लखनऊ- उत्तर प्रदेश में भले ही मॉल बंद हैं, बाजार खाली हैं, सड़कें सुनसान हैं, लेकिन बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन यहां तक कि रेलवे ट्रैक पर अच्छी खासी गतिविधियां देखी जा सकती हैं। गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के डर के कारण हजारों प्रवासी मजदूर व दिहाड़ी मजदूर अपने घरों की ओर लौटने के लिए बेताब हैं।
पिछले दो दिनों से अपने घरों की ओर लौटने के लिए लोग उप्र-दिल्ली-हरियाणा सीमा पर और उप्र-बिहार सीमा पर समूहों में प्रवासी पहुंच रहे हैं।
एक ओर जहां रेलवे भी लॉकडाउन का हिस्सा है, वहीं अन्य राज्यों में खास तौर पर महाराष्ट्र में लोग अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए मालगाड़ी, तेल टैंकरों और यहां तक कि दूध के टैंकरों पर लद कर आ रहे हैं।
यात्रा के लिए काफी कम विकल्प होने पर सैकड़ों लोग पैदल ही अपनी दूरी तय कर रहे हैं।
इस बारे में यूपीएसआरटीसी के मैनेजिंग डायरेक्टर राज शेखर ने कहा, “हमने सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ-साथ रेलवे स्टेशनों और बस स्टेशनों पर फंसे प्रवासियों को लाने के लिए 1,000 बसें उतारी हैं। ये बसें लोगों को कानपुर, बलिया, वाराणसी, गोरखपुर, आजमगढ़, फैजाबाद, बस्ती, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, अमेठी, रायबरेली, गोंडा, इटावा, बहराइच और श्रावस्ती ले गई हैं। हम उन्हें भोजन और पानी उपलब्ध कराने की भी कोशिश कर रहे हैं।”
आजमगढ़ में अपने घर जाने के लिए लखनऊ के कैसरबाग रेलवे स्टेशन पर बस के लिए 38 घंटे से इंतजार कर रहे सुनील कुमार ने अपने दो चचेरे भाइयों के साथ शनिवार शाम चलना शुरू किया था।
ये तीनों नोएडा स्थित एक कपड़े के कारखाने में काम करते हैं।
उन्होंने कहा, “बैठे रहेंगे तो मर जाएंगे।” साथ ही यह भी बताया कि उनके पास पैसे नहीं है,ं क्योंकि वे एक ट्रक पर सवार होकर आए थे और वाहन चालक को उन्हें पैसे देने पड़े।
उन्होंने कहा कि सैकड़ों लोग बसअड्डे पर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि बसों की संख्या सीमित है।
वहीं मजदूरों में यह अफवाह फैली है कि यह लॉकडाउन अगले महीने तक बढ़ सकता है, जिसकी वजह से वे और भी अधिक घबराए हुए हैं।
बिहार से वापस आया इखलाक फिलहाल वाराणसी में है और उसे अपने घर अमरोहा जाना है, जिसके लिए वह हाथपैर मार रहा है। उनका कहना है, “मुझसे मेरे दोस्तों और मेरे मालिक ने भी कहा कि यह लॉकडाउन मई तक बढ़ सकता है। ऐसे में मैं अपने घर पहुंचना चाहता हूं और रास्ते में लिफ्ट नहीं लूंगा या वापसी नहीं करूंगा।”
इखलाक एक ट्रैवल एजेंसी में काम करते हैं और उनका कहना है कि आने वाले महीनों में इस सेक्टर में कोई काम नहीं होगा।
आईआईटी, कानपुर के एक छात्र ने कहा, “हम उन्नाव से बाराबंकी जा रहे थे, और इसी दौरान बिना पलक झपकाए या बिना कोई सवाल पूछे पुलिस ने हम पर लाठियां बरसाई।”
वह और उनके चार दोस्तों को कानपुर से उन्नाव तक तो किसी तरह लिफ्ट मिल गया। लेकिन उन्हें करीब 98 किलोमीटर की बची दूरी पैदल ही तय करनी पड़ी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मजदूर और श्रमिक खेतों से जा रहे हैं और ऐसे में उनकी गिनती करना असंभव है।
वाराणसी डिविजन रिवर्स माइग्रेशन से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, क्योंकि ज्यादातर लोग जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली और वाराणसी स्थित अपने घरों की ओर लौट रहे हैं।
सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि उन्होंने अधिकांश लोगों की पहचान की है और अब ग्राम प्रधानों, आशा कार्यकर्ताओं, एएनएम (सहायक नर्स दाई) और स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को सतर्क कर दिया गया है। जो वापस लौट आए हैं और उन्हें अगले 14 दिनों के लिए खुद को अलग करने के लिए कहा गया है।
कथित तौर पर लॉकडाउन शुरू होने से पहले करीब 80 ट्रेनों में 30,000 से अधिक लोग सिर्फ महाराष्ट्र से आए थे।