आलोक रंजन के 31 मार्च को सेवानिवृत्ति के बाद सेवा विस्तार के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा दायर याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शुक्रवार को राज्य सरकार से वह प्रपत्र पेश करने को कहा है, जिस पर राज्य सरकार द्वारा रंजन के सेवा विस्तार के लिए केंद्र सरकार को संस्तुति भेजी गई थी।
न्यायमूर्ति ए.पी. साही और न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी की बेंच ने राज्य सरकार को यह सूचना अगली सुनवाई की तिथि 8 अप्रैल तक प्रस्तुत करने को कहा है। इस प्रपत्र में अन्य अधिकारियों की उपलब्धता, इस संबंध में किए गए प्रयास, सेवा विस्तार बढ़ाने के औचित्य और संबंधित अफसर की सत्यनिष्ठा आदि के संबंध में सूचना दी जाती है।
नूतन ने याचिका में कहा है कि आईएएस अफसरों की सेवा नियमावली के अनुसार राज्य के मुख्य सचिव को केंद्र सरकार की पूवार्नुमति से 6 माह के सेवा विस्तार का प्रावधान है, लेकिन ऐसा विशेष योग्यता वाले अफसरों को ही दिया जा सकता है, जबकि न्यायमूर्ति आर.आर. मिश्रा आयोग रिपोर्ट के मुताबिक, रंजन ने वर्ष 2002 से 2007 के बीच नाफेड के एमडी के रूप में गलत तरीके से 5000 करोड़ रुपये का गैर-कृषि ऋण बांटा और राजकोष को 1600 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया।
रिपोर्ट के अनुसार, रंजन को मुंबई में मॉल खरीदे जाने और एमएफ हुसैन की पेंटिंग खरीदे जाने के लिए कृषि ऋण देने का दोषी भी पाया गया था। इस संबंध में सीबीआई ने उन पर दो मुकदमे भी किए थे।