नई दिल्लीः ‘इंडिया’ ब्लॉक के राज्यसभा सांसदों ने बुधवार (11 दिसंबर) को कहा कि उनके पास उपराष्ट्रपति और सदन के अध्यक्ष जगदीप धनखड़ को हटाने के लिए नोटिस जारी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था. विपक्षी सांसदों ने धनखड़ पर सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता की तरह व्यवहार करने का आरोप लगाया.
कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने नई दिल्ली में ‘इंडिया’ गठबंधन के अन्य सांसदों के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘इतिहास में पहली बार हमारे पास एक ऐसे उपराष्ट्रपति हैं जो सार्वजनिक मंचों से विपक्षी दलों की खुलेआम आलोचना करते हैं और सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता की तरह व्यवहार करते हैं, और कभी-कभी तो उन्हें भी पीछे छोड़ देते हैं.
मंगलवार (10 दिसंबर) को इंडिया ब्लॉग ने पक्षपाती व्यवहार करने और सदन में विपक्षी आवाजों को न सुनने देने के उनके फैसलों का हवाला देते हुए धनखड़ को पद से हटाने के लिए एक नोटिस निकाला.
इस नोटिस की निंदा करते हुए केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने धनखड़ का बचाव करते हुए उन्हें ‘निष्पक्ष’ बताया.
बुधवार (11 दिसंबर) को प्रेस कॉन्फ्रेंस में खरगे ने कहा कि नोटिस जारी करने का फैसला निजी दुश्मनी के चलते नहीं बल्कि संवैधानिक पद की रक्षा करने के लिए लिया गया है.
खरगे कहते हैं, ‘मुझे यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है कि चेयरमैन ने हमारे पास इस नोटिस पर आगे बढ़ने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं छोड़ा है. पिछले तीन वर्षों में विपक्ष को महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने के लिए समय और स्थान देने के बजाय, सभापति ने उनसे ऐसा बर्ताब किया जैसे वे स्कूल के छात्र हों. वह विपक्षी नेताओं का अपमान करने का कोई भी मौका नहीं चूकते हैं.’
भाजपा आरोप लगा रही है कि विपक्ष सदन को चलने नहीं दे रहा है, वहीं खरगे कहते हैं कि ‘सभापति खुद ही सबसे बड़े व्यवधान हैं.’
नेता प्रतिपक्ष कहते हैं, ‘राज्यसभा में सबसे बड़े व्यवधान सभापति स्वयं हैं. वह दूसरों को सबक सिखाते हैं और दूसरों को बोलने से रोक सदन की कार्यवाही नहीं चलने देने की कोशिश करते हैं. सदन के संरक्षक और प्रत्येक सदस्य के अधिकारों के रक्षक के रूप में, उनसे राजनीति से ऊपर उठने और यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि सभी सदस्यों की आवाज़ सुनी जाए.’
खरगे ने कहा कि ‘धनखड़ विपक्षी सदस्यों द्वारा नियम 267 के तहत दिए गए नोटिस को खारिज कर देते हैं, और ट्रेजरी बेंच के सदस्यों को बोलने की अनुमति देते हैं और सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाते हुए उन्हें विपक्ष के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए खुले तौर पर प्रोत्साहित करते हैं और उकसाते हैं.’