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 कब और कैसे हुई नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत? | dharmpath.com

Tuesday , 22 April 2025

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कब और कैसे हुई नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत?

नोबेल पुरस्कार व्यक्ति की प्रतिभा के आधार पर दिया जाने वाला विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है, जो हर वर्ष स्टाकहोम (स्वीडन) में 10 दिसम्बर को अलग-अलग क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले व्यक्तियों को एक भव्य समारोह में दिया जाता है। ये क्षेत्र हैं, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र, अर्थशास्त्र, साहित्य एवं विश्व शांति।

नोबेल पुरस्कार व्यक्ति की प्रतिभा के आधार पर दिया जाने वाला विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है, जो हर वर्ष स्टाकहोम (स्वीडन) में 10 दिसम्बर को अलग-अलग क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले व्यक्तियों को एक भव्य समारोह में दिया जाता है। ये क्षेत्र हैं, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र, अर्थशास्त्र, साहित्य एवं विश्व शांति।

यह पुरस्कार पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को करीब साढ़े चार करोड़ रुपये की धनराशि मिलती है। इसके अलावा 23 कैरेट सोने का करीब 6 सेंटीमीटर व्यास का 200 ग्राम वजनी पदक एवं प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किया जाता है। पदक पर एक ओर नोबेल पुरस्कारों के जनक अल्फ्रेड नोबेल का चित्र और उनका जन्म तथा मृत्यु वर्ष और दूसरी ओर यूनानी देवी आइसिस का चित्र, ‘रायल एकेडमी ऑफ साइंस स्टाकहोम’ तथा पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति का नाम व पुरस्कार दिए जाने का वर्ष अंकित रहता है।

नोबेल पुरस्कार विजेताओं के नाम अक्टूबर माह में ही घोषित कर दिए जाते हैं और यह सर्वोच्च पुरस्कार 10 दिसम्बर को स्टाकहोम में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया जाता है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा हस्ती हो, जो बड़े से बड़ा पुरस्कार पाने के बाद भी नोबेल पुरस्कार पाने की अपेक्षा न करता हो। कारण यही है कि जहां यह पुरस्कार पुरस्कृत व्यक्ति को समूची दुनिया की नजरों में महान बना देता है, वहीं यह पुरस्कार मिलते ही शोहरत के साथ-साथ दौलत भी उसके कदम चूमने लगती है।

कब और कैसे हुई नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत?

नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत 10 दिसम्बर 1901 को हुई थी। उस समय रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, साहित्य और विश्व शांति के लिए पहली बार यह पुरस्कार दिया गया था। पुरस्कार में करीब साढ़े पांच लाख रुपये की धनराशि दी गई थी। इस पुरस्कार की स्थापना स्वीडन के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक व डायनामाइट के आविष्कारक डा. अल्फ्रेड नोबेल द्वारा 27 नवम्बर 1895 को की गई वसीयत के आधार पर की गई थी, जिसमें उन्होंने रसायन, भौतिकी, चिकित्सा, साहित्य और विश्व शांति के लिए विशिष्ट कार्य करने के लिए अपनी समूची सम्पत्ति (करीब 90 लाख डॉलर) से मिलने वाले ब्याज का उपयोग करते हुए उत्कृष्ट कार्य करने का अनुरोध किया था और इस कार्य के लिए धन के इस्तेमाल हेतु एक ट्रस्ट की स्थापना का प्रावधान किया था।

इन पांचों क्षेत्रों में विशिष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों के नाम का चयन करने के लिए उन्होंने अपनी वसीयत में कुछ संस्थाओं का उल्लेख किया था। 10 दिसम्बर 1896 को डा. अल्फ्रेड नोबेल तो दुनिया से विदा हो गए पर रसायन, भौतिकी, चिकित्सा, साहित्य व विश्व शांति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों के लिए अथाह धनराशि छोड़ गए।

कौन थे अल्फ्रेड नोबेल?

अल्फ्रेड नोबेल विश्व के महान आविष्कारक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और अपने जीवनकाल में अपने विभिन्न आविष्कारों पर कुल 355 पेटेंट कराए थे। उन्होंने रबड़, चमड़ा, कृत्रिम सिल्क जैसी कई चीजों का आविष्कार करने के बाद डायनामाइट का आविष्कार करके पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया और विश्व भर में विकास कार्यो को नई गति एवं दिशा प्रदान की क्योंकि डायनामाइट के आविष्कार के बाद ही सुरक्षित विस्फोटक के जरिये भारी-भरकम चट्टानों को तोड़कर सुरंगे व बांध बनाने तथा रेल की पटरियां बिछाने का कार्य संभव हो पाया था। उन्होंने डायनामाइट के विकास की प्रक्रिया में काफी नुकसान भी झेला लेकिन वे दृढ़ निश्चयी थे और इसकी परवाह न करते हुए खतरनाक विस्फोटक ‘नाइट्रोग्लिसरीन’ के इस्तेमाल से डायनामाइट का आविष्कार करके 1867 में इंग्लैंड में इस पर पेटेंट भी हासिल कर लिया।

डा. अल्फ्रेड नोबेल सिर्फ एक आविष्कारक ही नहीं थे बल्कि एक जाने-माने उद्योगपति भी थे। स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम के एक छोटे से गांव में 21 अक्तूबर 1833 को जन्मे अल्फ्रेड की मां एंडीएटा एहसेल्स धनी परिवार से थी और अल्फ्रेड के पिता इमानुएल नोबेल एक इंजीनियर तथा आविष्कारक थे, जिन्होंने स्टाकहोम में अनेक पुल एवं भवन बनाए थे लेकिन जिस वर्ष अल्फ्रेड नोबेल का जन्म हुआ, उसी वर्ष उनका परिवार दिवालिया हो गया था और यह परिवार स्वीडन छोड़कर रूस के पिट्सबर्ग शहर में जा बसा था, जहां उन्होंने बाद में कई उद्योग स्थापित किए, जिनमें से एक विस्फोटक बनाने का कारखाना भी था।

इमानुएल नोबेल और एंडीएटा एहसेल्स की कुल सात संतानें हुई लेकिन उनमें से तीन ही जीवित बची। तीनों में से अल्फ्रेड ही सबसे तेज थे। वह 17 साल की उम्र में ही स्वीडिश, फ्रेंच, अंग्रेजी, जर्मन, रूसी इत्यादि भाषाओं में पारंगत हो चुके थे। युवावस्था में वह अपने पिता के विस्फोटक बनाने के कारखाने को संभालने लगे। 1864 में कारखाने में अचानक एक दिन भयंकर विस्फोट हुआ और उसमें अल्फ्रेड का छोटा भाई मारा गया। भाई की मौत से वह बहुत दु:खी हुए और उन्होंने विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए कोई नया आविष्कार करने की ठान ली। आखिरकार उन्हें डायनामाइट का आविष्कार करने में सफलता भी मिली।

अल्फ्रेड ने 20 देशों में उस जमाने में अपने अलग-अलग करीब 90 कारखाने स्थापित किए थे, जब यातायात, संचार सरीखी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं थी। आजीवन कुंवारे रहे अल्फ्रेड नोबेल की रसायन विज्ञान, भौतिकी शास्त्र के साथ-साथ अंग्रेजी साहित्य और कविताओं में भी गहरी रुचि थी और उन्होंने कई नाटक, कविताएं व उपन्यास भी लिखे लेकिन उनकी रचनाओं एवं कृतियों का प्रकाशन नहीं हो पाया। 10 दिसम्बर 1886 को अल्फ्रेड नोबेल ‘नोबेल पुरस्कारों’ के लिए अपार धनराशि छोड़कर हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो गए।

वर्ष 1866 में डायनामाइट का आविष्कार करके 1867 में इस पर पेटेंट हासिल करने के बाद अल्फ्रेड बहुत अमीर हो गए और उनके द्वारा ईजाद किया गया डायनामाइट बेहद उपयोगी साबित हुआ लेकिन इस आविष्कार की वजह से उन्हें बहुत से लोगों द्वारा विध्वंसक प्रवृत्ति का व्यक्ति समझा जाने लगा। हालांकि डायनामाइट के आविष्कार के बाद इसके दुरूपयोग की संभावना को देखते हुए अल्फ्रेड खुद भी इस आविष्कार से खुश नहीं थे। यही वजह थी कि उन्होंने डायनामाइट के आविष्कार की बदौलत कमाई अपार धनराशि में से ही नोबेल पुरस्कार शुरू करने की घोषणा की।

(लेखक योगेश कुमार गोयल वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

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