नई दिल्ली, 25 जनवरी (आईएएनएस)। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि हमारी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा, देश की जनता के जीवन स्तर को तेजी से ऊंचा उठाना तथा ज्ञान, देशभक्ति, करुणा, ईमानदारी और कर्तव्य बोध से संपन्न पीढ़ियों को तैयार करना है।
नई दिल्ली, 25 जनवरी (आईएएनएस)। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि हमारी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा, देश की जनता के जीवन स्तर को तेजी से ऊंचा उठाना तथा ज्ञान, देशभक्ति, करुणा, ईमानदारी और कर्तव्य बोध से संपन्न पीढ़ियों को तैयार करना है।
प्रणब ने कहा, “हमें अपनी शैक्षिक संस्थाओं में सर्वोच्च गुणवत्ता के लिए प्रयास करने चाहिए, ताकि हम निकट भविष्य में 21वीं सदी के ज्ञान क्षेत्र के अग्रणियों में अपना स्थान बना सकें।”
राष्ट्रपति ने 66वें गणतंत्र की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि थॉमस जैफरसन ने कहा था, “सारी जनता को शिक्षित तथा सूचना संपन्न बनाएं.. केवल वे ही हमारी आजादी की रक्षा के लिए हमारा पक्का भरोसा हैं।”
उन्होंने कहा, “हम पुस्तकों और पढ़ने की संस्कृति पर विशेष जोर दें, जो ज्ञान को कक्षाओं से आगे ले जाती है तथा कल्पनाशीलता को तात्कालिकता और उपयोगितावाद के दबाव से आजाद करती है। हमें, आपस में एक दूसरे से जुड़ी हुई असंख्य विचारधाराओं से संपन्न सृजनात्मक देश बनना चाहिए।”
राष्ट्रपति ने कहा, “हमारे युवाओं को ऐसे ब्रह्मांड का, प्रौद्योगिकी तथा संचार में पारंगतता की दिशा में नेतृत्व करना चाहिए, जहां आकाश सीमारहित पुस्तकालय बन चुका है तथा आपकी हथेली में मौजूद कंप्यूटर में, महत्वपूर्ण अवसर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। 21वीं सदी भारत की मुट्ठी में है।”
प्रणब ने आगे कहा, “आतंकवाद तथा हिंसा हमारी सीमाओं से घुसपैठ कर रहे हैं। यद्यपि शांति, अहिंसा तथा अच्छे पड़ोसी की भावना हमारी विदेश नीति के बुनियादी तत्व होने चाहिए, परंतु हम ऐसे शत्रुओं की ओर से गाफिल रहने का जोखिम नहीं उठा सकते। हमारे पास, अपनी जनता के विरुद्ध लड़ाई के सूत्रधारों को हराने के लिए ताकत, विश्वास तथा दृढ़ निश्चय मौजूद है।”
उन्होंने कहा कि सीमारेखा पर संघर्ष विराम का बार-बार उल्लंघन तथा आतंकवादी आक्रमणों का, कारगर कूटनीति तथा अभेद्य सुरक्षा प्रणाली के माध्यम से समेकित जवाब दिया जाना चाहिए। विश्व को आतंकवाद के इस अभिशाप से लड़ने में भारत का साथ देना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा, “आर्थिक प्रगति लोकतंत्र की परीक्षा भी है। वर्ष 2015 उम्मीदों का वर्ष है। आर्थिक संकेतक बहुत आशाजनक हैं। 2014-15 की पहली दोनों तिमाहियों में पांच प्रतिशत से अधिक की विकास दर की प्राप्ति, सात-आठ प्रतिशत की उच्च विकास दर की दिशा में शुरुआती बदलाव के स्वस्थ संकेत हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि यदि हम हानिकारक आदतों और सामाजिक बुराइयों से खुद को निरंतर स्वच्छ करने की अपनी योग्यता का उपयोग नहीं करते तो भविष्य हमारे सामने मौजूद होते हुए भी हमारी पकड़ से दूर होगा। उन्होंने कहा, “पिछली सदी के दौरान, इनमें से बहुत-सी समाप्त हो चुकी हैं, कुछ निष्प्रभावी हो चुकी हैं परंतु बहुत-सी अभी मौजूद हैं।”
प्रणब ने आगे कहा, “हम, इस वर्ष दक्षिण अफ्रीका से गांधी जी की वापसी की सदी मना रहे हैं। हम कभी भी महात्मा जी से सीख लेना नहीं छोड़ेंगे। 1915 में उन्होंने जो सबसे पहला कार्य किया था वह था अपनी आंखें खुली रखना तथा अपना मुंह बंद रखना। इस उदाहरण को अपनाना अच्छा होगा।”