धीरज कुमार झा,अमृतसर। अकल नाल नहीं इल्म दा मेल हुंदा
पांवें लक्ख पढि़या बीए पास होवे
ओखे वेले बुढ़ापे च क म आउंदा
जेकर कुछ धन ओहदे पास होवे.
ये पक्तियां चौथी क्लास पास कवि की हैं। अनपढ़ फकीर गुरां दास वर्मा का जागा जमीर तो वह बन गया शब्दों का अमीर। कबाड़ बेचने वाले ने कलम उठाई तो बदल गई तकदीर। अनपढ़ होते हुए भी उनकी रचना पढ़े-लिखों की आत्मा को झकझोर देती है। पैर में हवाई चप्पल, बदन पर मैले कुचैले कपड़े, गरीबी के आगे बेजार, लेकिन जुबां पर शब्दों का अकूत भंडार। 81 की उम्र में अब तक 8 काव्य संग्रह वह लिख चुके हैं।
गुरांदास वर्मा ने दैनिक जागरण को बताया कि विभाजन के दर्द को उन्होंने खुली आंखों से देखा। दो मुल्कों को बंटते देखा। बतौर श्रोता महान कवि उस्ताद दामन और उस्ताद दाता सिंह धीर की नज्मों को वह गौर से सुना करते थे। आजादी के पहले और इसके बाद साहित्य समाज की जरूरत थी। वह कवि सम्मेलन, मुशायरे आदि में शिरकत करते थे। एक दिन कबाड़ बेचने वाले का भी जमीर जाग उठा। उठाई कलम और लिख डाली पंक्तियां। फिर क्या लिखते-लिखते और देखते-देखते उनके आठ काव्य संग्रह प्रकाशित हो गए।
गुरां दास वर्मा पाकिस्तान भी गए। अपनी कविता से उन्होंने लाहौरियों को अपना मुरीद बनाया था। वह दूरदर्शन, रेडियो, भाषा विभाग के समागम में भी शिरकत कर चुके हैं। वह अब तक उमरां दा रोना, शीरी-फरहाद, हरी सिंह नलवा, मेरियां रीझां, बंदा बहादुर, क म दीयां गल्लां आदि काव्य संग्रह लिख चुके हैं। उनके शब्दों को सुरों में भी पिरोया गया।
जाने-माने गायक अशोक मल्होत्र, विश्वजीत राणा, नूरां, साबरकोटी, मास्टर सलीम, जगमोहन कौर और किरण ज्योति ने उनके शब्दों को आवाज दी है। गरीबी से जूझ रहे इस कवि को अपनी रचना के प्रकाशन और फिर इसके वितरण के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। सरकारी दफ्तर से लेकर अपने यार-दोस्त के घरों में दस्तक देनी पड़ रही है, पर गुरां दास ने हौसला नहीं हारा। अपने काव्य संग्रह की इन पंक्तियों की तरह
.मर्द कदे न हौसला हारदे ने
पांवें लक्ख मुसीबतां च घिरे हौंदे ने
उनां नाल ना कदे प्यार पाइये
बंदे जेड़े इखलाक तो गिरे होंदे नें.।