनकी क्रियाओं के अत्यधिक घोर होने से ये समाज से दूर होते गए.आज भारत में कुछ ही साधक इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं जिनमें एक हैं वयोवृद्ध 85 वर्षीय भैरवानंद सरस्वती जी.
इनका जन्म पंजाब के एक जिले में संपन्न व्यवसायी परिवार में हुआ.इनके परिवार में कपडे की मिलें हुआ करती थीं.सन 1980 के दशक में सन्यासी होने के बाद ये वनों और पहाड़ों में चले गए एवं अपनी साधना की.काली शिला जैसी दुर्गम तंत्र स्थानों पर इन्होने साधना की.
सिंहस्थ में ये आये हुए हैं एवं गंभीर स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं.अवस्था की वजह और रुग्णता का भार इन्हें डायलिसिस पर रखे हुए है.भारत के इस महान संत के स्वास्थ्य लाभ की धर्मपथ कामना करता है.
इनके साथ डॉ भुवनेश्वरी सरस्वती निजी सेवा में हैं जो आंध्रप्रदेश की रहने वाली हैं तथा भैरवानंद जी का उपचार कर रही हैं.
लेख-भरत बेंडवाल
सम्पादन-अनिल सिंह