नई दिल्ली, 26 फरवरी (आईएएनएस)। संसद में वित्त वर्ष 2015-16 के लिए पेश आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछले दो वर्षो के दौरान विद्युत क्षेत्र में व्यापक बदलाव देखने को मिले हैं। वर्ष 2014-15 के दौरान उत्पादन क्षमता में 26.5 गीगावाट (जीडब्ल्यू) की अब तक की सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई। पिछले पांच वर्षों के दौरान औसत वार्षिक वृद्धि लगभग 19 जीडब्ल्यू ही रही थी।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम द्वारा तैयार आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि क्षमता में बढ़ोतरी की बदौलत सर्वोच्च मांग के समय बिजली की किल्लत घटकर 2.4 प्रतिशत के अब तक के न्यूनतम स्तर पर आ गई है। वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की माली हालत और बकाया कर्ज से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें उज्ज्वल डिस्कॉम आश्वासन योजना (उदय) के जरिए एकजुट हो गई हैं।
आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्यों को 32 जीडब्ल्यू से बढ़ाकर 175 जीडब्ल्यू कर दिया गया है।
राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत होने वाली नीलामियों के साथ सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिए ग्रिड समतुल्यता अब वास्तविकता बनने की ओर अग्रसर है। इसके परिणामस्वरूप 4.34 रुपये प्रति किलोवाट घंटे (केडब्ल्यूएच) की अब तक की सबसे न्यूनतम दर संभव हो पाई है।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि डिस्कॉम पर बकाया कर्ज बोझ परंपरागत रूप से विद्युत क्षेत्र के लिए एक प्रमुख अवरोध रहा है और सर्वाधिक नुकसान उठाने वाले राज्य वे हैं, जिनकी शुल्क दरें विद्युत आपूर्ति की लागत को कवर करने में विफल रही हैं। अनेक राज्य अब ‘उदय’ योजना के जरिए इस अंतर को पाटने की कोशिश कर रहे हैं।
‘मेक इन इंडिया’ पर विद्युत क्षेत्र का असर :
आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि विद्युत आपूर्ति और इसकी गुणवत्ता का औद्योगिक उत्पादन पर असर पड़ता है। विशेषकर जब गुणवत्ता को ध्यान में रखा जाता है, तो विद्युत दरें भारतीय उद्योग के लिए असामान्य रूप से ज्यादा बैठती हैं।
लगभग 72 जीडब्ल्यू की कुल क्षमता और 5 जीडब्ल्यू की वार्षिक वृद्धि दर के साथ अनियमित विद्युत आपूर्ति की समस्या का सामना करने के लिए डीजल जनरेटरों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2006-07 और वर्ष 2014-15 के बीच कैप्टिव विद्युत उत्पादन की संयोजित वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) 9.3 प्रतिशत आंकी गई, जबकि विभिन्न निकायों से खरीदी गई बिजली के लिए सीएजीआर 4.6 प्रतिशत दर्ज की गई।
भारत को ‘विद्युत में एकल बाजार’ बनाने की जरूरत :
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विद्युत क्षेत्र में ‘एकल भारत बनाने’ की दिशा में अनेक कदम उठाए गए हैं। विद्युत अधिनियम 2003ए, जिसके तहत एक मेगावाट से ज्यादा विद्युत लोड वाले ग्राहक विद्युत बाजारों से सीधे बिजली खरीद सकते हैं, के अंतर्गत पेश की गई खुली पहुंच (ओपन एक्सेस) नीति देश में विद्युत की एकल बाजार कीमत प्राप्त करने की दिशा में प्रथम कदम थी। खुली पहुंच नीति को अमल में लाने और एक राष्ट्रीय विद्युत बाजार के सृजन के उद्देश्य से वर्ष 2008 में विद्युत एक्सचेंज स्थापित किए गए थे।
विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़ गई है, जबकि बिजली खरीदने के लिहाज से डिस्कॉम की वित्तीय क्षमता घट गई है। इसके परिणाम स्वरूप मौजूदा विद्युत संयंत्र लोड फैक्टर्स घटकर लगभग 60 प्रतिशत के अपने न्यूनतम स्तर पर आ गए हैं।
आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि ‘मेक इन इंडिया’ को नई गति प्रदान करने के मद्देनजर अब यह उपयुक्त समय है कि ज्यादा बिजली मांग वाले उद्योगों को ‘खुली पहुंच’ के जरिए अतिरिक्त विद्युत उत्पादन क्षमता के दोहन की अनुमति दी जाए।
गरीबों पर बोझ घटाने के लिए शुल्क दरों में प्रगतिशीलता :
आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि भारत की घरेलू विद्युत दरों वाले ढांचे में प्रगतिशीलता की काफी गुंजाइश है। आर्थिक समीक्षा में ज्यादा राजस्व संग्रह को कल्याण मद में ज्यादा आवंटन के साथ संतुलित करने की जरूरत का उल्लेख किया गया है।
आर्थिक समीक्षा में यह सुझाव दिया गया है कि लागत को कवर करते हुए और समृद्ध वर्गो पर बेवजह बोझ डाले बगैर गरीबों के लिए दरें घटाई जा सकती हैं।