नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित युवती की सामूहिक बलात्कार के बाद मौत होने और कथित तौर पर परिवार की इजाजत के बिना आननफानन में पीड़िता का अंतिम संस्कार करने को लेकर राज्य की सरकार सवालों के घेरे में है.
विपक्ष एवं परिजनों का आरोप है कि प्रशासन इस मामले में शुरुआत से ही ढीला रवैया अपना रहा था और यदि समय रहते उचित उपचार मिल जाता तो लड़की को बचाया जा सकता था.
राज्य की योगी सरकार के खिलाफ एक आरोप यह भी है चूंकि पीड़िता दलित जाति की थी और आरोपी सामान्य श्रेणी के हैं, इसलिए सरकार उन्हें बचाना चाह रही है. वहीं सरकार का दावा है कि राज्य में कानून व्यवस्था कायम है और इस मामले में फास्ट-ट्रैक के जरिये दोषियों को सजा दिलाई जाएगी.
उत्तर प्रदेश में महिलाओं एवं दलितों के खिलाफ अपराध की स्थिति हाल ही में प्रकाशित राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट से स्पष्ट रूप से पता चलती है. इसके मुताबिक साल 2019 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं एवं दलितों के खिलाफ अपराध के सर्वाधिक मामले सामने आए हैं.
भारत में 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 405,861 मामले दर्ज हुए, जिसमें से 59,853 मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए थे. यह संख्या देश में कुल मामलों का 14.7 फीसदी है, जो कि किसी भी राज्य की तुलना में सर्वाधिक है.
उसके बाद राजस्थान में 41,550 मामले (10.2 प्रतिशत), महाराष्ट्र में 37,144 मामले (9.2 प्रतिशत) दर्ज किए गए हैं.
इसी तरह साल 2018 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 59,445 मामले और साल 2017 में 56,011 मामले सामने आए थे. यह दर्शाता है कि साल दर साल राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं.
हालांकि प्रति एक लाख की आबादी के आधार पर असम में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर ज्यादा है जबकि राजस्थान में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराधों की दर अधिक है.
वहीं यदि राष्ट्रीय स्तर पर हम देखते हैं तो साल 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध में सात फीसदी की वृद्धि हुई है. देश में 2018 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 378,236 मामले और 2017 में 359,849 मामले दर्ज हुए थे.
इसी तरह साल 2019 के दौरान भारत में अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) समुदाय के लोगों के खिलाफ अपराध के कुल 45,935 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से 11,829 मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए हैं. यह संख्या देश में कुल मामलों की तुलना में 25.8 फीसदी है, जो कि सर्वाधिक है.
उत्तर प्रदेश में साल 2018 में एससी/एसटी समुदाय के खिलाफ अपराध के 11,924 मामले और साल 2017 में 11,444 मामले सामने आए थे.
यदि राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ अपराध के मामले साल 2019 में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है. साल 2018 में इस तरह के कुल 42,793 मामले और साल 2017 में कुल 43,203 मामले सामने आए थे.
इसके अलावा भारत में साल 2019 में प्रतिदिन बलात्कार के औसतन 87 मामले दर्ज हुए. आंकड़ों के अनुसार 2019 में बलात्कार के कुल 32,033 मामले दर्ज हुए जो साल भर के दौरान महिलाओं के विरुद्ध अपराध के कुल मामलों का 7.3 प्रतिशत था.
इसमें से बलात्कार के 3065 केस अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए हैं, जो कि कुल मामलों का करीब 10 फीसदी है. इसमें से 270 मामले नाबालिग के साथ बलात्कार के थे.
साल 2019 में देश भर में बलात्कार की कोशिश के कुल 3944 मामले सामने आए, जिसमें से 358 केस उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए थे.
आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल मामलों में से 30.9 प्रतिशत केस ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ के दर्ज किए गए. इसमें महिलाओं की शालीनता का अपमान करने के इरादे से हमला करने के 21.8 प्रतिशत मामले, अगवा एवं महिलाओं का अपहरण के 17.9 प्रतिशत मामले और बलात्कार के 7.9 प्रतिशत मामले शामिल हैं.
एनसीआरबी के रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2018 में जहां महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर प्रति एक लाख की आबादी पर 58.8 थी, वहीं साल 2019 में ये अपराध दर बढ़कर 62.4 हो गई.
असम में महिलाओं के खिलाफ अपराध की उच्चतम दर रही, जहां प्रति एक लाख की जनसंख्या में 177.8 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद राजस्थान (110.4) और हरियाणा (108.5) का स्थान रहा.
राजस्थान में बलात्कार के सबसे ज्यादा 5,997 मामले और मध्य प्रदेश 2,485 मामले दर्ज किए गए. प्रति एक लाख की आबादी पर राजस्थान में सर्वाधिक 15.9 प्रतिशत रेप के मामले दर्ज हुए. उसके बाद केरल में 11.1 प्रतिशत और हरियाणा में 10.9 प्रतिशत मामले दर्ज किए गए.
उत्तर प्रदेश में पॉस्को अधिनियम के तहत नाबालिगों के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा 7,444 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद महाराष्ट्र में 6,402 और मध्य प्रदेश में 6,053 केस दर्ज हुए.
इस तरह के अपराधों की उच्चतम दर सिक्किम में रही, जहां हर एक लाख की जनसंख्या पर 27.1 प्रतिशत केस दर्ज हुए. इसी अनुपात में मध्य प्रदेश में 15.1 प्रतिशत और हरियाणा में 14.6 प्रतिशत मामले दर्ज किए गए.
उत्तर प्रदेश में दहेज के 2,410 मामले दर्ज किए गए. देश के अन्य राज्यों की तुलना में प्रति एक लाख की आबादी में इसकी दर सर्वाधिक 2.2 प्रतिशत रही. इसके बाद बिहार का नंबर आता है, जहां दहेज के 1,120 मामले दर्ज किए गए थे.
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 में एसिड अटैक के कुल 150 मामले सामने आए, जिनमें से 42 उत्तर प्रदेश में और 36 पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए थे.
एनसीआरबी के मुताबिक साल 2018 में प्रति एक लाख की आबादी पर अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध की दर 21.2 थी, जो कि साल 2019 में बढ़कर 22.8 हो गई.
साल 2019 के दौरान अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध या अत्याचार के मामलों में सबसे बड़ा हिस्सा साधारण चोट पहुंचाने के मामलों का रहा है, जिसके तहत कुल 13,273 मामले (28.9 फीसदी) दर्ज किए गए थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, केवल अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत कुल 4,129 मामले दर्ज किए गए जो कि दलितों के खिलाफ कुल अपराध के मामलों का नौ फीसदी है.
साल 2019 में दलित महिला के साथ बलात्कार के कुल 3,486 मामले दर्ज किए गए थे, जो कि दलितों के खिलाफ अपराध का 7.6 फीसदी है.
राजस्थान में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के सबसे ज्यादा 554 मामले दर्ज हुए, उसके बाद उत्तर प्रदेश में 537 और मध्य प्रदेश में 510 मामले दर्ज किए गए.
बता दें बीते 22 सितंबर को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में बताया था कि सिर्फ एक मार्च से 18 सितंबर के बीच राष्ट्रीय साइबर अपराध रिर्पोटिंग पोर्टल (एनसीआरपी) पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री, बलात्कार एवं सामूहिक बलात्कार की 13,244 शिकायतें दर्ज की गईं.