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कल्पना चावला : करनाल से अंतरिक्ष तक का सफर (जन्मदिन : 17 मार्च)

नई दिल्ली, 16 मार्च (आईएएनएस)। हरियाणा के करनाल जिले में एक मध्यवर्गीय पंजाबी हिंदू परिवार में जन्मीं कल्पना चावला अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल विशेषज्ञ थीं। वह हर भारतीय लड़की के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। संक्षिप्त में कहें, तो उन्हें जमीन से अंतरिक्ष की असीमित ऊंचाइयों तक भारत का परचम लहराने का श्रेय जाता है।

17 मार्च, 1962 को पैदा हुईं कल्पना को घर वाले प्यार से मोंटू कहते थे। उनके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और मां का नाम संज्योति है। कल्पना अपने चार भाई-बहनों मे सबसे छोटी थीं। उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई टैगोर बाल निकेतन में हुईं। वह जब आठवीं कक्षा में थीं, तभी उन्होंने मां के सामने इंजीनियर बनने की इच्छा प्रकट की। मां ने उनकी भावनाओं को समझा और आगे बढ़ने में हरसंभव मदद की। हालांकि, पिता उन्हें चिकित्सक या शिक्षिका बनाना चाहते थे, लेकिन कल्पना बचपन से ही अंतरिक्ष में चहलकदमी करने की कल्पना करती थीं।

कल्पना उस करनाल शहर में जन्मीं, जिसमें उस समय में भी फ्लाइंग क्लब हुआ करते थे। वह जब छोटी थीं तो वह और उनका भाई साइकिल चलाते समय ऊपर उड़ते विमानों को बड़ी हसरत भरी निगाह से देखा करते थे। उस वक्त कल्पना पिता से पूछा करती थीं कि क्या वह भी इन विमानों में बैठकर उड़ सकती हैं? पिता भी उनके मन को समझकर फ्लाइंग क्लब ले जाया करते और पुष्पक विमानों में बैठाकर घुमाया करते।

इसी सपने को मन में रखते हुए उन्होंने 1982 में पंजाब के एक कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। यहां एरोस्पेस इंजीनियरिंग उनका पसंदीदा विषय था।

कल्पना जुझारू और खुशमिजाज स्वभाव की थीं। उन्हें असफलताओं से डर नहीं लगता था। करनाल जैसे रूढ़िवादी सोच वाले जिले से होने के बावजूद वह बहुत ऊंची और खुली सोच की मालिक थीं। उन्होंने आदमी-औरत के भेदभाव से ऊपर उठकर काम किया। वह अपनी कक्षा में अकेली छात्रा थीं। कल्पना ने उच्च शिक्षा पाने के लिए अमेरिका जाने का मन बनाया। उन्होंने 1984 में टेक्सास विश्वविद्यालय से एरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की।

वर्ष 1988 में कल्पना ने नासा के एम्स रिसर्च सेंटर में काम करना शुरू किया। 1994 में नासा ने कल्पना का चयन किया और मार्च 1995 में अंतरिक्ष यात्रियों के 15वें ग्रुप में उनको अंतरिक्ष यात्री के रूप में चयनित किया। जॉनसन स्पेस सेंटर में एक साल के प्रशिक्षण के बाद वह अंतरिक्ष यात्री के प्रतिनिधि के रूप में तकनीकी क्षेत्रों के नियुक्त की गईं।

कल्पना ने पहली अंतरिक्ष उड़ान एसटीएस-87 कोलंबिया शटल से भरी थी। इसकी अवधि 19 नवंबर 1997 से पांच दिसंबर 1997 थी। उनकी दूसरी और आखिरी उड़ान 16 जनवरी 2003 को स्पेस शटल कोलंबिया से शुरू हुई। यह 16 दिन का अंतरिक्ष मिशन था, जो पूरी तरह से विज्ञान और अनुसंधान पर आधारित था।

उनकी दूसरी उड़ान को देखने के लिए उनका परिवार भारत से अमेरिका गया था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल लैंडिंग से पहले ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे ने कल्पना सहित सभी छह अंतरिक्ष यात्रियों को हमेशा के लिए हमसे छीन लिया।

हरियाणा सरकार ने देश की इस महान बेटी की याद में वर्ष 2012 को कल्पना चावला शौर्य पुरस्कार की शुरुआत की। कल्पना को मरणोपरांत कांग्रेशनल स्पेस मेडल ऑफ ऑनर, नासा स्पेस फ्लाइट मेडल और नासा डिस्टिंगग्विश्ट सर्विस मेडल से सम्मानित किया गया।

इसके अलावा एनआईटी, भोपाल के छात्रावास (मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यटू ऑफ टेक्नोलॉजी) का नाम बदलकर कल्पना चावला भवन रखा गया। कर्नाटक की सरकार ने वर्ष 2004 में युवा महिला वैज्ञानिकों के लिए कल्पना चावला अवार्ड की शुरुआत की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर ने उनके सम्मान में कल्पना चावला अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सेल का नाम रखा।

कल्पना के खाते में ऐसी तमाम भारतीय व अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धियां दर्ज हैं।

कल्पना चावला : करनाल से अंतरिक्ष तक का सफर (जन्मदिन : 17 मार्च) Reviewed by on . नई दिल्ली, 16 मार्च (आईएएनएस)। हरियाणा के करनाल जिले में एक मध्यवर्गीय पंजाबी हिंदू परिवार में जन्मीं कल्पना चावला अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल विशेषज्ञ थीं। नई दिल्ली, 16 मार्च (आईएएनएस)। हरियाणा के करनाल जिले में एक मध्यवर्गीय पंजाबी हिंदू परिवार में जन्मीं कल्पना चावला अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल विशेषज्ञ थीं। Rating:
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