भोपाल, 10 अक्टूबर – बच्चों के हितों की लड़ाई लड़कर नोबेल पुरस्कार पाने वाले कैलाश सत्यार्थी ने कभी भी नदी के प्रवाह की दिशा में तैरना मुनासिब नहीं समझा। बच्चों के हक की खातिर वह जिंदगी को भी जोखिम में डालने से नहीं हिचके और मुसीबत के दौर में पत्थर पर आटा गूंथा और रोटियां पकाई।
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में जन्मे कैलाश सत्यार्थी बचपन से ही कुरीति विरोधी रहे हैं। उन्होंने सम्राट अशोक अभियांत्रिकी महाविद्यालय से इंजीनिरिंग की शिक्षा हासिल की।
सत्यार्थी के साथी वेद प्रकाश शर्मा बताते हैं कि गरीबी कभी उन्हें डिगा नहीं सकी। हाल यह था कि उनके पास आटा गूंथने के लिए बर्तन नहीं था और वह पत्थर पर आटा गूंथकर रोटी बनाया करते थे।
शर्मा बताते हैं कि सत्यार्थी चर्चाओं में तब आए जब उन्होंने विदिशा में महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास सफाई कामगारों से भोजन बनवाया था। उनके इस गांधीवादी कदम ने नई बहस को जन्म दिया।
उसके बाद उन्होंने बच्चों के अधिकारों के लिए काम शुरू किया और दिल्ली जाकर एक गैर सरकारी संगठन से जुड़ गए। बाद में उन्होंने बचपन बचाओ आंदोलन की नींव रखी।
सत्यार्थी के संगठन बचपन बचाओ आंदोलन ने अब तक करीब 80 हजार बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराया है।
सत्यार्थी लंबे समय से बच्चों को बाल मजदूरी से हटाकर उन्हें शिक्षा अभियान से जोड़ने की मुहिम चलाते रहे हैं।
उन्होंने मध्य प्रदेश के मंदसौर से काम शुरू किया और बाल मजदूरी पर केंद्रित स्लेट पेंसिल उद्योग में लगे बच्चों को सबसे पहले मुक्त कराया। वहीं पर उन्होंने मुक्ति आश्रम की स्थापना की।
सत्यार्थी ने मध्य प्रदेश के सागर में भी काम किया, और वहां भी मुक्ति आश्रम की स्थापना की। कुछ सालों बाद उन्होंने स्वामी अग्निवेश के साथ काम किया। उन्हें 1993 में अशोका फेलोशिप मिली और फिर वह स्वतंत्र रूप से काम करने लगे।
मंदसौर में बाल अधिकारों के लिए काम कर रहे डॉ. राघवेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि सत्यार्थी को बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराने के लिए जान भी दांव पर लगाना पड़ा है।
उन्होंने बताया कि हरियाणा में खदान में काम करने वाले बच्चों को मुक्त कराने की कोशिश में उन पर जानलेवा हमला हुआ था और हमलावर उन्हें मृत मान चुके थे, मगर वे बच गए।
तोमर के अनुसार सत्यार्थी ने चूड़ी उद्योग, ईंट भट्टा उद्योग, पटाखा व माचिस उद्योग में काम करने वाले बच्चों को बंधुआ व बाल मजदूरी से मुक्त कराने का काम किया है।
तोमर ने बताया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा में एक सर्कस से 40 नेपाली बच्चों को मुक्त कराया था। वह 180 देशों में बाल अधिकारों के लिए अभियान चलाए हुए हैं। बच्चों की शिक्षा, अधिकार के लिए अभियान चलाए हुए हैं।
सत्यार्थी को मिले नोबेल पुरस्कार को उन बच्चों के लिए लड़ी गई लड़ाई का प्रतिसाद माना जा रहा है जो अपने अधिकारों से अनजान व वंचित रहे हैं।