चंडीगढ़, 3 अप्रैल (आईएएनएस)। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अक्सर दोहराया करते हैं कि ‘भ्रष्टाचार बिल्कुल बर्दाशत नहीं (जीरो टॉलरेंस)’ लेकिन ईमानदार आईएएस अधिकारी अशोक खेमका और प्रदीप कासनी के साथ जो सलूक हुआ है, उससे लगता है कि उनका जीरो टॉलरेंस का दावा जीरो (0) हो चला है।
चंडीगढ़, 3 अप्रैल (आईएएनएस)। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अक्सर दोहराया करते हैं कि ‘भ्रष्टाचार बिल्कुल बर्दाशत नहीं (जीरो टॉलरेंस)’ लेकिन ईमानदार आईएएस अधिकारी अशोक खेमका और प्रदीप कासनी के साथ जो सलूक हुआ है, उससे लगता है कि उनका जीरो टॉलरेंस का दावा जीरो (0) हो चला है।
जिन अधिकारियों ने भ्रष्ट प्रणाली को चुनौती देने का साहस किया है, उनके लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ अपने ही दरवाजे पर ही दम तोड़ती नजर आ रही है।
खट्टर सरकार ने सत्ता संभालने के कुछ ही दिनों बाद दोनों अधिकारियों का अधिकार क्षेत्र बदल दिया। ये अधिकारी जिन विभागों की देखरेख कर रहे थे, वहां उन्होंने प्रणाली में सफाई लाने का प्रयास किया था। खेमका और कासनी अपनी सेवा के दौरान क्रमश: 46 और 60 तबादले देख चुके हैं।
पिछले वर्ष 26 अक्टूबर को जब खट्टर सरकार सत्ता में आई तो व्यापक तौर पर यह भरोसा जगा था कि पूर्व की भूपेंद्र सिंह हुड्डा नीत कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में सत्ता से लोहा लेने वाले खेमका और कासनी को अब महत्वपूर्ण जवाबदेही सौंपने के लिए चुना जाएगा।
खट्टर सरकार हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पहली सरकार है।
खेमका ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और रियल्टी क्षेत्र की बादशाह कंपनी डीएलएफ के बीच 58 करोड़ रुपये के भूमि सौदे में गड़बड़ी पकड़ी थी और इससे हुड्डा सरकार की किरकिरी हुई थी। खेमका अक्टूबर 2012 में अखबार की सुर्खियों में छा गए थे और वाड्रा के हरियाणा में विवादास्पद भूमि सौदों की जांच के आदेश देने पड़े थे।
खबरें हैं कि खेमका प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में जा सकते हैं, लेकिन इस दिशा में अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है।
दोनों ईमानदार अधिकारियों के साथ भी वही होगा, जो पिछले शासन में होता रहा, इसकी किसी को कोई उम्मीद नहीं थी।
पिछले वर्ष दिसंबर में गुड़गांव का डिवीजनल कमिशनर बनाए जाने के एक माह के भीतर ही उनका का तबदला कर दिया गया। गुड़गांव राष्ट्रीय राजधानी से सटा हुआ शहर है। अधिकांश लोगों को भरोसा था कि भूमि माफिया पर खट्टर सरकार का दबाव काम करेगा।
गुड़गांव और उससे सटे इलाकों में भूमि हड़पने वालों को हरियाणा के राजस्व अधिकारियों का किस तरह कथित मौन समर्थन है, इस बारे में सरकार को रिपोर्ट सौंपने के बाद कासनी के प्रति खट्टर सरकार का समर्थन दूर हो गया।
तबादले के बाद कासनी ने खुद के ठिकाना लगाए जाने पर अपना ‘आश्चर्य’ व्यक्त किया था। कुछ समय तक वे किसी पद के बगैर रहे थे।
मजेदार बात यह है कि पूर्व की हुड्डा सरकार के 10 वर्षो के कार्यकाल में करीबी रिश्ता रखने वाले अधिकारियों का खट्टर सरकार ने भी लकदक वाली जगहों पर पदस्थापित किया है। यानी वही सब होना है, जो होता रहा है। जाने कहां गया जीरो टॉलरेंस!