नई दिल्ली, 6 नवंबर (आईएएनएस)। प्रख्यात डोगरी कवयित्री पद्मा सचदेव ने कहा कि कविता कभी मर नहीं सकती। उसका जन्म लोकगीतों से हुआ है और वह पूरे देश में व्याप्त है। भाषाओं की विविधता हमारी कविता को एक अलग रंग देती है।
साहित्य अकादेमी सभागार में आयोजित ‘अखिल भारतीय काव्योत्सव’ में उन्होंने कहा कि कविता की शक्ति और ताकत हर संवेदनशील व्यक्ति महसूस करता है। जो गद्य के कई पन्नों में कहना संभव न हो, वह कविता की कुछ पंक्तियों से कहा जा सकता है।
अध्यक्षीय व्याख्यान देते हुए अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि कविता रचनाकार का कमाया हुआ सत्य है। कवि अपने जीवन के अनुभवों की गहराई से शब्दों को चुनता है और उनमें अर्थ भरकर कविताएं प्रस्तुत करता है।
उन्होंने मीर, तुलसी, गालिब, बिहारी, कालिदास के काव्य उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि कविता हमारे आवेग को पूर्ण अभिव्यक्ति देती है। इतना ही नहीं वह इंसान को मुश्किलों में खड़े रहने की शक्ति भी देती है। कवि समय और भाषा के बीहड़ से ठीक एक मूर्तिकार की तरह कविता का सृजन करता है, और उसके लेखन पर कोई भी पाबंदी काम नहीं करती।
तिवारी ने कहा, “मैं साहित्य अकादेमी पुरस्कार वापस करने वाले लेखकों से अपील करता हूं कि वे सब इस पर पुनर्विचार करें। साहित्य अकादेमी लेखकों का घर है और पुरस्कार वापसी उनके द्वारा घर छोड़ने जैसा है। हम सब इससे व्यथित हैं।”
काव्यपाठ के सत्र में एच.एस. शिवप्रकाश (कन्नड़), सुकृता पॉल कुमार (अंग्रेजी), लीलाधर जगूड़ी (हिंदी), सिर्पी बालसुब्रह्मण्यम (तमिल), वोलेटि पार्वतीशम (तेलुगु), और अब्दुल अहमद साज ने उर्दू में अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं। हिंदी व उर्दू के अलावा अन्य भाषाओं के कवियों ने भी अपनी एक-एक कविता मूल भाषा में प्रस्तुत की और बाकी के अंग्रेजी/हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए।
उद्घाटन सत्र में स्वागत व्याख्यान अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने दिया और इस सत्र का संचालन भी किया।
अखिल भारतीय काव्योत्सव के दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात ओड़िया कवि हरप्रसाद दास ने की, जिसमें नीलिम कुमार (असमिया), गंगा प्रसाद विमल (हिंदी), रघु लैशाथेम (मणिपुरी), प्रभा गनोरकर (मराठी), वनिता (पंजाबी), मालचंद तिवाड़ी (राजस्थानी), रमाकांत शुक्ल (संस्कृत) ने अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं।
हर प्रसाद दास जी ने अपने अध्यक्षीय व्याख्यान में कविता का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद की कठिनाई का जिक्र करते हुए कहा कि यह अनुवाद इतनी विविधता भरे है कि इनसे एक अलग नई भाषा का जन्म होता है जो शतप्रतिशत भारतीय भाषाओं की संस्कृति और भाषाई संस्कारों की विविधता से ओतप्रोत है।
काव्योत्सव के अंतिम सत्र की अध्यक्षता अंग्रेजी और आओ भाषा की प्रसिद्ध कवयित्री तेमसुला आओ ने की और इसमें शुभ्र बंधोपाध्याय (बांग्ला), वर्षा दास (गुजराती), फयाज दिलबर (कश्मीरी), देव शंकर नवीन (मैथिली), अनवर अली (मलयाÝम), लक्ष्मण दुबे (सिंधी), आदिल रजा मंसूरी (उर्दू) ने अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं। दोनों सत्रों का संचालन कुमार अनुपम ने किया।