कोलकाता, 19 अप्रैल (आईएएनएस)। क्या आपने कभी पानी के निर्यात के बारे में सुना है? भारत अन्य देशों को खाद्य पदार्थो के निर्यात से जाहिर तौर पर पानी को भी परोक्ष रूप से दूसरे देशों में भेज रहा है और यह प्रवृत्ति के जारी रहने की संभावना है।
कोलकाता, 19 अप्रैल (आईएएनएस)। क्या आपने कभी पानी के निर्यात के बारे में सुना है? भारत अन्य देशों को खाद्य पदार्थो के निर्यात से जाहिर तौर पर पानी को भी परोक्ष रूप से दूसरे देशों में भेज रहा है और यह प्रवृत्ति के जारी रहने की संभावना है।
कृषि और औद्योगिक उत्पाद को तैयार करने में जितने पानी की खपत होती है, उसे वर्चुअल वाटर (आभासी पानी) कहा जाता है।
बेंगलुरू स्थित सीएसआईआर फोर्थ पैराडिग्म संस्थान में शोधकर्ता प्रशांत गोस्वामी ने कहा, “खेती में इस्तेमाल होने वाला पानी चक्रित होता रहता है, लेकिन खाद्य पदार्थो के द्वारा निर्यात किए गए पानी की भरपाई नहीं की जा सकती। समय के साथ यदि खाद्य पदार्थो का निर्यात बढ़ता है तो हमारे देश में पानी की स्थिरता प्रभावित होगी।”
ईमेल और फोन के माध्यम से दिए गए जवाबों में गोस्वामी ने कहा कि इसके विपरीत चीन खाद्य पदार्थो का शुद्ध आयातक है और इसीलिए वह अपने पानी के भंडारण को परिवर्धित कर रहा है। उन्होंने भारत की खाद्य नीति में बदलाव के सुझाव दिए।
शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार विजेता गोस्वामी ने एक अध्ययन में चेताया कि अगर खाद्य पदार्थो के माध्यम से इसी तरह भारत के पानी का निर्यात होता रहा तो भारत 1,000 वर्षो से भी कम समय में काफी मात्रा में पानी खो देगा।
शोध के मुताबिक, खाद्य पदार्थो की मांग और जलवायु परिवर्तन के कारण सतही जल में कमी आती है।
‘वर्चुअल वाटर ट्रेड एंड टाइम स्केल्स फॉर लॉस ऑफ वाटर सस्टेनेबिलिटी : अ कम्पेरेटिव रीजनल एनालिसिस’ शीर्षक इस शोध को नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स के 20 मार्च के संस्करण में प्रकाशित किया गया है।
जलवायु और वायुमंडलीय मॉडलिंग विशेषज्ञ और शोधकर्ता गोस्वामी ने कहा कि भारत, अमेरिका और चीन को विश्व में आभासी पानी के उपयोगकर्ताओं के रूप में जाना जाता है और बढ़ती खपत के मद्देनजर इस तरह के पानी का व्यापार देश की जल-निरंतरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।