स्वास्थ्य निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, हर साल एक जिले में 190 से 200 बच्चों की मौत हो जाती है। इसका एक कारण असुरक्षित प्रसव भी है। घर पर प्रसव का होना, अस्पतालों में जच्चा-बच्चा को अधिक समय न देना आदि कारण भी हैं। मौत के आंकड़ों को कम करने के लिए सरकार तमाम प्रयास कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक, शासन ने निर्देश दिए हैं कि प्रसूताओं को सरकारी अस्पतालों में कम से कम तीन दिन इलाज जरूर दिया जाए। यदि परिजन प्रसव के बाद प्रसूता को ले जाना चाहते हैं, तो चिकित्सक उन्हें समझाएं। तीन दिन इलाज के लिए रखे जाने का कारण बताएं, ताकि डिस्चार्ज करने के बाद घर जाकर प्रसूताओं समस्याओं का सामना न करना पड़े।
उधर स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों के मुताबिक, प्रसूताओं को अस्पतालों में तब तक रखा जाता है, तब तक कि वह सामान्य न हो जाए। परिजन घर ले जाने की जल्दी करते हैं, तो डॉक्टर डिस्चार्ज कर देते हैं। शासन से जो भी निर्देश मिले हैं, उसका पालन कराया जाएगा।