धर्मपथ-कराची से लगभग साठ मील की दूरी पर समुन्द्र के किनारे जगत जननी श्री माता हिंगलाज जी का मंदिर है | यहाँ प्राचीन काल से अखण्ड ज्योति के दर्शन होते है| दक्ष प्रजापति के यज्ञ में सती ने अपने प्राणों की आहुति दे दी| शिव जी सती के अधजले शव को कंधे पर उठा कर चल पड़े| शव के टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वे शक्ति पीठ कहलाये| ऐसे इकावन शक्ति पीठो का वर्णन हमारे शास्त्रों में है| जहाँ पर सती जी के शरीर का मुख्य अंग कपाल गिरा, वह हिंगलाज शक्ति पीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ| इस शक्ति पीठ को अति पावन एवं महत्वपूर्ण मन जाता है| मंदिर तक पहुचने का मार्ग अति कठिन है लेकिन फिर भी श्रद्धालु विश्वास एवं साहस पूर्वक यहाँ पहुचने का प्रयत्न करते है|
एक लोक गाथानुसार चारणों की प्रथम कुलदेवी हिंगलाज थी, जिसका निवास स्थान पाकिस्तान के बलुचिस्थान प्रान्त में था। हिंगलाज नाम के अतिरिक्त हिंगलाज देवी का चरित्र या इसका इतिहास अभी तक अप्राप्य है। हिंगलाज देवी से सम्बन्धित छंद गीत चिरजाए अवश्य मिलती है। प्रसिद्ध है कि सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है-
सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास।
प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥