नई दिल्ली, 27 अक्टूबर (आईएएनएस)। जम्मू एवं कश्मीर में विभिन्न दलों और गुटों से बातचीत के लिए केंद्र सरकार द्वारा नवनियुक्त वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा का कहना है कि कश्मीर में सबसे बड़ी चुनौती और शीर्ष प्राथमिकता कश्मीरी युवकों और आतंकवादियों को अतिवादी बनने और भारत के इस हिस्से को सीरिया बनने से रोकना है।
नई दिल्ली, 27 अक्टूबर (आईएएनएस)। जम्मू एवं कश्मीर में विभिन्न दलों और गुटों से बातचीत के लिए केंद्र सरकार द्वारा नवनियुक्त वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा का कहना है कि कश्मीर में सबसे बड़ी चुनौती और शीर्ष प्राथमिकता कश्मीरी युवकों और आतंकवादियों को अतिवादी बनने और भारत के इस हिस्से को सीरिया बनने से रोकना है।
खुफिया ब्यूरो (आईबी) की दो वर्षो तक कमान संभाल चुके शर्मा ने कहा कि उनका उद्देश्य हिंसा समाप्त करने के लिए ‘जितनी जल्दी हो सके’ किसी को भी, यहां तक कि एक रिक्शा चालक और ठेला चालक भी, जो राज्य में शांति स्थापना में अपना योगदान दे सकते हैं, उन्हें बातचीत में शामिल करना है।
शर्मा ने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत तौर पर यह देखकर काफी दुख होता है कि कश्मीरी, खासकर युवाओं ने जो राह चुनी है, वह समाज को बर्बाद कर सकती है।
शर्मा ने आईएएनएस से साक्षात्कार में नए युवकों के आतंकवादी कमांडर बनने की ओर इशारा करते हुए कहा, “मैं दर्द महसूस करता हूं और कुछ समय मैं भावुक भी हो जाता हूं। मैं चाहता हूं कि सभी तरफों से जितना जल्दी हो सके, हिसा समाप्त की जाए। कश्मीर के युवा जैसे जाकिर मुसा (कश्मीर अलकायदा प्रमुख) और बुरहान वानी (हिजबुल मुजाहिदीन का मारा गया कमांडर) को ज्यादा तवज्जो मिलती है, जब वह खलीफा (इस्लाम को स्थापित करने) की बात करते हैं।”
उन्होंने कहा कि कश्मीर के युवा जिस तरफ बढ़ रहे हैं, वह अतिवाद है और यह पूरी तरह से कश्मीरी समाज को बर्बाद कर देगा।
शर्मा ने कहा, “मुझे कश्मीर के लोगों की चिंता है। अगर यह चलता रहा, तो यहां के हालात यमन, सीरिया और लीबिया जैसे हो जाएंगे। कई समूह आपस में लड़ना शुरू कर देंगे। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि सभी, हम सभी इस वार्ता में सहयोग करें, ताकि कश्मीरियों की परेशानी कम हो।”
उन्होंने कहा, “मुझे कश्मीर के युवाओं को भरोसा दिलाना होगा कि वे लोग केवल अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं और चाहे वे इसे आजादी, इस्लामिक खलीफा या इस्लाम के नाम पर करें, सभी कश्मीरियों का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। आप पाकिस्तान, लीबिया, यमन और किसी भी देश का उदाहरण ले सकते हैं, जहां ये सब हो रहा है। ये मुल्क दुनिया के सबसे ज्यादा हिंसक स्थान बन गए हैं। इसलिए मैं चाहता हूं कि यह सब भारत में न हो।”
खुफिया एजेंसी में वर्ष 2003 से 2005 तक, इस्लामिक आतंकवाद डेस्क का जिम्मा संभाल चुके भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी शर्मा को सोमवार को कश्मीर मे तीन दशकों तक चली हिंसा को खत्म करने के लिए वार्ताकार नियुक्त किया गया था।
वर्ष 2015 में जब आईबी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के केरल, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में मॉड्यूल की जांच कर रहा था, उस दौरान शर्मा वैश्विक आतंकवादी नेटवर्क के संभावित भर्ती करने वाले को गिरफ्तार करने में ताकत झोंकने के बदले परामर्श और सुधार कर समस्या को पकड़ने के लिए जाने जाते थे।
मृदुभाषी और पूर्व खुफिया प्रमुख को वर्ष 1992 से 1994 तक तक आईबी के सहायक निदेशक रहने के दौरान गिरफ्तार आतंकवादियों में सुधार लाने के उद्देश्य से दोस्ताना संबंध स्थापित करने के लिए भी जाना जाता है। यह वह समय था, जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था।
कश्मीर में आईबी की सेवाएं देने के दौरान शर्मा ने 1993 में हिजबुल कमांडर मास्टर अहसान डार को गिरफ्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उन्होंने याद करते हुए कहा कि कैसे श्रीनगर की जेल में डार ने उन्हें अपनी बेटी से मिलवाने का आग्रह किया था और उन्होंने डार को उसकी बेटी से मिलवाया भी था।
कश्मीरी युवाओं तक पहुंच बनाने के तरीकों की पहचान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह अभी इस पर काम कर रहे हैं।
शर्मा ने कहा, “मैं सभी से बातचीत के लिए तैयार हूं। कोई भी, जो शांति में विश्वास करता है और अच्छे उपायों के साथ शांति स्थापित करने के लिए विचार देना चाहता है, मैं उसे सुनना चाहूंगा। वह एक साधारण छात्र, युवा, एक रिक्शावाला, एक ठेलावाला भी हो सकता है।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने हुर्रियत नेताओं के साथ वार्ता की पहल की है, उन्होंने सतर्कता से कहा, “मुझे देखना है। मैं उन सभी से बातचीत करने के लिए तैयार हूं, जो शांति में अपना योगदान देना चाहते हैं।”
आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में हुर्रियत के कुछ नेताओं के जेल में बंद होने के बावजूद सरकार द्वारा सभी से सकारात्मक बातचीत करने की ओर इशारा किए जाने के बाद भी हुर्रियत नेताओं ने शर्मा की नियुक्ति पर अब तक चुप्पी साध रखी है।
कश्मीरी युवकों के कश्मीर समस्या के अलावा हाल के दिनों में अतिवादी होने के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि राज्य में वर्ष 2008 के जमीन विवाद और बुरहान वानी के मारे जाने के बाद वर्ष 2016 के सड़कों पर लगातार हिंसा की घटनाओं के पहले राज्य में लगभग शांति थी।
शर्मा ने कहा, किसी भी तरह युवाओं और छात्राओं के दिमाग को किसी अन्य जगह लगाना होगा। यह सुलझाने का बिंदु है। मैंने बहुत करीब से कश्मीर में हिंसा देखी है। मैं श्रीनगर में पदस्थापित था, इसलिए इस तरह की हिंसा देखकर मुझे बहुत पीड़ा होती है, दुख होता है।
सरकार की ओर से कश्मीर की समस्या सुलझाने के लिए पहले नियुक्त शांतिदूतों और अन्य पहल पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि वह कुछ नए विचारों पर अमल की कोशिश करने के लिए अविलंब तैयार हैं।
शर्मा ने कहा, “मैं पहले के वार्ताकारों की रिपोर्ट पढ़ रहा हूं, लेकिन दूसरी ओर मैं कुछ नए उपायों पर भी विचार कर रहा हूं।”
शांति स्थापित करने का काम शर्मा को पहली बार नहीं दिया गया है। इससे पहले, इसी वर्ष जून में उन्हें बोडो और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) समेत असम में उग्रवादी समूहों से बातचीत करने का कार्य सौंपा गया था।
शांति स्थापना के पहले के कार्य और अब कश्मीर में चल रहे इस प्रयास के बीच अंतर पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “सबसे बड़ा फर्क यह है कि पूर्वोत्तर में पाकिस्तान या किसी तीसरे देश की संलिप्तता नहीं थी।”