आम आदमी पार्टी की चुनावी सफलता ने सिद्ध कर दिया है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा आज भी आम नागरिक को उद्वेलित करता है क्योंकि हर कदम पर उसे इसका सामना करना पड़ता है. कांग्रेस और बीजेपी जैसी मुख्यधारा की पार्टियां यदि इसकी उपेक्षा करती रहेंगी, तो उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा.
कांग्रेस हाईकमान को भले ही दीवार पर लिखी इबारत नजर न आ रही हो, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं में इस स्थिति को लेकर बेचैनी है. मनमोहन सिंह की सरकार में राज्यमंत्री का ओहदा संभाल रहे मिलिंद देवड़ा ने विचार व्यक्त किया है कि सरकार को निष्पक्ष जांच होने देनी चाहिए, आरोपी चाहे जो भी हो. लेकिन कांग्रेस अपने और अपनी सहयोगी पार्टियों के नेताओं को बचाने में कोई गलत बात नहीं देख रही. यूं अन्य पार्टियों का रवैया भी ऐसा ही रहा है. बीजेपी ने बहुत समय तक कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री येदियुरप्पा का साथ दिया, टेलीकॉम घोटाले में दोषी पाये गए और जेल में रह चुके सुखराम का उसने तभी तक भारी विरोध किया जब तक वह कांग्रेस में थे. लेकिन जैसे ही उन्होंने कांग्रेस छोड़ी, बीजेपी ने उन्हें गले से लगा लिया.
एक ओर कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह सरकार भ्रष्टाचार से कारगर ढंग से निपटने के लिए लोकपाल जैसी संवैधानिक संस्था के निर्माण के लिए कानून बनवा रही है, तो दूसरी ओर वह बिना पलक झपकाए भ्रष्टाचार के आरोपियों को बचाने की खुलेआम कोशिश कर रही है. उसने चावल निर्यात घोटाले में फंसे बीस आला अफसरों के खिलाफ जांच का सीबीआई का अनुरोध ठुकरा दिया है. उधर कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन वाली महाराष्ट्र सरकार ने, जिसके मुख्यमंत्री स्वच्छ छवि वाले कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण हैं, आदर्श हाउसिंग घोटाले की जांच करने के लिए गठित आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है. इस रिपोर्ट में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को दोषी करार दिया गया है और ये तीनों कांग्रेस के बड़े नेता हैं, सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण और विलासराव देशमुख. इनमें से विलासराव देशमुख का निधन हो चुका है और सुशील कुमार शिंदे इस समय केंद्र सरकार में गृह मंत्री हैं. इनके अलावा भी इस घोटाले में कांग्रेस और एनसीपी के कई बड़े नेता लिप्त पाए गए हैं.