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 इस्लाम में रमज़ान सबसे पवित्र महीना | dharmpath.com

Saturday , 23 November 2024

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इस्लाम में रमज़ान सबसे पवित्र महीना

12_07_2013-muslimबुराइयों से दूर रहकर दूसरों की भलाई और नेकी करने के लिए हमें प्रेरित करता है रमज़ान का पवित्र महीना..

इस्लाम में रमज़ान को सबसे पवित्र महीना माना गया है। यही वह महीना है, जिसके बारे में माना जाता है कि इस्लाम की सबसे पवित्र किताब ‘कुरान पाक’ नाजि़ल हुई (उतरी)। इतना ही नहीं, मान्यता है कि अल्लाह पाक ने सारी पवित्र किताबें रमज़ान के महीने में ही उतारीं। पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का ‘सहीफा’ इसी महीने की 3 तारीख को उतारा गया। हजरत दाऊद को ‘जुबूर’ (कुरान जैसी किताब) 18 या 21 को मिली और हजरत मूसा को ‘तौरेत’ 6 तारीख को प्राप्त हुई और हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को ‘इंजील’ रमजान की 12 या 13 तारीख को मिली।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस महीने में सत्कर्म, नेकी और भलाई की महत्ता को हम शिद्दत से महसूस करते हैं। मान्यता है कि नेक कार्य से रोकने और बुराइयों की तरफ उकसाने वाले शैतान को जकड़ दिया जाता है। पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लललाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया है, ‘रमज़ान दूसरों के गम बांटने का महीना है। यानी गरीबों (वंचितों) के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए। अगर 10 चीजें अपने रोजा इफ्तार के लिए लाए हैं तो 2-4 गरीबों के लिए भी लाएं। अपने इफ्तार व सहर के खाने में गरीबों का भी ध्यान रखें। अगर आपका पड़ोसी गरीब है, तो उसका खासतौर पर ध्यान रखें कि कहीं ऐसा न हो कि हम तो खूब पेट भर कर खा रहे हैं और हमारा पड़ोसी थोड़ा खाकर सो रहा है।’ रमजान के महीने में अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए और दूसरों की भलाई की ओर प्रवृत्त होना चाहिए।

यह भी गौर करने वाली बात है कि रोजा अल्लाह की इबादत का एक तरीका है। रोजा का अर्थ सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं है, बल्कि गरीबों की उस भूख-प्यास को महसूस करना है, जिन्हें बिना खाए-पिए या आधे पेट दिन गुजारना पड़ता है।

रोजा सिर्फ पेट का ही नहीं होता, बल्कि पूरे बदन का होता है, जैसे हमारी आंख का रोजा, जुबान का रोजा, कान का रोजा, हाथ का रोजा, पांव का रोजा आदि। आंख का रोजा का अर्थ है कि हम बुरी चीजें न देखें, जुबान का रोजा का अर्थ है कि हम अपनी जुबान से कोई ऐसी बात न बोलें, जिससे किसी को ठेस पहुंचती हो। कान का रोजा का अर्थ है हम गलत बातों पर ध्यान न दें। हाथ का रोजा का अर्थ है दूसरों का अहित करने को हमारे हाथ न उठें और पांव का रोजा का मतलब है कि हम कभी भी गलत रास्ते पर न चलें। जब ऐसा होगा, तभी हम इस पवित्र महीने में अपने भीतर भी पवित्रता ला पाएंगे। अत: रमजान के महीने में संकल्प लें कि हम गरीबों की मदद करें और खुदा की इबादत करके अपने भीतर शक्ति का अनुभव करें।

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